ज़िंदगी एक परछाई
ज़िंदगी एक परछाई
ज़िंदगी बस एक परछाई है
कोई जान ना सका है ये आज तक
पर ये तो एक गहरी सच्चाई है
कोई पकड़ नहीं पाया इसे
जहां चले …. वहाँ साथ चली है
दिन हो या रात हो
कभी ना थकी ना ही झल्लायी है
बिना आराम किए …
हर पल साथ साथ मुस्कुरायी है
ख़ुशी को भी अपनाया इसने
आंसू दर्द के भी दिखाये इसने
किसी का साथ मिला तो …
उस की भी बाँह पकड़ इतरायी है …
साथ छूट गया जो किसी का तो
दर्द के पल को भी सहमी सी ठहरी सी
यूँ ही कुछ समझा गई है
अपनी पहचान यूँ बताती है
कभी नहीं ख़त्म होने वाली कहानी दोहराती है
कभी अपने माँ बाप का अक्स …
कभी अपने बच्चों की छवि दिखाती है …
ये तो बस परछाई है
ना किसी की पकड़ में आयी
और ना ही इस के मोह में पड़ने का
यशवी ये सबक सिखाती है।
