ज़िंदगी..... एक हादसा (1)
ज़िंदगी..... एक हादसा (1)
कौन जानता है किसी मासूम सी मुस्कान के पीछे क्या छुपा है, दर्द या फिर कुछ और?
वो मासूम सी दिखने वाली नटखट विदिशा हर वक़्त नादानी ही करती रहती पर उसके अंदर कैसी पीड़ा है कितना जख़्म है कोई नहीं बता सकता था!।
वैसे तो ज़िन्दगी ख़ुद एक हादसा है उस पर जब अपने ही। दर्द देने लगे तो क्या कहेंगे आप?
जी हाँ..!
यह दर्द ज़िन्दगी से कम अपनों से ज्यादा मिला था। पर उनके हौसले को कोई नहीं तोड़ सकता था।
विदिशा अभी मात्र 16 वर्ष की है। उसके हंसते चेहरे के पीछे जो दर्द था वो मुझसे नहीं छुप सका, एक दिन मैं अपनी बेटी से बोली 'ऐसा लगता है मानो विदिशा हंस तो रही है पर उसके पीछे कोई दर्द छुपा है उसके मुस्कराते चेहरे पर भी एक उदासी फैली रहती है यही हाल उसकी माँ का भी है ' आख़िर इसका कारण क्या है?
तब बेटी ने उसके साथ हुए हादसे का खुलासा किया। सहसा ही मेरे मुख से निकल गया, ओह...! इतना दर्द..!!
विदिशा की माँ जिनकी आयु वर्तमान में लगभग 35-36 है , उनकी बड़ी बहन के विवाह को अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था कि काल ने उनको अपने आगोश में ले लिया। एक साल के अंदर ही निशा ने शौर्य को जन्म दिया, अभी वो मात्र दो दिन का ही हुआ था कि निशा की मौत हो गई।मयंक के ऊपर मानो विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा हो, नन्हें से शौर्य को माँ की आवश्यकता थी और इस वक़्त उसे कौन माँ का प्यार दे सकता था सिवाय दिशा के।
दिशा उस वक़्त इंटर की छात्रा थी,और उसके भी अपने सपने थें जैसा कि हर युवती देखती है पर सपने सच हो यह ज़रुरी नहीं। ऐसा ही दिशा के साथ हुआ, नियति तो कुछ और ही लिख चुकी थी। दिशा शौर्य की मासी थी; अब मासी से ज्यादा प्यार और देखभाल कौन कर सकता है? जैसा कि मासी नाम से ही यह पता चलता है माँ यानि जो माँ जैसी हो वो मासी। पर शौर्य को मासी नहीं माँ की आवश्यकता थी और मयंक को भी संभालने के लिए पत्नी। यह तय हुआ कि किसी और से यदि विवाह हुआ तो संभव है बच्चे को वो प्यार ना मिले जो मिलना चाहिए सो दिशा से विवाह होना निश्चित हुआ।ना हाथों में मेंहदी रची ना हल्दी लगा, ना बैण्ड बजा ना बाराती आये पर निशा दुल्हन बन गई और मुंह दिखाई के रस्म में उसके गोद में शौर्य आ गया।
इतने पर ही काल को संतुष्टि नहीं मिली थी कि मयंक को भाई के मौत ने तोड़ कर रख दिया और वो इस हादसे को सहन नहीं कर सका तथा नशे की चपेट में आ गया। दिशा की ज़िन्दगी जैसे तैसे चल रही थी कि एक दिन मयंक भी नशे की लत के कारण काल के क्रुर हाथों में आ गये और चल बसे।
महज 29 वर्ष की अवस्था में दिशा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, 12 वर्ष का शौर्य 11वर्ष की विदिशा और 6 वर्ष का वीर उस पर वैधव्य का पहाड़। ज़िन्दगी इतनी आसान कहाँ रह गई थी। उस पर घर वालों ने मनहूस कहकर निकाल दिया। दिशा जाती भी तो कहाँ और करती भी तो क्या?हारकर वह अपने तीन बच्चों के साथ मायके आ गई जहाँ माँ, पिता जी और एक छोटा भाई भी था। वह आ तो गई थी पर किसी पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहती थी इसलिए उसने नौकरी की तलाश शुरू कर दी।
मात्र इंटर तक पढ़ी थी वो आगे कहाँ मौका मिला, पर हजार ठोकर खाने के बाद अंततः नौकरी मिल ही गई। ज़िन्दगी चलने लगी बच्चे भी बड़े हो रहे थे पर सब अंदर ही अंदर टूटे हुए पर एक दूसरे के लिए मुस्कुरा रहे थें।
"कभी कभी यूँ भी ज़िन्दगी गुजारना पड़ता है,
लाख जख़्म हो, उनको दफ़न कर मुस्कराना पड़ता है"
ऐसा ही कुछ दिशा और उसके बच्चों के साथ भी था। आज छ: वर्षों के पश्चात अंततः दिशा की माँ ने उससे यह कहकर अप्रत्यक्ष रूप से जाने को कह दिया कि बहू आयेगी तो कहाँ और कैसे रहेगी, उसपर विदिशा के कारण वह भी बिगड़ जायेगी।
हद है एक माँ अपनी बेटी से ऐसे कैसे कह सकती है वो भी तब जब बेटी अपने साथ-साथ उनकी भी देखभाल और सेवा करती हो? क्या सचमुच शादी के बाद बेटियां पराई हो जाती हैं, क्या सचमुच एक स्त्री मनहूस होती है, क्या यही हमारा समाज है जहाँ आज भी नारी मात्र नारों और फिल्मों में पौस्टरों में ही सम्मानित होती है, हक़ीक़त में नहीं। जब कि एक स्त्री केवल अपना ही नहीं समाज का भी उत्थान करती है यदि उसको उसका उचित सम्मान और अधिकार मिले।
आखिर क्यों है ऐसा???