Success -- प्रतिष्ठा
Success -- प्रतिष्ठा
अपनी बंदिशें, अपनी थाती रखो अपने पास मुझे लिखने दो अपनी सफलता की कहानी ;
यह सोचकर वह घर से निकली ही थी कि...
पुरुष प्रधान समाज में रहने वाले ख़ुद को उसका हम दर्द कहने वाले उस प्राणी को नागवार गुजरा तो उसने तमाम दलीलें प्रस्तुत करते हुए उससे बोला,' क्या ज़रूरत है तुमको कुछ करने की मैं तो हूँ ना'...!
आखिर किसके लिए इतना कमाता हूँ...?
कमी क्या है तुम्हारे पास... ?
नौकर चाकर गाड़ी बंगला सब कुछ है फिर ठाठ से भोजन मिलता है, ए. सी. में रहती हो, फिर क्यूँ तुमको कमाने और पहचान बनाने की सूझी है..?
क्या कहेंगें लोग कि इसकी बीबी अब बाजार में घूम रही है। कहते हुए कौस्तुक प्रतिष्ठा को देखने लगा।
सही कहा तुमने, आराम से खा रही हूँ, सब ऐशो आराम है फिर क्या जरूरत है मुझे कुछ करने की और कमाने की, लोग क्या सोचेंगे कि देखो कौस्तुक की पत्नी अब कमाने चली है, प्रतिष्ठा ने जवाब दिया।
पर कौस्तुक..! ये तो बताओ मेरी क्या पहचान है..,?
कौन हूँ मैं और क्यूँ हूँ..?
नहीं..! मैं जानती हूँ तुम्हारी पत्नी हूँ, बाबू जी की बहू हूँ और समग्र की माँ भी हूँ,
पर इसके अलावा क्या हूँ...?
क्या किया मैंने एम. ए. और बी, एड. की डिग्री लेकर, क्या पाया पापा के घर को छोड़कर तुम्हारे साथ से..?
वह आगे बोली, ' सात वचन सात फेरे ' का मतलब तुम्हारी गुलामी और अपने अरमानों का खून करना था, बात बात में तुम्हारे ताने और.. कहते कहते प्रतिष्ठा बिखर सी गई। चलो मैं इसको भूल भी जाऊँ तो ये बताओ कब मेरे दर्द में साथ थे, जब जब आवश्यकता थी तब तब कितना पास थे, नहीं बात सकते ना..?
जानती हूँ नहीं है तुम्हारे पास जवाब क्योंकि कभी तुम थे ही नहीं मेरे, सिवाय शक के कुछ किया ही नहीं तुमने और अब...
मुझे ख़ुद की पहचान बनानी है, मैं इन 'दरो -दीवार' के अंदर एक अफसाना बनकर ना दफ़न हो जाऊँ इसलिए अब एक लम्बी उड़ान भरनी है, बोलो कौस्तुक क्या मुझे इतनी आजादी दे सकते हो..? प्रतिष्ठा बोली
नहीं, कदापि नहीं..! 'ये मेरा घर है कोई कोठा थोड़े ही है जो तुम अपनी मर्ज़ी करो', वह बोला
उसे ऐसे बोलते हुए सुनकर तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ प्रतिष्ठा को।
तो ठीक है तुम अपना घर संभालों मैं अब अपनी राह ढूँढ लूँगी। मुझे अपने सपने को पूर्ण करना है, मुझे ख़ुद को सफल करना है, यह कहते हुए प्रतिष्ठा आगे बढ़ी ही थी कि..
चिल्लाया 'रुअअअकोsss .. गुस्से से तमतमाता हुआ कौस्तुक चिल्लाया'
प्रतिष्ठा कुछ कहती इससे पहले ही वह बोला, अगर इस घर की देहलीज के बाहर कदम रखा तो फिर मुड़ के दुबारा इस घर में मत आना।
-ह्ह्ह्म ह्ह्ह्म प्रतिष्ठा तेज से ठहाके मारकर हँस पड़ी और बोली, 'थैंक्स' कौस्तुक..! मुझे यही आशा थी तुमसे;
यह रही तुम्हारे मकां की चाभी, ये बेटा समग्र जिसे अब तुम संभालकर दिखाओगे, और हाँ.. मुझे अब एक नये सफ़र पर निकलना है, तुम तो कुछ कहोगे नहीं मैं ही बोल देती हूँ अपनेआप को,
'All the best' प्रतिष्ठा 'फॉर योर न्यू जर्नी ' कहते हुए वह निकल गई अपनी एक नई पहचान और सफलता के लिए।
