जड़ें
जड़ें
शहर में लगे इस लॉक डाउन से अब सुखिया के हालात बद से बद्तर हो चुके। पिछले दो महीनों से घर बैठे अब आर्थिक तंगी ने मानो उसकी कमर तोड़ दी थी।
उसे अब वापस अपने गांव लौट जाना चाहिए, ये ख्याल पिछले कई दिनों से आ रहा था। पर वह फिर भी मन समझा जैसे तैसे शहर में ही था, क्योकि वह जानता था कि यदि इस दौर में यदि वह गांव लौट गया तो शायद वह फिर कभी शहर नहीं आ पाएगा।
और अपने जीवन के वो सुनहरे सपने जो उसने अपनी पत्नी के संग संजोए थे उन्हें कभी पूरा नहीं कर पाएगा। वह झोपड़ी के एक कोने ने बैठ इन्ही सब विचारों के बीच खोया था, की एक तेज आवाज से उसकी यह तंद्रा टूट गई।
उसने देखा अचानक आए एक हवा के बवंडर ने उसके घर का छप्पर ही तोड़ दिया है। और उसकी पत्नी उसे मदद के लिए पुकार रही है।
वह अब दौड़ता हुआ अपनी पत्नी के पास जा पहुंचा, वहां उस टूटे छप्पर को जोड़ने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने देखा।
कि घर के बाहर लगे एक विशाल पेड़ का वही हिस्सा इस भयानक आंधी के बाद, अब भी खड़ा हुआ था। जो पेड़ की जड़ों के करीब और उसे मजबूती से पकड़े था।