ज़िम्मेदारी-माता के प्रति
ज़िम्मेदारी-माता के प्रति


ग़रीबी, बड़ा परिवार और घर का बड़ा बेटा होना, मिल कर विमल को ज़िम्मेदार बना दिए थे। हर मुश्किल से जूझते हुए भी उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। ज़िले के सरकारी कालेज से स्नातक पूरा करके वह अच्छी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षाएँ देने लगा। जनता था कि ज़मीन के छोटे से टुकड़े पर खेती करके आठ सदस्यों के परिवार का लालन पालन करना सम्भव नही था इसलिए अच्छी नौकरी का मिलना ज़रूरी था।
आख़िरकार विमल की मेहनत रंग लाई और विमल को नौकरी लग गई। नौकरी तो अच्छी थी साथ ही वेतन भी बहुत ही अच्छा था, परिवार की देख भाल और भाई -बहनों की पढ़ाई बहुत ही आराम से हो जाती।
विमल ने नौकरी शुरू कर ली। नौकरी के शुरुआती दिनों में पता लगा कि वह देश के एक बहुत ही ख़ास विभाग में काम कर रहा है जो देश की सुरक्षा के लिए ख़ुफ़िया सूचना इकट्ठा करती है। प्रशिक्षण के दौरान सभी को यह भी बताया गया कि जब वह किसी मुहिम में रहेंगे तब वह किसी से भी सम्पर्क में नही रह सकते। अपने और अपनी संस्थान के बारे में भी वे किसी से कुछ भी नही बताएगें।
प्रशिक्षण के बाद छुट्टी मिली और विमल घर आया और सभी से मिल कर वापस आ गया। माँ को वह बता आया था की जब भी मौक़ा मिलेगा वह उनसे फोन पर बात कर लेगा और वह परेशान ना हुआ करें। वापस आते ही उसे एक महत्वपूर्ण टीम का हिस्सा बनाया गया। वह टीम एक मिशन पर थी जिसके लिए उनलोगों को कुछ विशेष संस्थानों की सुरक्षा पर नज़र रखना था और कुछ भी ग़लत गतिविधि को सूचित करना था।
विमल वेश बदल उसे दिए गए संस्थान के आसपास चौबीसों घंटे रहता। कोई उसे पहचने ना इसलिए उसने एक पागल भिखारी का रूप बनाया था। वह वहीं सड़क के किनारे बैठ कर भीख माँगता औ
र जो भीख में मिलती उसी से अपना पेट भरता था। वही मिट्टी पर सोता था और आसमान की चादर ओढ़ता था। छः महीने होने को आ रहे थे। महीने में एक बार मौक़ा ढूँढ किसी फोन बूथ से छुप कर माँ से बात कर लेता। सभी उसे पागल समझते थे और हर तरह की बातें उसके सामने कर लेते थे पागल समझ कर। एक बार ऐसे ही एक गुट में कुछ संदिग्ध लोग बातें कर रहे थे। वह पागलों वाली हरकतें करता, उनसे खाने को माँगता है। वे उसका मज़ाक़ उड़ते हुए कुछ जूठा खाना उसे दे देते हैं जिसे वह वहीं बैठ कर खाने लगता है। वे निर्भीक बातें करते हैं और विमल सब सुनता है। वे कुछ ख़तरनाक करने जा रहे थे जिससे पूरे देश को ख़तरा था। विमल पागल भिखारी बन सब सुनता रहा। ये लोग लगभग हर दिन अलग अलग समय पर मिलते और आपस में तरह-तरह की सूचनाओं का आदान-प्रदान करते। इधर विमल भी अपने मैले-कुचैले पोटली में छुपे तकनीकी तंत्र से अपने हेड क्वॉर्टर को सब बताता रहता।
अब विमल के टीम के कूच और लोग भी वहाँ अलग-अलग वेश बना कर उस गुट के लोगों के बारे में पता करते और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखते। एक दिन हेड-क्वॉर्टर के आदेश के अनुसार बड़ी ही चतुराई से विमल और उसके टीम के लोगों ने उस गुट के सभी लोगों को क़ब्ज़े में लिया और किसी को पता भी नही चला।
विमल खुश था जैसे वह अपने परिवार, अपनी माँ के प्रति ज़िम्मेदारी को निभा रहा था वैसे ही उसने अपनी मातृभूमि और परिवार स्वरूप देशवसियों के प्रति भी अपनी भागीदारी निभाई थी। फिर चाहे क्यों ना इसके लिए उसे बहुत ही कठिन जीवन जीना पड़ा था, कोई घर नही, हर मौसम में खुले में रहना, कभी कभी सिर्फ़ पानी पी कर दिन निकाल देना, चिथड़े पहनना सब उस ख़ुशी के आगे गौण थे।