माफ़ कर दीजिए पापा..!
माफ़ कर दीजिए पापा..!
सुबह की हल्की हल्की सुहानी हवा और चिड़ियों की चहचहाहट और गुनगुनाती हवा फिर भी मन पर उदासी की चादर फैली थी पर इन सब को नज़रअंदाज़ करके बाबूजी सुबह सुबह चाय की प्याली लेकर बालकनी में कुर्सी पर बैठे अखबार वाले का इंतजार कर ही रहे थे कि.. दरवाजे की घंटी बजती है, जैसे ही वो दरवाजा खोलने को होते हैं कि... प्रत्युषा हाथ में आज का न्यूज़ पेपर लिए हुए अंदर प्रवेश करती है;
बाबूजी आश्चर्य से बोल उठते हैं, 'अरे प्रति तू, इतनी सुबह सुबह..? '
'हाँ पापा मैं.. ! आपकी बहुत याद आ रही थी तो सोचा आपसे मिल लूँ और आज का समाचारपत्र भी आपको मैं ही दे दूँ आज, क्या पता फिर...! ' यह कहकर प्रत्युषा शांत हो गई और बाबू जी के चरण स्पर्श कर एक तरफ बैठ गई। इससे पहले कि बाबू जी कुछ कहते मोबाइल बजने लगा, बड़ा ही भावुक करने वाला कॉलर ट्युन था, बाबुल प्यारे कहीं पर...
किसका फोन है कृति.. !
बाबूजी ने अपनी अर्धांगिनी से पूछा ।
क्याऽऽऽऽ... वो चीख पड़ीं और मोबाइल उनके हाथ से छूटकर गिर गया, वो धम्म से नीचे बैठ गई, धम्म की आवाज सुनकर बाबूजी बोले, 'क्या हुआ कृति और किसका फोन था..?
वो कुछ नहीं बोलीं और फूट फूट कर रोने लगी, बाबूजी फिर बोले, 'अरे..! क्या हुआ, किसका फोन है..? ' उन्होंने ख़ुद को संभालने की कोशिश की और बोली अपनी प्रत्युषा अब नहीं रही, उसके सासरे वालों का फोन था, और यह कहकर वो फूट फूट कर रो पड़ीं।
अरे..! ये तू क्या बक रही है पगली, और वो कृति जी की तरफ मुखातिब होकर बोले, 'देख अपनी प्रति तो यही आई है फिर ओ कैसे मर सकती है, ये सुबह सुबह ज़रूर तुझे अप्रैल फूल बनाकर कोई मज़ाक कर रहा है, वो देख अपनी प्रति...,
और जैसे ही बाबूजी पीछे घूमते हैं वहाँ कोई नहीं होता है..., तो क्या वो मुझसे आख़िरी बार मिलने आई थी, मुझे बताने आई थी कि..
और उनके हाथ से चाय की प्याली छूट जाती है और वो भी..
अभी उन्होंने हमें बुलाया है हमें अपनी प्रति से मिलने जाना है अंतिम दर्शन करने जाना है अपनी बेटी का।
नहीं..! नहीं..! मेरी प्रति ऐसा नहीं कर सकती, उसके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो...!
वो चीख पड़े, नहींऽऽऽऽ वो ऐसा नहीं कर सकती नहीं कर सकती वो आत्महत्या...!
नहीं आपको भ्रम हुआ है, ज़रूर आप लोगों ने कुछ किया होगा.. ।
क्या पापा आप भी क्या क्या पढ़ते रहते हैं, कॉलेज जाते हुए प्रत्युषा ने बाबूजी के हाथ से न्यूज़ पेपर छिनते हुए कहा.. ' पता नहीं कैसे लोग आत्महत्या कर लेते हैं, कितने हिम्मत वाले होंगे ये लोग जो जीवन के बदले मृत्यु को गले लगाते हैं, मैं तो ऐसा कभी ना करूँ चाहे कितनी ही तकलीफ़े सहन करनी पड़े,।
उफ़्फ़्फ़...! पापा 'आई लव यू' मैं ऐसा नहीं करूँगी आख़िर आपके अलावा मेरे पास और हिम्मत नहीं, और उस रोज बाप बेटी दोनों हँसते हँसते रो पड़े।
पगली.., मेरी बेटी कायरों वाला काम थोड़े करेगी ,उसके लिखे ख़त को सीने से लगाकर बाबूजी आज बिखर पड़े।
प्रत्युषा के कहे शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे, मुझे माफ़ कर दीजियेगा पापा, मैंने आपका विश्वास और दिल दोनों तोड़ा हैं...।
और फिर मैंं ...!
