Ravindra Shrivastava Deepak

Thriller

4.0  

Ravindra Shrivastava Deepak

Thriller

इत्तेफ़ाक..एक अनहोनी (अंतिम)

इत्तेफ़ाक..एक अनहोनी (अंतिम)

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चंदन और उसके गुंडे जैसे ही सलोनी और रोहन को मारने के लिए उनके तरफ बढ़े ही थे कि एक नकाबपोश उनके और सलोनी के बीच आ खड़ा हुआ। उन गुंडों नें सलोनी और रोहन के बजाए नकाबपोश पर वार किया। काफ़ी मारपीट होने के बाद आखिरकार नकाबपोश नें चंदन को पकड़ लिया जिसे देख उसके गुंडे भाग खड़े हुए। चंदन के एक वार नें नकाबपोश को भी घायल कर दिया था जिससे ख़ून बह रहा था। नकाबपोश- "चंदन, तुम दोनों को जान से क्यों मारना चाहते हो ?"

चंदन- "सलोनी नें मेरी ज़िंदगी तबाह कर दी। उसके चलते मेरी हँसती खेलती दुनियां उजड़ गई। नौकरी चली गई। समाज के ताने भी सुने मैंने। इसलिए मैं बदला लेना चाहता था। पर तुम इनलोगों के बीच आ गए। आखिरकार तुम हो कौन और इन्हें बचाया क्यूँ ? आख़िर ये क्या लगते है तुम्हारे ?"," चंदन, तुम्हें ये नहीं पता कि ये दोनों मेरे क्या हैं, इतना जान लो कि ये मेरे जीवन से कहीं बढ़कर है।" इसी बीच बहते खून को देख सलोनी ने आँचल फाड़ा। फिर नकाबपोश के ज़ख्म पर बांध दिया। इसपर उसनें जैसे ही "खुशी" कहकर पुकारा तो सलोनी को लगा जैसे उसकी ज़िंदगी मिल गई हो। इस नाम से तो सिर्फ राकेश पुकारा करते थे। तुमको ये नाम कैसे पता चला ? तुम कौन हो ? सलोनी की धड़कने तेज हो गई थी। उसकी बेचैनी बढ़ी जा रही थी। बार-बार पूछ रही थी "तुम कौन हो ?" इसपर उस नकाबपोश ने जैसे ही नकाब को हटाया तो सलोनी की आंखे खुली रह गई। "मैं राकेश हूँ सलोनी। तुम्हारा जीवनसाथी,तुम्हारा पति राकेश, तुम्हारा हमसफ़र।"ये सब देख सलोनी मानो पत्थर की मूरत हो गई हो। अपनें ही स्थान पर खड़ी, शांत और सिर्फ राकेश को घूरे जा रही थी। वो न जाने किस दुनियां में खो गई थी। राकेश नें उसे पकड़कर हिलाया तब उसके आंखों में खुशी के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बार-बार राकेश को पकड़ती, गले लगाती, रोते हुए सवाल पूछती की "आखिर इतनें दिन हमसे क्यों दूर रहे, बताओ..बताओ मुझे। आखिर हमारी याद नहीं आई तुम्हें ? कितने निर्दयी हो तुम। हम दोनों की दुनियां तुम्हारे बगैर कितनी वीरान हो गई थी। समाज के ताने सुनकर मैं व्याकुल हो जाती थी। बताओ..चुप क्यों हो ?" "सलोनी, मैं खुद तुम दोनों से दूर रह कर तिल-तिल मरता था। पर मेरा यह शरीर मुझे इजाजत नहीं देता था कि मैं आ पाऊं। मेरा सीरियस एक्सीडेंट हो गया था और ये एक्सीडेंट करवाया गया था। कंपनी में मैंने कुछ गड़बड़ी देखी। कंपनी का बॉस भी इसमें शामिल था। उसका स्मगलिंग का काम था। उस रात मैं नाईट ड्यूटी पर था। कुछ काम के सिलसिले में बॉस के चैम्बर में गया तो वो वहाँ नहीं थे। फिर खोजते हुए वेयरहाउस में गया। मैंने देखा कि कुछ लोग जिसमें बॉस भी शामिल थे, अफ़ीम, चरस, कोकीन को पैकेट में भरकर ट्रक में रखवा रहे थे। मैंने जब पूछा तो उन्होंने मुझे चुप रहने की सलाह दी। जब मैंने बोला कि पुलिस से शिकायत कर दूंगा तो उन्होंने मुझे चुप रहने के लिए 5 लाख रुपये देने के लिए भी कहा। मगर मैंने मना कर दिया और पुलिस स्टेशन की ओर जाने लगा। उसके गुंडों नें मेरा पीछा किया और बीच रास्ते में गाड़ी में टक्कर मार खाई में धकेल दिया। मगर भगवान के कृपा से मैं बच गया। गाँववालों नें मेरा इलाज कराया। मैं कोमा में चला गया था। ये कोई इत्तेफाक से कम नहीं की मैं आज तुम्हारे सामने ज़िंदा खड़ा हूँ। यहाँ जब आया तो पता चला कि तुम दोनों पर भी खतरा है। इसलिए यह जानने के लिए की इसके पीछे कौन है मैं अबतक नकाबपोश बना रहा। उस दिन मैंने ही रोहन को स्कूल से पिक किया था। खतरे को जानकर मैंने ही ऐसा काम किया। इन बातों को राकेश बता ही रह था कि चंदन ने भागने की कोशिश की लेकिन राकेश ने उसे पकड़ लिया। भागते कहां हो ? तुम्हारे बॉस को भी अभी पकड़वाना है। उसी के चलते एक परिवार इतनें दिनों से दुःख झेला। मैं इतने दिनों से कोमा में परिवार से दूर रहा।" राकेश नें पुलिस को बुलाकर चंदन और उसके बॉस को पकड़वाया। राकेश नें बस अपनें बॉस को एक ही बात कही "जाको राखे सइयां, मार सके न कोई" ये इत्तेफ़ाक तुम्हें ज़िंदगी भर याद रहेगा कि मैं मौत के मुंह से जिंदा वापस कैसे आ गया।"


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