संतावना
संतावना
सुनो..! अब मैं प्रायश्चित करना चाहती हूँ। बहुत कुछ खोया है तुमने मेरे कारण, अपना मान-सम्मान धन वैभव, स्वास्थ्य, जो कुछ भी वो सब मैं तुमको लौटने आयी हूँ, बहुत तकलीफ़ उठाया है तुमने मेरे कारण पिछले 18 वर्षों से, पर अब नहीं, तुम्हारा भी हक़ है खुशियों पर, आख़िर तुम भी इंसान हो। इतना कहकर संतावना चुप हो गई। सुखद चुपचाप सुन रहा था, संतावना ने आगे कहा, अब मैं उस भूल का पश्चाताप करना चाहती हूँ, जो मैंने किया है... ।
हाँ...! तुमसे शादी करने की गलती, माना कि मुझे कहीं ठिकाना नहीं मिला, हर तरफ़ से ठोकर मिला, इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं ख़ुद से बदला लेने के लिये तुम्हारा जीवन बर्बाद करूँ..? जीने का हक़ सबका है, कब तक तुम मेरे कारण नारकीय यातना सहोगे..? साथ ही ये मासूम बच्चे भी, जिनका जीवन अभी शुरू हुआ है। बस और नहीं आज से तुम सब आज़ाद हो। मैं अब जा रही हूँ तुम्हारा घर छोड़कर। मुझे नहीं पता कहाँ जाऊँगी..? क्या करूँगी..? सब अज्ञात है और यही तो प्रायश्चित है, मेरे पापों का। उन गुनाहों का जो मैंने आज तक सहा है, गलत करने से ज्यादा बड़ा गुनाह होता है उसको चुपचाप सहते रहना।
और इस तरह से संतावना उसी रात चुपचाप सुखद का घर छोड़कर चली जाती है।
