सफल जीवन …धागा और पतंग
सफल जीवन …धागा और पतंग
सफल जीवन…समझाना कहाँ आसान कथनी से करनी भली…
यश का अपने पिता के साथ रिश्ता कुछ ऐसा था, जब भी वो अपने पिता से कोई सवाल करता उसका जवाब वो उसे बिना करे …..
उस काम को नहीं देते थे, शायद उन्हें लगता था कथनी से करनी भली होती है।
एक दिन यश के पापा उसे पतंग उड़ाने ले गए। यश उन को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहे था। थोड़ी देर बाद यश बोला
पापा …..ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, हम इसे तोड़ दें? ये और ऊपर चली जाएगी।" पापा ने धागा तोड़ दिया। पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई।
तब पापा ने यश को जीवन का दर्शन समझाया।
बेटा ……जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे :
-घर-
-परिवार-
-अनुशासन-
-माता-पिता-
-गुरू-और-
-समाज-
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं। वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं।
इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ।
अतः जीवन में यदि आप ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते है तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़े ।
धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही '
“सफल जीवन कहते हैं.."
