झुक गया चाँद
झुक गया चाँद
आज सवेरे से ही कलुआ घर में इधर-उधर चलने–फिरने लगा था I महीनों बाद उसके चेहरे पर हँसी दिख रही थी। बिना होशोहवास के पिछले तीन महीनों से... टीवी ग्रसित,वो मरणासन्न घर में पड़ा था। उसके दूकान बंद पड़े थे., जिससे घर की आर्थिक स्थिति पस्त थी।
उसकी सेवा में दिनरात बेहाल रुपनी, कलुआ के निकट आज चटाई पर बेसुध सो गई।
”माँ उठो... शाम हो गई। तुम्हें पूजा करनी है ना..?”
बेटी की आवाज सुनते ही रुपनी चहक कर उठ गई| झट से पूजा की थाल सजाने पूजाघर दौड़ी। तभी उसकी नजर सामने दीवार पर लगे बापू की फोटो पर पड़ी। वो थाल सजाते-सजाते बापू के ख्यालों में डूब गई —मेरे गरीब बाप के पास था ही क्या ..मात्र एक ऑटोरिकशा ! जिसपर घर का सम्पूर्ण दारमदार था। पैसों के अभाव के कारण मेरी शादी में वो भी बिक गया !
लड़का देखने में अच्छा था और छोटा सा दूकान था। सो चट बापू ने मेरी शादी उससे कर दी। लेकिन, लड़का शराबी-जुआरी है, ये किसी के ललाट पर थोड़े ही लिखा रहता है! जो किस्मत में था, सो मुझे सट गया। पति रोज पीकर आता, मुझसे लड़ाई करता। न.. कोई बात मानता और ना ही घर खर्च के लिए कभी ठीक से पैसे देता ! इस किचकिच से मैं परेशान रहती।
लेकिन, बेटी के पढ़ाई के चलते ये सब बरदाश्त करती रही | किसी तरह से बेटी बीए पास कर लेगी तो अपने पाँव पर खड़ी हो जायेगी। फिर उसे अपनी अनपढ़ माँ की तरह कभी घुट-घुट कर जीना नहीं पड़ेगा !
“माँ, देखो, चाँद निकल आया।” बेटी चिल्लायी।
सुनते ही, बेटी को साथ लेकर मैं चाँद देखने आंगन पहुँची। जैसे ही चलनी को ऊपर उठाई, चलनी के उधर से दो आँखें.... घूरती दिखाई पड़ी !
तभी उधर से आवाज भी आयी, “अब खुद से घृणा होने लगी है। आजतक नशे के काले चश्में से मुझे... केवल तुम्हारा जिस्म ही दिखा ! काश, तुम्हारे दिल में कभी जगह बना पाता ! आज मैं यहाँ जिन्दा खड़ा हूँ, सिर्फ तुम्हारी वजह से। तुम्हारी कसम, कल से पीना छोड़ दूँगा। माफ कर दो...मुझे।” कलुआ को अपनी ओर झुकते देख, रुपनी उसके हाथों को थाम, माथे को चूम लिया।
कलुआ का सिर नीचे झुक गया, उसकी आँखों से पश्चाताप पिघल कर बहने लगे।