जब सब थम सा गया(दिन-24)
जब सब थम सा गया(दिन-24)


प्रिय डायरी,
आज लॉक डाउन को 24 दिन हो गए थे। अब तो ऐसा लगने लगा था कि मानो आपके आस पास कोई हैं ही नहीं। मन में बस नकारात्मक विचार आ रहे थे। मैं सोच रहा था कि क्या ऐसी कोई दवा नहीं आएगी जिससे हम इस बीमारी से छुटकारा पा सकेंगे। शुक्र हैं कि मैं परिवार के साथ हूँ अगर अकेला कही फस होता तो क्या होता। यही सब विचार मन में चल रहे थे की मंदिर में पिताजी ने भजन चलाया। भजन सुनने के बाद मानो मन शांत हो जाता हैं और सकारात्मक ऊर्जा मिलने लगी। मैं बिस्तर छोड़कर छत पर चला गया और अब नियमित रूप से सूर्य नमस्कार और योग करना प्रारंभ कर दिया। इससे बहुत हद तक मन और शरीर दोनों को बहुत शांति मिलता हैं। योग खत्म होने के बाद मैं कुछ देर छत पर बैठ गया और पक्षियों के समूहों को आसमान में उड़ते हुए देख रहा था,और थोड़ी देर में सूर्योदय हो गया। एक बहुत ही अच्छी बात मैंने किसी संबोधन में सुना था कि यदि जीवन में सफल होना चाहते हो तो सूरज को जगाने मत दो खुद उठ कर सूरज को जगाओ।
कुछ देर बाद नीचे आकर स्नान करके मैं पूजा पाठ करने नीचे चला गया। मेरी प्यारी भांजी नायरा जो भी पूजा करने जाता हैं उसके साथ साथ जाकर पूजा करवाती हैं। दरहसल पूजा तो बहाना हैं बस प्रसाद खाना होता हैं। पूजा समाप्त करके मैं टीवी देखते हुए नाश्ता करने लगा। नाश्ते में आज डोसा बना था। जब हम लोग छोटे थे तब पिताजी का ट्रांसफर (आवडी चेन्नई) में हुआ था,वही से मुझे दक्षिण भारतीय भोजन बहुत प्रिय लगने लगा था। नाश्ते के बाद मैं कुछ देर टीवी में समाचार देखने के बाद अखबार पढ़ने लगा। नीमच में 2 दिन का संपूर्ण लॉक डाउन था। इसलिए आज किसी भी प्रकार की हल चल नहीं दिख रही थी। खबर में 22 कि मी दूर के एक गाँव में कोरोना संक्रमित परिवार के 8 सदस्यों का सैंपल जांच के लिए गया हैं। देखिये कब रिपोर्ट आता हैं,क्योंकि वे सभी सदस्य नीमच के आइसोलेशन केंद्रे पर भर्ती थे।
अकबर पढ़ने के बाद मैं आँगन में जा रहा थी की अचानक बिजली चली गयी। कही शार्ट सर्किट हुआ था। भाई रूपेश हर कार्य में निपुण हैं। इसलिए वो वायरिंग देखने लगे । मैं और भाई सावन रूपेश की मदद कर रहे थे। बिजली सही करते करते 1 बज गए। तब जाकर सफलता मिली। यदि यही कार्य बिजली सही करने वाले मिस्त्री को बुलाना पड़ता तो इस लॉक डाउन में व्व भी आज के दिन बुलाना असंभव था। किसी ने सही कहा हैं कि व्यक्ति को हर कार्य का ज्ञान होना चाहिए और जब कभी जरुरत पड़े तो उसका इस्तेमाल भी करना चाहिए।
हम सबको भूख भी लगी थी और दोपहर के भजन का समय भी हो गया था। भोजन करने के बाद हम सभी अपने कमरे में गए और सो गए,क्योंकि सभी थक गए थे।
4 बजे के लगभग मेरी नींद खुल गयी और में मोबाइल पर कोरोना सम्बंधित खबरे देख रहा था। इस लॉक डाउन के दौरान में मोबाइल बहुत कम इस्तेमाल करने लगा हूँ। जो की मेरे लिए बहुत अच्छा हैं। वैसे मैं जब स्कूल में पहूँचता हूँ तो मोबाइल जमा हो जाता हैं और फिर सीधा शाम को छुट्टी के बाद मिलता हैं लेकिन स्कूल से घर आने में मुझे एक घंटा लगता हैं क्योंकि बस के सफर में मोबाइल ही एक मात्र सहारा रहता रहता हैं। धूप अभी भी तेज थी तो मैं एक कहानी की किताब लेकर पढ़ने लगा। 5:30 बजे मैं अपने पेड पौधों की देख रेख करने लगा। पौधों में पानी डालने के बाद रेम्बो मुझे देख कर भौकने लगा। मैं उससे कुछ दूर टहलाने लगा। इस लॉक डाउन ने सबको ये बता दिया की मुसीबत जब आती हैं तो न अमीरी देखती हैं और न ही गरीबी। रेम्बो को टहलाते समय सामने के खेत पे काम करने वाले भैया ने कहा,"भैया आज पूरा बंद था और सब्जी ज्यादा तोड़ लिया था ,क्योंकि मुझे पता नहीं था तो आप सब्जी ले लेंगे। " मैंने कहा,"हाँ बिलकुल। मैं सब्जी ले ही रहा था कि पड़ोस की भाभी ने कहा कि सब्जी हम लोगो को भी चाहिए मैंने पूछ कर सारी सब्जी बिकवा दी। खेत वाले भैया ने कहा,"भैया बहुत बहुत धन्यवाद नहीं तो सब्जी खराब हो जाता। "
शाम का समय हो गया था। आरती के बाद हम सब कोई कैरम खेलने लगे। लॉक डाउन से पहले किसी के पास इतना समय नहीं था कि कैरम खेले लेकिन आज कल सभी के पास बहुत समय हैं। कभी कभी सोचता हूं कि लॉक डाउन सही हैं या गलत?रात्रि भोजन के बाद मैं कुछ देर चाट पर टहल कर नीचे आ गया और अपनी पुस्तक उठा कर पढ़ने लगा। गर्मी वास्तव में अब दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। 12 बजे पढाई करने के बाद में कहानी लिखने लगा। लेकिन कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
इस तरह लॉक डाउन का आज का दिन भी खत्म हो गया। गर्मी भी अब अपना रुख दिखने लगी थी। देखिये अब आगे कग होता हैं। कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...।