जब सब थम सा गया (नौंवा दिन)
जब सब थम सा गया (नौंवा दिन)


प्रिय डायरी,
आज सुबह उठते ही मैं अपने आप को थोड़ा थका सा महसूस कर रहा था।मुझे हल्का सा बदन दर्द हो रहा था।इसलिए मैं थोड़ी देर बिस्तर पर ही लेटा रहा।मोबाइल उठा कर नेट चालू करा तो व्हाट्स एप्प पर धड़ाधड़ मेसेज आने चालू हो गए।मेसेज खोलकर देखा तो आज नवरात्री का अंतिम दिन और राम नवमी की बधाईया सब मुझे भेज रहे थे।साथ ही जल्दी सब कुछ सही होने की कामना भी भेज रहे थे।मैंने भी तुरंत सबको मेसेज करने लगा।थोड़ी देर बाद नीचे से आवाज़ छोटे भाई सावन ने आवाज़ लगाई और कहाँ,"बड़े भैया नहा कर जल्दी नीचे आइए।"
मैं भी फटाफट नहां कर नीचे चला गया।दरहसल पिताजी का कोई लेटर कल आया था,जो की अंग्रेजी भाषा में था।बस उसी को समझाने के लिए पिताजी मुझे जल्दी नीचे बुला रहे थे।इतने में मेरे मामा जी का फ़ोन आया जो सिंगापुर में रहते हैं,पिताजी से वो सबका हाल चाल लेने लगे और अपने यहाँ की स्तिथि बताने लगे।बहुत ही निराश थे मामाजी,निराशा की वजह और कोई नही कोरोना के चलते उनकी दुकान बंद पड़ी हैं और भारत आने के लिए कोई साधन नहीं था।सुनकर मुझे भी दुःख हुआ क्योंकि विदेश में तो यहाँ से और कुछ नहीं किया जा सकता था,और जो नुकसान हो रहा था वो अलग ।
"खैर जो भी हो रहा हैं, अच्छा नहीं हो रहा हैं।"इतना बोलकर मैं ऊपर अपने कमरे में आ गया।11 बजे के लगभग मैं कंप्यूटर चालु करके अपने स्कूल का काम करने लगा,काम समाप्त करके मैं कंप्यूटर में ही "उरी" सिनेमा देखने लगा।सिनेमा देखते देखते कब 3 बज गया पता ही नहीं चला।
सिनेमा देख कर मैं अपने आप को बहुत ही जोशीला और सकारात्मकता महसूस कर रहा था,क्योंकि 'उरी' एक देश भक्ति सिनेमा हैं।जिसको जितनी बार भी देखो मन नहीं भरता हैं।सिनेमा देखने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गया और सोचने लगा,"आज सुबह से मैंने कोरोना संक्रमण की कोई जानकारी नहीं देखी?" लेकिन मन ही मन एक अलग सा सुकून भी मिल रहा था।दरहसल रोजाना ये खबर देख कर मैं बहुत ही अजीब सा महसूस कर रहा था,और एक अलग सा मानसिक तनाव हमेशा रहता हैं।
"आज क्या हुआ होगा?,
संख्या बढ़ी होगी कि घटी होगी? और न जाने क्या क्या विचार आ रहे थे।पर मैं अपने आप को समझने लगा की जानकारी लेकर कर भो क्या कर लोगे,लॉक डाउन है 21 दिन का, घर से बाहर तो 14 तारीख के बाद ही पता चलेगा निकलना है कि अभी रुकना है?,
वास्तविकता बताऊँ तो अब घर में रहते रहते लगभग सब बोरियत महसूस कर रहे है,और बाहर जाना चाहते है।लेकिन इस खुश खबर के लिए सब्र करना पड़ेगा। यही सब बातें मैं सोच रहा था कि वाराणसी के एक मित्र का फ़ोन आया जो की उत्तर प्रदेश पुलिस में कार्यरत है।मैंने फ़ोन देखा तो बहुत खुश हुआ क्योंकि बहुत दिन बाद आज मित्र अभय का फ़ोन आया था।
बात करते करते पता चला कि लोग समझने पर भी नहीं मान रहे हैं,और पुलिस को परेशान भी कर रहे हैं।
अभय ने बताया कि ,"भाई दीपेश कोरोना को कुछ लोग अभी भी गंभीर नहीं समझ रहे हैं और छोटी-छोटी बात के लिए घूमने का बहाना ढूंढ रहे हैं,इसलिए बस घर से निकलने का कोई न कोई बहाना ढूंढ रहे हैं।"सुनकर तो मुझे गुस्सा आया पर मैं मजबूर था।
मित्र अभय ने एक और घटना बताई।उन्होंने कहा कि दो दिन पहले एक महिला के घर में जो भी सामान जरुरत होता था ,उसके एक फ़ोन पर हम सब समय समय पर खाना और जरुरी सामान पहुँचा रहे थे।लेकिन वो उस सामन को किराने की दूकान पर जाकर वापिस बेच देती थी, और जब अधिकारी जायजा लेने पहुँचते तो कहती की कुछ नहीं मिला साहब।बाद में पड़ोस के एक व्यक्ति ने फ़ोन करके बताया कि साहब आप लोग जो सामन इस औरत को लाकर देते हैं, वो उसको बेच देती हैं,सबूत के तौर पर मेरे पास उसका वीडियो भी हैं।"
बस फिर क्या था पुलिस और अधिकारी वहां पहुचे और घर में देखा तो औरत झूट बोलने लगी,लेकिन इस बार वीडियो ने उसकी सारी पोल खोल दी।औरत गरीब थी इसलिए उसे समझा कर कहा अब मत करना।औरत बोली,"गलती हो गई साहब अब नहीं होगा ऐसा कभी।" मैंने बात बात मैं ही मित्र अभय का हाल चाल लिया और उन्होंने मेरा,साथ ही मैंने मित्र से कहा कि अपना ध्यान देना सब चीज़ सही होने पर जल्द ही वाराणसी आऊंगा।
इतना बोलकर बात समाप्त हो गई।
फ़ोन रखने के बाद मैं सोचने लगा की पुलिस और डॉक्टर हर प्रकार से सबकी मदद कर रहे हैं।लेकिन लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते।शाम को मैं टीवी पर समाचार देखने के लिए टीवी चालू किया तो देखा की कोरोना संक्रमिति की संख्या लगातार बढती जा रही हैं और आज 2000 के आंकड़े को पार कर चुकी हैं।ऐसा तो होना ही था लोगो की बेवकूफी अब भारी पड़नी ही थी।मैं यही सोच रहा था कि अब नहीं संभलोगे तो अन्य देशों जैसे स्तिथि भारत की भी हो जायेगी?इस खबर से मेरा पूरा मन ख़राब हो गया,और गुस्से में मैंने टीवी बंद करके बाहर निकल गया। गुस्सा इतना था कि कोई मिल जाता तो डंडे मार मार के सीधा कर देता।लेकिन ये बस एक काल्पनिक सोच थी। मैंने अपने आप से यही कहा कि,इस देश का प्रधानमंत्री निवेदन करता हैं कि 21 दिन संभल जाओ नहीं तो 21 साल पीछे चले जाओगे।लेकिन ये बात जब बेवकूफो को समझ में आये तब न।
शाम को पूजा पाठ और आरती के बाद दिन भर की चर्चा एवं फलहार के लिया सब एकत्रित हुए।सब आज की स्तिथि पर गुस्सा थे।लेकिन बच्चो ने सबका मन बहलाकर सही कर दिया। हस्ते हस्ते हम सभी लोग अपने अपने कमरे में चले गए।मैं ऊपर अपने कमरे में आया ,जीवन संगनी जी का हाल चाल लेकर पाठ्यक्रम की किताब पढ़ने लगा।जब नींद आने लगी तो एक कविता लिखने का मन किया।मैंने बिना समय गवाये कविता लिख डाली जो 'कोरोना' के ऊपर थी।
कविता लिखने के बाद मैंने अपनी आज की कहानी लिखी और सो गया।
इस तरह लॉक डाउन का नौवाँ दिन भी समाप्त हो गया।लेकिन कहानी अगले भाग में जारी है।