झलक
झलक
'एक झलक' कितनी कीमती चीज़ हो सकती है,है ना! लड़का और लड़की अलग-अलग कॉलेज में थे।लड़की का स्कूल प्रायः लड़के के स्कूल से थोड़ा पहले ख़तम हो जाया करता था।लड़का क्लास ख़त्म कर दौड़ता भागता साईकिल स्टैंड पर पहुंचता था।पर जब तक वह पहुंच पाता था,लड़की अपनी साइकिल लेकर घर जाने वाली सड़क पर निकल चुकी होती थी।पर जाने क्या सोचकर वह पलटकर एक बार देख लेती थी, पीछे वो लड़का निर्निमेष पलकों से उसकी ओर ही देख रहा होता था।बस इतना ही हो जाता था हर रोज! और उसकी एक झलक कैद कर लेता था वो। जैसे जीवन की एक खुराक।इतने लंबे समय तक बस उसी झलक की खातिर हर दिन दौड़ते - भागते जाना।कितनी कीमती थी वो 'एक झलक'। आख़िर चार वर्षों का समय कम तो नहीं होता!

