जीवन की छांव में सही फैसला
जीवन की छांव में सही फैसला
जिंदगी अपने आपके अंदर ही धूप छांव सब है। कभी जिंदगी में दुख की धूप आती है। कभी सुख की छाया आती है। जिंदगी बहुत नाच नचाती है । अगर समय अच्छी तरह से सुख पूर्वक बीत जाता है, तो जिंदगी बहुत ही अच्छी लगती है। पर अगर जीवन सुख पूर्वक नहीं बीतता है तो बहुत दुख होता है और तकलीफ होती है । और कभी-कभी हमारे बहुत विश्वासु जिनके ऊपर हम बहुत विश्वास करते हैं। वही लोग अगर हम को धोखा दे जाते हैं तो जिंदगी एक बोझ लगने लगती है। जिंदगी जियो तो ऐसे जियो कि पुरस्कार लगे। ना कि ऐसे ही बोझ लगे। इसके लिए अपने आप में हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है। कोई भी परेशानी आए तो उसका डटकर मुकाबला करके उसमें से निकलने की। अपने आप में विश्वास से, किसी से कम नहीं मान कर चलने का।
और अपने स्वाभिमान को किसी को चोट नहीं पहुंचाने देने का बहुत ही जरूरी है ।
जिंदगी के उतार-चढ़ाव में अपने हौसले और हिम्मत को हमेशा बनाए रखना बहुत जरूरीहै। इस पर स्वरचित कहानी जो शायद आजकल घर घर की कहानी बन गई है। शांता देवी अपनी बहुत अच्छी नौकरी से रिटायर हुई थी । उनके पति का साथ तो जल्दी ही छुट गया था। एक बेटा उसकी शादी कर दी थी। और वह रिटायरमेंट के बाद और पहले से मां बेटा दोनों ही रहते थे। फिर उसकी शादी कर दी तो जो बेटा मां मां करते नहीं थकता था । वह अब अपनी पत्नी के साथ हो गया। और मां को कुछ नहीं समझने लगा। उसको हर बात गलत लगती और उसको लगता मां फालतू उसके ऊपर बोझ हो गई है।
वह और उसकी पत्नी दोनों ही मां पर जुल्म ढाने लगे। मगर शांता देवी बहुत शांत स्वभाव के थे। बिना कुछ बोले उनके जुल्म सह रही थी। उन लोगों ने दोनों नौकरी करते थे ,तो मां को एक नौकरानी ही बना दिया। एकदम मेड के जैसे व्यवहार करने लग गए। यहां तक की धूप में सब्जी लाना , सारे बिल जमा कराना , पैदल जा कर के। फिर घर के सब काम करना । काम ना करे तो उनसे मगजमारी करना। यह सब उनकी रोजिंदा जिंदगी में शामिल हो गया था। वे इतनी परेशान हो गई थी। उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे में एक दो दिन उन्होंने खाना भी नहीं खाया। और धूप में बिल जमा कराने गए। वहां उनको लाइन में खड़े हुए और चक्कर आ गए। और वे गिर गई , और बेहोश हो गई। और उनके हाथ और पांव में चोट भी आई। वहां खड़े हुए भले मानुष उनको हॉस्पिटल लेकर गए। और वहां उनको एडमिट कर दिया। और प्राथमिक चिकित्सा वगैरह दे कर के हाथ और पांव में प्लास्टर लगाया।
फिर उनके होश में आने का इंतजार करने लगे। जब वह उस में आई, तब उनसे पूछा ।तब उन्होंने अपने घर का और बेटे का फोन नंबर दिया।जब बेटे बहू को समाचार दिए गए तो उनके पांव के नीचे से जमीन खिसक गई ।
बेटा दौड़ा दौड़ा हॉस्पिटल आया।उसने देखा तो बहुत परेशान हुआ।सकपका गया कि यह क्या हो गया ,कि मैंने मेरी पत्नी के कहने में आकर मां के ऊपर कितने जुल्म कर दिए।और मांने उफ तक नहीं करी। धूप में बिल जमा कराने जाना, खाना बनाना, सब्जी लाना, सारे काम मां के ऊपर छोड़ दिए। जबकि इस मांंने में मुझे इतना प्यार से पाला। और मैं सारे फर्ज भूल गया। उसको बहुत अफसोस होने लगा। वहां से घर पहुंचा ,पहुंचते ही उसकी बीवी जोर जोर से चिल्लाने लगी। बुढ़िया अच्छी तरह काम नहीं करती है । इतना सा भी नहीं हुआ बिल जमा कराने गई थी, तो ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा। जो यह नाटक करने की जरूरत पड़ी गिर गई। और हॉस्पिटल में हमारी कितना खर्चा हो जाएगा ।और घर का काम कौन करेगा। और बहुत अनाप-शनाप बोलने लगी। उसके बेटे को जो हमेशा उसकी बात सुना करता था।
आज अपने ऊपर हुए पछतावे के कारण बहुत ही बुरा लगा। उसके दो थप्पड़ लगाए। और मां है नौकरानी नहीं मैं तुम्हारी बातों में आ गया था। इसलिए मैंने ऐसा करा, तुम्हारा साथ दिया। मगर अब यह नहीं चलेगा। तुम को ही तुम्हारा काम खुद को ही करना पड़ेगा। या सर्वेंट रखो। और बिल सब ऑनलाइन जमा कराओ। मैं यह चाहता हूं की मां जब घर आए तो तुम की खूब सेवा करो। और छुट्टी लेकर के घर पर रहो। उसकी भी तो यह सब सुनकर के बहुत सक पका गई ।और बहुत गुस्सा हुई। और बहुत भला बुरा बोलने लगी। गुस्से से धन धनाती हुई हॉस्पिटल पहुंची । वहां पर शांता देवी को देखने उनके फ्रेंड्स और रिश्तेदार आई हुई थी। उनके सामने ही बहुत बुरा बुरा बोलने लग गई , कि तुम कामचोर हो इस कारण काम नहीं करना है इसलिए तुम यहां पर हो। और नाटक करने रही हो। तुमको कुछ नहीं हुआ है। तो मुझे बुरा बनाना चाहती हो बहुत कुछ भला बुरा बोलने लगी।
उसकी फ्रेंड उसका मुंह देखती ही रह गई ।उनको लगा शांता देवी नेतो अपने मुंह से कभी अपनी बहू की और बेटे की बुराई नहीं करी। असलियत यह है ।
जब वह बोल कर के चली गई ।तब इनकी फ्रेंड्स ने उनको समझाया कि इन लोगों के मन में तुम्हारे लिए बिल्कुल इज्जत नहीं है। घर तो तुम्हारा है जो तुम उनके नाम पर करना चाह रही थी। इनको बोल दो किराए का मकान ले कर रहे हैं। और तुम शांति से अकेले रहो। और कुछ काम करो तो मन लगा रहेगा कुछ समाज सेवा का काम करो। और वे चली गई। शांता देवी अकेली पड़ी सोच में डूब गई ।क्या करूं। ऐसे जिंदगी बसर हो सकती है।
सही है ना मैं तो नौकरानी ही बनकर रह गई हूं। और उन्होंने एक कड़क फैसला लिया । हॉस्पिटल से छुट्टी हो के घर गई । और बेटे बहू को बुलाकर फैसला सुना दिया तुम 5 दिन में किराए का मकान ले लो, और मेरा मकान खाली करो। और जो ना मकान मिले तो होटल में जाकर रहो मगर पांचवें दिन यह मकान खाली चाहिए। दोनों बहुत रोए गिड़गिड़ाए मगर शांति देवी अपने फैसले पर अटल थी। फिर उन्होंने उनको इमोशनली ब्लैकमेल करने की कोशिश करी, लोग क्या कहेंगे , तेरा एक ही बेटा है। तूने उसको भी घर से निकाल दिया। तू कितनी बुरी मां है। शांता देवी ने बोला मेने आज तक किसी को बाहर एक शब्द भी नहीं बोला ,और तुम्हारे अत्याचार सहन करती रही। मैं कमजोर नहीं थी। मगर मैंने सोचा घर की बात घर में रहे । मगर तुम्हारी बीवी ने हॉस्पिटल में आकर जो हंगामा करा है। उससे सबको पता लग गया है। कि कौन कितना बुरा है। और अब मेरे ऊपर तुम्हारी बातों का कोई असर नहीं होगा । पानी सर से गुजर गया है। तुमको मकान अलग लेना ही पड़ेगा। अगर व्यवहार अच्छा रहेगा, तो महीने में एक दो बार मिल लेंगे ।
और नहीं तो तुम तुम्हारे रस्ते और मैं मेरे रस्ते। मुझे जो करना होगा वह करूंगी ।
चार-पांच दिन बाद बेटा बहू होटल में रहने चले गए। फिर उन्होंने कुछ किराए का मकान ले लिया होगा । महीने में एक आद बार मिल लेते थे । बेटेबहू को अपनी गलती का एहसास हुआ । मगर मां इतनी तकलीफ हो से गुजरी थी ,वह वापस कोई भी रिस्क लेने ने तैयार नहीं थी। इसलिए यह उनके साथ रहने नहीं गई । ना उनको अपने साथ रहने बुलाया । और उन्होंने अपने मकान को जीते जी अपने लिए रखा ।और उनके मरने के बाद वहां अब वृद्ध आश्रम खोलने का अपनी वसीयत में लिख दिया। बेटे को खाली थोड़ा कैश मिला । बाकी सब उन्होंने एक ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को देने का फैसला कर लिया।
और वे शांति से अपनी इच्छा से अपने सामाजिक कार्य करते हुए अपनी जिंदगी सुख शांति से बसर करने लगी। मन में बहुत बार आता था लोग बेटा बेटा करते हैं। मगर ज्यादातर घरों में आजकल बेटे ऐसे ही होते हैं ।बहू के आने पर बदल ही जाते हैं। मेरे को तो फिर भी थोड़ी सद्बुद्धि मिली । मगर बहुत सारी औरतें बहुत सारे वृद्ध अपने बेटे बहुओं के अत्याचार के शिकार हो जाते हैं। इसीलिए सबको अपना ध्यान खुद रखना चाहिए। अपना आत्मसम्मान बचा कर रखना चाहिए ।आप किसी के निशाने पर ना हो । इसके लिए आपको खुद को जागरूक रहने की जरूरत है ।कोई आपको नुकसान कैसे पहुंचा सकता है।
