Ruchi Singh

Inspirational Children

4.6  

Ruchi Singh

Inspirational Children

जिम्मेदारी !!

जिम्मेदारी !!

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रोज की तरह पीहू फिर खीझते हुए मनन को उठा रही है। आशी अलार्म की आवाज़ सुनते ही उठकर स्कूल के लिए तैयार होने चली गयी। पर आज भी मनन फिर स्कूल जाने में आनाकानी कर रहा है। बोल रहा है कि आज मैम बताई हैं कि, पढ़ाई नहीं होगी। कभी कोई बहाना कभी कोई बहाना। उसका तो रोज का ही हिसाब हो गया था। कभी बोले कि रात भर नींद नहीं आई। कभी कहे कि पेट दर्द हो रहा है। बचपन से ही पढ़ने में कम मन लगता है उसका। पर अब मनन के 10th में आने के बाद से पीहू ज्यादा परेशान रहने लगी है। 


सिद्धांत और पीहू की शादी को 20 साल हो चुके हैं। दोनों के एक बेटी हैं आशी और बेटा मनन। सिद्धांत एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है और पीहू घर में ही कुछ बच्चों के हॉबी क्लासेस लेती है। हफ्ते में 3 दिन सिर्फ 2 घंटों की। ताकि अपने बच्चों को पूरा टाइम दे सके। उनका उज्वल भविष्य बना सके। इस दुनिया के हर मां बाप की तरह उनका भी एक ही सपना है कि बच्चे हमसे भी ज्यादा तरक्की करें। 


सिद्धांत और पीहू का मुंबई शहर में एक सुंदर हवादार मल्टीस्टोरी प्लैट है। उनका बड़ी बेटी आशी 12th में और छोटा बेटा मनन 10th में पढ़ता है। आशी तो पढ़ने मे अच्छी, समझदार, आज्ञाकारी व एक सुलझी हुयी बच्ची है। दूसरी तरफ मनन लंबा चौड़ा स्मार्ट सा पर पढ़ाई में थोड़ा कमजोर। 

दोनों बच्चों के इस साल बोर्ड एक्जाम्स हैं। इसलिए पीहू दोनो के लिए ज्यादा ही चिंतित रहती है, खासकर मनन के लिए।


मनन को कभी खाने, कभी नहाने, रात में जल्दी सोने, स्कूल व कोचिंग जाने के लिए टाइम पर तैयार होने तो कभी मोबाइल पर कम गेम खेलने के लिए टोकना ही पड़ता है। उधर आशी को कुछ कहना ही नहीं पडता और यदि कुछ कहे भी तो बात सुन लेती है पर मनन मनमौजी और थोड़ा गुस्सैल भी है। हर बात को अनसुना कर देता है ना सही से खाना खाता है... ना टाइम पर सोता है... और ना पढ़ना चाहता है। मनन से पीहू हमेशा परेशान रहती हैं। और वो एग्जाम के टाइम भी देर-देर तक और बच्चों के साथ खेलता रहता है । अपने एग्जाम की उसको बिल्कुल भी चिंता नहीं रहती। उसको मेहनत करने की और जिंदगी में आगे बढ़ने की कोई तमन्ना नहीं दिखाई देती। इससे पीहू ज्यादा परेशान व चिंतित रहती है। 


पिछले 2 सालों से सिद्धांत घर मे रहकर Work-from -home कर रहा है। वह अपने बेटे मनन की शैतानियां देखता पर कभी कुछ कहता नहीं। पीहू ही दिनभर मनन को टोकने की जिम्मेदारी का निर्वहन करती। आशी तो अपने आप ही पढने बैठ जाए। पर जैसे मानो मनन ने तो ना सुनने की कसम खा रखी है। वो सुनता ही नहीं। 


सिद्धांत व पीहू की शादी के इतने साल बाद भी कभी किसी बात पर लड़ाई नही होती बस.... बच्चों के कारण कभी-2 दोनों में अनबन हो जाती है। 


मनन के ना सुनने व पढ़ाई ना करने के पीहू सिद्धांत को बोली कि तुम क्यों नहीं बोलते मनन को। पर सिद्धांत भी अनसुना कर देता। बार-बार पीहू सिद्धांत को बोले कि खाने पीने के लिए ना सही, पढ़ने के लिए तो बोला करो। तुम उसके पिता हो। वो बहुत देर बाद जवाब दे कि मेरे पापा भी मुझे पढ़ने के लिए कभी नहीं कहते थे। उसको समय के साथ बुद्धि आ जाएगी। 


एक दिन पीहू कहती है, "अगर समय निकल गया और तब बुद्धि आये तो क्या फायदा। अब पछतात होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। फिर तो उस पर यही कहावत चरितार्थ होगी। मनन को क्या करने से उसको फायदा है यह सोचने समझने का समय आ गया है। और आप कह रहे की आपके पापा कभी पढने को कहते नहीं थे तो उस जमाने की बात अलग थी। बाप की कड़कती आवाज से ही बच्चे डर जाते थे। वह खुद ही पढ़ने बैठ जाते थे। हमें तो इन बच्चों का भविष्य उज्वल बनाना है। आजकल इतना कंप्टीशन है और एक दो तो बच्चे हैं उनको अच्छा निकालना मां-बाप का पहला कर्तव्य है। पढेगा-लिखेगा नही तो क्या करेगा? और इतना तो पैसा भी नहीं है कि हम उसको कोई बिजनेस करा सके। फिर आजकल बिजनेस इस्टैब्लिश् करना भी आसान बात नहीं है। सभी बिजनेस चलते भी नहीं। उसे चलाने के लिए भी पढ़ना और स्मार्ट होना जरूरी है।" इतना सब पीहू बोली ...पर सिद्धांत अपने लैपटॉप पर आँख गड़ाये बैठा रहा। मानो उसे बच्चों का कोई ख्याल ही नहीं। 


पीहू मन ही मन बुदबुदाती है "ये ऐसा सोचते हैं जैसे बच्चे इनके नहीं। मैं मायके से लेकर आई हूं। सिद्धांत की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया ना आती देखकर तमतमाते हुए पीहू बोली...."क्या मैं इन्हें मायके से लाई हूं क्या ये तुम्हारे नहीं है? तथा इनका उज्वल भविष्य बनाने की जिम्मेदारी मेरे अलावा तुम्हारी नहीं है। सिर्फ स्कूल की महंगी-महंगी ट्यूशन फीस भर देने से तुम बाप नहीं बन जाओगे। तुम्हें भी मनन को बैठाकर सही गलत कुछ समझाना होगा। पढ़ाई के इंपॉर्टेंस बतानी होगी। मनन को तुम्हें कभी प्यार से, कभी डाँट के सही राह पर लाना होगा। घर से यदि काम कर रहे हो तो ऑफिस के काम के साथ-साथ घर में क्या चल रहा है इस पर भी ध्यान दो। इन बच्चों की गतिविधियों पर भी ध्यान दो। यही बच्चों की बनने बिगड़ने की उम्र है। वास्तव मे बेटे पापा से ही डरते हैं। मम्मी को तो कई बार उन्हें प्यार से खिलाना, कभी प्यार से सुलाना, बीमार पड़ने पर उनकी देखभाल करना पड़ता है तो, मम्मी से डरते भी कम है। तुम ही इसके जीवन को सुधार सकते हो। बच्चे की अच्छी परवरिश में मां-बाप दोनों का हाथ होता है। कभी डांट के कभी प्यार से बच्चों को अच्छे कैरियर के साथ-साथ अच्छे आचरण का भी पालन करना सिखाना चाहिए।" कहते-कहते पीहू रुआंसी सी हो गई। और फिर से बोलती है "इनको मैं मायके से नहीं लाई हूं। यह तुम्हारे भी बच्चे हैं। इनको तुम नहीं तो और कौन देखेगा।"


सिद्धांत पीहू को मायूस व दुखी देखकर उसके पास जाता है और बोलता है। "अरे डियर..मुझे माफ कर दो, मैं आगे से ध्यान दूँगा। आज सिद्धांत को पीहू की बातों की गम्भीरता कुछ समझ में आ जाती है। वह बोलता है " मैं अब आगे से बच्चों पर ध्यान दूँगा।"


दोस्तों....... बच्चों की अच्छी परवरिश की जिम्मेदारी मां-बाप दोनों पर होती है। मां के साथ-साथ पिता को भी बच्चों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। सिर्फ उनकी फ़ीस भरने से पिता.... पिता नहीं बन जाता। 



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