लम्हे का सच ….
लम्हे का सच ….
आज भी याद है, कोई भूल गयी बात नही वो एक सुंदर घर जिस में यशी अपने माँ पापा और भाई के साथ रहती थी जब तक शादी नही हुई थी तो हर राखी के त्योहार पे, तब माँ और पापा, सुंदर कपड़े लाते और तोहफ़ा भी, भाई को सिखाते की जब बहन राखी बांधे उसे ये ज़रूर देना।
ये थी एक प्यार की परम्परा जो शायद भगवान ने इसलिए बनायी की सब ने एक ना एक दिन इस दुनिया से जाना है
जब माँ पापा ना रहे तो भाई बहन एक दूजे से रिश्ते निभाते हुए अपने माता पिता के वंश को आगे बढ़ाते रहें।
फिर एक दिन ऐसा आया, घर में शहनाई की गूंज उठी, पहले यशी की फिर दो महीने बाद भाई की शादी हो गयी।
यशी शादी के बाद दूर दिल्ली में जा बसी, माँ, पापा, भाई और भाभी चंडीगढ़ में थे।
समय बदला पर रिश्ते नही, हर राखी पे भाई मिलने आता ढेर तोहफ़ों के साथ।
एक राखी ऐसी आयी भाई का फ़ोन आया मैं आ रहा हूँ पर शाम हो गयी वो नही आया।
दिल उदास था रोना भी आया, दिन ढलने लगा, बाहर खड़े खड़े अंदर जाने को हुई तो देखा भाई आ गया। बड़े प्यार से यशी के सिर पर हाथ रख के बोला मैं आ गया जा राखी ला और बांध दे।
यशी की आँखो में ख़ुशी के आँसू थे आवाज़ में ग़ुस्सा और बोली की इतनी देर क्यूँ लगाई ?
वो ही हँसता हुआ चेहरा मुस्कुरा के बोला, आज दफ़्तर के ज़रूरी काम से सोनीपत जाना पड़ा अब काम ख़त्म हुआ।
पर यशी मेरी बहन तू उदास ना होना कभी, तेरा भाई दुनिया के किसी भी कोने में होगा तो भी राखी बँधवाने पहुँचेगा।
यह शब्द जो उस लम्हे में कहे उस के भाई ने यशी को ….
आज भाई नही रहा कितने साल बीत गए पर आज भी हर राखी पे भाई नील सपने में मुस्कुराते हुए आता है ढेर तोहफ़े दे जाता है
यशी देखती है सोचती है की सब लोग झूठ बोलते है नील नही रहा ये तो यहीं खड़ा है मेरे पास …
जब नयी सुबह होती है कुछ ना कुछ सौग़ात आ जाती है अपने आप, कभी नौकरी में तरक़्क़ी कभी कोई रुका पैसा आ जाता है, आज भी भाई आता है हर राखी की सौग़ात लाता है।
