नम्रता चंद्रवंशी

Romance

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नम्रता चंद्रवंशी

Romance

इसमें किसका घाटा।

इसमें किसका घाटा।

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आज वर्षों बाद हम अपना जी मेल अकाउंट खंगाल रहे थे।विज्ञापन वाली सैकड़ों मेल्स को डिलीट कर कर के हम बिल्कुल थक गए थे।सोचे कि ऑल डिलीट का ऑप्शन प्रेस कर दे,तब तक हमको कुछ ऐसा दिख गया जिसका हमको अभी तक के जिंदगी में कभी उम्मीद नहीं हुआ था।

एक मेल ऋषु321@जीमेल.कॉम से हमको लगभग एक साल पहले आया हुआ था।पहली बार देख कर तो हमको अपनी आंख पर भरोसा ही नहीं हुआ ।हम दोनों हाथो से अपना दोनो आंख को मईसे (हल्का हल्का दबाना) और दुबारा देखें।इस बार हमको विश्वास हो गया था कि उसी का मेल था।हम फटाक ( जल्दी) से मेल ओपन किए और पढ़ने लगे।मेल बस एक लाइन का ही था -" हाउ आर यू,वांट टू टॉक यू?

बस इतना ही पढ़ के हमको बहुत खुशी हुई था।हमको थोड़ा सा हसी आया और मन ही मन सोचे की कमिने को हमारा याद आ ही गया। साथ ही अपने पूर्व - पूर्व प्रेमी पर थोड़ा थोड़ा गर्व भी हो रहा था।

सबसे खुशी तो इस बात का हो रहा था कि हमारे पति अभी तक ये मेल को नहीं देखे थे। और गर्व इसलिए हो रहा था ऋषु पर की अगर हमारे पति पढ़ भी लेते तो कोई बात नहीं।बहुत बहाना का ऑप्शन था, वो ईमेल में कोई बात क्लियर नहीं लिखा हुआ था,यही तो ऋषु का विशेष खासियत था।वो कभी क्लियर क्लियर बात ही नहीं करता था।हमेशा घुमा - घुमा के गोल मटोल बात कर के हमारा दिमाग चकरा देता था।

खैर कोई बात नहीं जैसा भी था ,हम उस से वैसे ही, बहुत प्यार करते थे।बचपन का दोस्त भी मेरा एक मात्र वही था।स्कूल में भी साथ ही पढ़ते थे।वो हमसे हमेशा आगे रहता था।वैसे भी हमको पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था और हम थोड़ा सा गवार टाइप मेरा कहने का मतलब गांव के लोग जैसा थे ।शायद इसीलिए उसको हमारे साथ चलने में बेइज्जती फील होता था।फोन पर ठीक ठाक से ही बात करता था, लेकिन साथ चलते समय हमेशा हम से आगे आगे और दूर दूर चलता था।हमको पहले ई सब समझ में नहीं आता था कि अपने आप को थोड़ा मेंटेन कर के ठीक से रहे, नहीं तो हमारा प्रेमी हमको छोड़ कर चला जाएगा।दिमाग ही नहीं था उतना!!जबकि हम तो अठारह साल पार कर के उन्नीस साल के हो गए थे।फिर भी अकल नही नहीं आया था हमको। हम पूरा बेवकूफ और गवार किसिम के लड़की थे।

हमको ई बेवकूफी बहुत महंगा पड़ने वाला था। उसका जीवन में एक दूसरा लड़की ,सुंदर तो नहीं थी खूब लेकिन बोलने चलने में स्मार्ट और मेंटेन रहने वाली,आने वाली थी।उसका नाम भी हमरा नाम से बहुत बढ़िया था।उसका नाम से ही मॉडर्निटी झलकता था और ऋषु के नाम के साथ मैच भी करता था।उसका नाम लेने में भी अच्छा नहीं लगता है पर अभी के सितुएशन में बताना जरूरी है इसीलिए बता दे रही हूं,उसका नाम था "ऋतु "।

दोस्त ही थी वो भी हमारी मतलब हम दोनों की । पहले हम उसके साथ थोड़ा बहुत बात भी कर लेते थे लेकिन अब तो वो मुझे फूटी हुई आंख भी नहीं सहाती थी।बहुत नफ़रत करते थे हम उस से लेकिन बोल नहीं पाते थे।का बोलते दोनो के दोनो ही खाली हम दोस्त हैं यही बोलते थे।और तो और हमारा सोच पर भी सवाल खड़ा कर देते थे।

खैर कोई बात नहीं था हम अभी भी ऋषु से उतना ही प्यार करते थे।उस डायन के आने के बाद भी हमको लगता था कि वही कामिनी फसा ली है हमारा ऋषु को ,वरना ऋषु तो हमको सात जन्मों तक छोड़ कर नहीं जाएगा।

इतना विश्वास करते थे हम उस पर।

हम अपना गृह जिला में ही आर्ट्स लेकर पढ़ाई कर रहे थे और ऋषु अपने पापा के पैसे के बल पर ,सॉरी ..अपने काबिलियत के बल पर इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने हमसे पांच सौ किलोमटर दूर चला गया था।

हमारे पास तो फोन भी नहीं था उस टाइम पर कोई दोस्त से फोन मांग कर कभी कभार फोन करते थे उसको और वो भी हमको उन्हीं के फोन पर फोन करता था।धीरे - धीरे हमलोग ज्यादा बतियाने लगे थे फोन पर।कभी कभी तो पूरा का पूरा कॉलेज टाइम में बात करते रहते थे।बात कर के आराम से छुट्टी के टाइम पर घर चल देते थे।कमिनी दोस्त हमारी इनकमिंग कॉल का भी हर घंटा के हिसाब से बीस रुपया लेती थी हमसे।बोलती थी तुम्हारा फोन दूसरा स्टेट से आ रहा है इसीलिए रोमिंग कट कटता है। पहले हमको पता ही नहीं था न कि वो कॉलेज तो हमारा ही राज्य में है।हालांकि उसका हमलोग सब मिलकर फूचका (पानीपुरी) खा लेते थे कॉलेज के बाहर।

हमारा प्रेम कहानी अभी तक बिल्कुल अच्छा चल रहा था।वो ऋतू के चंगुल में अभी तक हमारा ऋषु नहीं फसा था, ऐसा हमको लगता था क्यूंकि ऋषु और ऋतू हमको अभी तक कुछ भनक ही नहीं लगने दिया था।हम तो खुद ही वेटिंग पर रह लेते थे जब वो दोनो बात करते रहते थे।कभी कभी तो फोन भी काट देते थे अपना।हमको क्या पता था कि हम अपने पैर पर कुल्हाड़ी मर रहे थे।

अभी तक भी हम बिल्कुल भोली और बेवकूफ लड़की ही थे।हमारा मन में अभी भी कोई शक वक का कीड़ा पैदा नहीं हुआ था।निश्छल प्रेम करते थे उस कमिने से और अभी भी हमको लगता था कि वो भी हमसे उतना ही प्यार करता है।वो जब भी आता था हमसे जरूर मिलता था।वो आज भी हमसे फोन पर लगातार चार पांच घंटे तक बात करता था।मोबाइल को चार्ज में लगा कर,तो कभी क्लास बंक कर के वो मुझसे बात करता था।उसे पता था कि केवल कॉलेज टाइम में ही हम से बात हो पायेगा।

दिखाई देने लायक परिवर्तन तो तब हुआ जब कुछ समय के बाद वो लड़की ऋतू का भी एडमिशन वहीं कॉलेज में हो गया।अब तो दोनो साथ ने ट्रेन से आना जाना भी करते थे।ये सब हमको भी पता था ।सोचते थे कोई बात नहीं हमारा ऋषु कुछ भी हो जाए हमको धोखा नहीं देगा कभी।लेकिन नहीं हम बिल्कुल गलत थे।

        अचानक से ऋषु का रवैया बदलने लगा।वो आध्यात्मिक बात करना शुरू कर दिया था।जैसे जीवन ,मृत्यु, कर्म ,पाप ,पुण्य आदि।हम सोचे की क्या हो गया है इसको ये कैसा कैसा बात कर रहा है।रोमांटिक से अचानक आध्यात्मिक कैसे हो गया।शायद हम उस से एक दो बार शादी के लिए बात कर दिए थे इसीलिए!

   अब तो वह मानव सेवा और सन्यासी जीवन आदि से संबंधित ही बात करने लगा था।धीरे धीरे फोन पर भी बात करना कम होने लगा था।हमको कुछ कुछ शक होता था लेकिन हम अपना मन को जोर से डांट कर चुप करवा देते थे।और मन में अडिग विश्वाश लिए अभी भी चट्टान के जैसे स्थिर थे।

कोई कोई और दोस्त भी हमारा वहीं कॉलेज में पढ़ता था।कभी कभी हमको बोलता भी था कि वो लोग आज ऋषु और ऋतू को साथ में देखा है ,कभी बाज़ार में ,तो कभी माॅल में ।लेकिन जब तक कोई और हमको बताता ऋषु ही हमको बता देता था कि आज वो ऋतू के साथ घूमने गया था। लो कर लो बात ऐसे व्यक्ति पर कोई कैसे शक कर सकता है भला!

   आखिरकार जो होना था वहीं हुआ ऋषु को ऋतू से सच्चा वाला प्यार हो गया था ।जब हमको विश्वाश हुआ उसके करीब दो साल पहले से ही प्यार का ट्रेन रफ्तार ले लिया था।लेकिन हमको अभी भी यही बताया जा रहा था कि मेरे दिमाग में कीड़ा है बस।वे लोग तो अच्छे दोस्त है। और ऋषु ,अब तो अध्यात्म कि और बढ़ चला था।उसके लिए अब प्यार - व्यार जिंदगी ,मौत का कोई मतलब नहीं था।वो तो मोह माया के दुनिया से काफी ऊपर उठ गया था।ऋषु तो हमसे पूछा छुड़ाने के लिए यहां तक कह दिया था कि वो हमको कभी प्यार किया या करता ही नहीं था।

हमको भी बहुत झालहट लगने लगा था ई सब से।एक साल से काफी ज्यादा हो गया था ।समझ में ही ही नहीं आ रहा था कि हम सही है या गलत।

हम भी अपने साथ कॉलेज में पढ़ने वाले एक लड़के को प्रपोज कर दिए ,भगवान की कृपा से वो मान गया!

दूसरे दिन ऋषु को जानकारी देने के लिए फोन कर दिए की जाओ खुश रहो,अब आज़ाद हो तुम हमसे।वो भी सदा खुश रहो का आशीर्वाद देकर फोन फट से काट दिया।

उसके बाद हम भी थोड़ा पढ़ाई करने लगे, थोड़ा बहुत अंग्रेजी सीखने के साथ साथ थोड़ा मॉर्डन भी हो गए।एक प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश भी पढ़ाने लगे।बीस हजार महिना भी कमाने लगे।थोड़ा सा शायराना हो रहा है लेकिन यही सच है।हम अपने दूसरे पूर्व प्रेमी और वर्तमान पति से शादी भी कर ली।हमरा एक सुंदर बालक भी है।

अब जाकर इसकी नींद खुली कमिने की तो खुश हो ऊ या दुखी समझ में नहीं आ रहा है!

बात क्या करनी थी वो भी पता नहीं चल पा रहा है।एक साल के बात वो बात भी ख़त्म हो गईं होगी!कई सवाल आ रहे थे मेरे मन में।इसका एक उपाय निकाल लिए हम।फेसबुक खोले और सबसे पहले उसको अनलॉक किए, अभी तक ब्लॉक मार कर रखे थे उसको।उसका फेसबुक अकाउंट खोले डीपी देखे तो अपनी पत्नी और एक प्यारी सी बेटी के साथ मुस्कुराते हुए खड़ा था।बेटी लगभग एक साल की हां लग रही थी।पत्नी भी उसके पसंद के जैसे ही मॉर्डन लग रही थी पर ऋतू नहीं थी।किसी और से शादी किया था वो।

हम समझ गए थे कि वो हमको अपने शादी के इन्विटेशन देने के लिए ईमेल भेजा होगा।

हम मन ही मन मुस्कुराए और डीपी एक बार फिर से ज़ूम कर के देखे और फिर फेसबुक क्लोज कर दिएं।वैसे मेरा नाम विशाखा और मेरे पति का नाम विशाल है ,हमारा नाम तो बिल्कुल मैच खा गया , उसका पता नई!कहानी के शीर्षक पर न जाएं ,घाटा तो सिर्फ उसका ही नहीं, हमारा भी हुआ है!!!



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