पति पत्नी और जादुई खिड़की
पति पत्नी और जादुई खिड़की
ये पति-पत्नी कभी-कभी बहुत गंभीर डिस्कसन करते हैं, तब इन्हें लगता है दुनिया के परम ज्ञानी यही दो जीव हैं।कभी-कभी ये छोटी सी बात को लेकर खूब झगड़ते हैं और तब लगता है इनसे ज्यादा बच्चा कोई नहीं है।इनके घर में एक खिड़की है।खिड़की काफी लंबी है।इनको ये जादुई खिड़की लगती है।एक बार पति ने पत्नी का हाथ अपने हाथ में लेकर खिड़की के उस पार छलांग लगा दी।खिड़की से बाहर गिरते ही उन्हें एक पार्क मिला।पार्क में काफ़ी पेड़-पौधे हैं।पार्क के समानांतर एक नदी बहती है।नदी बहुत चौड़ी है।नदी के उस किनारे काफी दूर पर्वतों की शृंखलाएं हैं।पार्क में खड़े पति ने पत्नी को पर्वतों के ऊंचे शिखर को दिखाते हुए कहा-"एक दिन मैं तुमको वहां चोटी पर ले जाऊँगा।"
पत्नी बोली-"अच्छा।"
पति-"पर कैसे ले जाऊं।"
पत्नी-"जैसे आज लेके आये।मेरा हाथ पकड़ के कूद जायेंगे दोनों।"
पति-"पर मुझे तो तैरना नहीं आता"
पत्नी-"तो मुझे कौन सा तैरना आता है।"
दोनों हँसने लगते हैं।फिर दोनों खिड़की से वापस घर में आ जाते हैं।
खिड़की पर ग्लास के स्लाइडिंग दरवाज़े लगे हुए है और ग्लास के दरवाज़े के इस पार पर्दे लगे हैं।रात के खाने के बाद दोनों पति-पत्नी बैठे हुए कुछ बातें कर रहे थे कि तभी पत्नी को खिड़की के पार नदी के समानान्तर कुछ जलता हुआ दिखा।उसने कहा-खिड़की में देखो वहां नदी के किनारे कोई चल रहा है।इस सन्नाटे भरी रात में वहां कौन होगा।पति ने देखा।वहां कोई आदमी तो नहीं दिखा लेकिन एक छोटा सा प्रकाश का टुकड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।दोनों पति-पत्नी बच्चों की तरह कुतूहल वश इस क्रम को देखने लगे।पत्नी ने ध्यान लगाया और बोली-लग रहा जैसे कोई साईकल हैं और उसपे बत्ती लगी है।वही आगे बढ़ रही।पति ने ध्यान से देखा और बोला-मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा।
पत्नी-"देखो तो।"सहसा वो बोली "अरे पर्दे से खिड़की ढको वो प्रकाश का टुकड़ा रुक गया है।दोनों पर्दे के ओट में छुप गए और धीरे से गर्दन बाहर निकाल कर देखने लगे।प्रकाश पुंज रुका था पर फिर चलने लगा।"
पत्नी-"देखा, मैंने कहा था न, उसने देख लिया हमको।"
फिर दोनों ग्लास के दरवाजे पर पर्दे से सटकर धीरे-धीरे आगे बढ़ते और उस प्रकाश के छोटे टुकड़े को देखते हुए खिड़की के एक किनारे से दूसरे किनारे बढ़ रहे थे।दोनों को लग रहा था कि जैसे उनसे बड़ा जासूस कोई नहीं।पति की गर्दन थोड़ी ज्यादा निकलती तो पत्नी धीरे आवाज़ में डाँटती हुई उसके गर्दन को पीछे खींच लेती।दोनों जासूस पर्दे से चिपके खिड़की के एक किनारे से दूसरे किनारे पहुंच रहे थे।जब वो बिल्कुल किनारे पहुँच गए तो वो प्रकाश पुंज हवा में उड़ गया और उड़ता हुआ पर्वत शिखर की ओर गया।उसके आगे वो ओझल हो गया।इस क्रम में दोनों पति-पत्नी ने खिड़की को पर्दे से ढक दिया था।दोनों ने एक साथ बोला-"अरे ये तो तारा था।व्योम में चला गया।"
पत्नी-"कल से रोज रात को निगरानी रखेंगे।कभी न कभी तो चाँद भी नदी किनारे टहलेगा।" पति उसकी बातों को सुन मुस्कुराने लगा।दोनों के सोने का वक़्त हो गया था।
