जिज्ञासा
जिज्ञासा
अनीशा इंटर्नशिप करते समय कड़ी मेहनत कर अपना भविष्य सँवार रही थी। दुखी लोगों का दर्द दूर कर रही थी। अपने ज्ञान को निरंतर बढ़ा रही थी और नित नये अनुभव पा रही थी। वह सबकी मदद करने के लिए तैयार रहती थी।
एक हेल्पर ऑपरेशन का सामान बॉक्स में लेकर जल्दी जल्दी जा रही थी ,रास्ते में किसी तरह उसके हाथ से छूटकर बॉक्स नीचे गिर गया। उसके अंदर का सामान बिखर गया। वह जल्दी जल्दी उन्हें समेटने लगी। अनीशा ने यह देखा तो उसकी मदद को आयी, वह भी नीचे बैठी और सामान समेटने में उसकी मदद करने लगी। इस पर वह बोली 'कि आप यह क्या कर रही हैं, यह आपका काम नहीं है आप डॉक्टर हैं। अनीशा बोली ' कोई बात नहीं , कोई काम करने में बुराई नहीं। तुम्हारी मदद हो जाएगी और मैं भी काम करना सीख जाऊँगी'। वह अनीशा की बात सुनकर द्रवित हो गई। और अनीशा के व्यवहार के प्रशंसक हो गई।
अनीशा के साथ के और बच्चे जब इंटर्न शिप के साथ साथ एम. एस. की तैयारी कर रहे , तब अनीशा पूरी मेहनत से इंटर्न का काम सीख रही थी। अनीशा का कहना था कि' यही काम सीखने का समय है, एम. एस. तो एक साल बाद भी कर लूँगी। कोई हर्ज नहीं, अब जो काम सीख रही हूँ वह फिर कभी सीखने का मौक़ा नहीं मिलेगा, फिर कभी नहीं सीख पाउंगी'।
अनीशा की काम सीखने की जिज्ञासा एक ब्लॉटिंग पेपर की तरह थी, जो सब कुछ सोखता जाता है कभी थकता नहीं है। वह हर नया काम रुचि से करती थी। उसने पोस्टमॉर्टम करना भी ठीक से सीख लिया था जहाँ और कोई जाना भी नहीं चाहता था। सबसे वह काम करने के सही तरीक़े सीखती जा रही थी, और अपनी योग्यता बढ़ाती जा रही थी।
अनीशा ने ई वी लगाना भी ठीक से सीख लिया था, और इसमें वह सिद्ध हस्त हो गई थी। एक बार उसने देखा कि वार्ड में एक मरीज़ ख़ूब चिल्ला रहा था और कह रहा था, 'मैं ई वी नहीं लगवाऊंगा'। नर्स परेशान थी, वह चार पाँच बार लगाने की कोशिश कर चुकी थी पर उसे नस ही नहीं मिल रही थी। मरीज़ को काफ़ी दर्द हो रहा था।
अनीशा मरीज़ के पास गई, उसे सांत्वना दी ,उसका हाल चाल पूछा। उससे कहा "अच्छा ई वी मैं लगा देती हूँ कोई दर्द नहीं होगा"। जबकि प्राय: डॉक्टर लोग ख़ुद ई वी नहीं लगाते।
पर मरीज़ ने कहा कि अब उसे लगवाना ही नहीं है। अनीशा ने कहा ,"अच्छा मुझे देखने दो कहाँ दर्द हो रहा है। " उसने मरीज़ को बातें में उलझाए रखा। मरीज़ उससे प्रभावित हुआ और बोला" अच्छा आप लगा दीजिए, पर दर्द नहीं होना चाहिए। "
अनीशा ने कहा " ई वी तो लगा भी दिया"। अनीशा ने बात करते करते ऐसे लगा दिया था कि मरीज़ को पता ही नहीं चला। मरीज़ ने देखा कि उसे कुछ कष्ट भी नहीं हुआ और काम हो गया। वह अनीशा को बहुत धन्यवाद देने लगा, और उसकी तारीफ़ करने लगा। अनीशा को मेहनत से काम सीखने का पुरस्कार मिल गया।
बिना अपना आराम हराम किये नि :स्वार्थ सेवा नहीं हो सकती। इसके लिए वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श चाहिए। साथ ही साहस और दृढ़ निश्चय चाहिए। और अपने योग्यता बढ़ाने का दृढ़ संकल्प चाहिए। अच्छा काम स्वयम् में अपना पुरस्कार है। बिना जिज्ञासा के काम की तह तक नहीं जाया जा सकता।