नम्रता चंद्रवंशी

Crime

4  

नम्रता चंद्रवंशी

Crime

गोपाल ।

गोपाल ।

13 mins
805


चौदह साल आजीवन कारावास की सजा काटने के बाद, गोपाल आज सेंट्रल जेल हजारीबाग से रिहा हो रहा था।वह बेहद ही खुश था।वह पूरे अठारह सालों के बाद खुले आसमान के नीचे सांसे ले रहा था।उसकी नजर बाहरी दुनियां के एक एक खूबसूरती को एकटक निहार रही थी।जेल से छूटने के बाद वो अपने परिवार के साथ बाकी की जिंदगी सुकून से बिताना चाहता था।

दिसंबर का महीना था,गोपाल जेल के अहाते के बाहर ही एक पेड़ की छाया में खड़े होकर बस डिपो जाने के लिए किसी ऑटो रिक्शा का इंतेजार कर रहा था।

गोपाल एक ढीला - ढाला पैजामा और कुर्ता पहना हुआ था।ठंड काफी थी इसलिए वह भूरे रंग का मॉफ्लार ओर काले रंग का कम्बल ओढ़े हुए था।पैरों में हवाई चप्पल था जो एडी के पास पूरी तरह से घिसा हुआ था।हाथ में एक गठरी था जिसमें कुछ पैसे जो वह जेल में काम करके कमाया था और एक चादर था।

गोपाल रिहा होने के बाद भी थोड़ा दुखी था।आज उसे जेल से लेने कोई नहीं आया था!शायद उसके घरवालों को यह भी नहीं पता होगा की आज उसकी रिहाई होने वाली है!!

उसकी पत्नी और बच्चों को भी उसके आने का इंतेज़ार नहीं था।हो सकता है पत्नी को हो लेकिन उसको भी तारीख वारिख का ज्ञान कहां था अनपढ़ जो ठहरी।

गोपाल को शायद उम्मीद भी नहीं थी किसी के आने की क्यूंकि बीते चौदह सालों में उससे मिलने कोई नहीं आया था।गिरफ्तारी के शुरुवाती दिनों में उसकी पत्नी कमला देवी एक दो बार मिलने आई थी लेकिन फिर वह भी आना छोड़ दी थी।

गोपाल भूत और भविष्य में उलझा हुआ था कि एक ऑटो रिक्शा आया थोड़ी धीमी करके ड्राइवर ने आवाज दिया -" कहां जाना है भईया??"

गोपाल कहीं और ही गुम था।

ऑटो ड्राइवर फिर से थोड़ा तेज आवाज दिया - " कहां..जाना है??"

गोपाल ध्यान टूटा ओर उत्तर दिया -" बस डिपो चलोगे क्या??"

ऑटो ड्राइवर ने उत्तर दिया - " हां.. बैठो जल्दी।"

ऑटो में पहले से ही बीच वाले सीट में दो और आगे ड्राइवर के पास एक सवारी बैठा हुआ था।

ऑटो ड्राइवर अपने सीट से थोड़ा आगे खिसक गया और गोपाल को बैठने का इशारा किया।

गोपाल अपना गठरी को कम्बल के अन्दर संभाल कर रखा और ऑटो में सवार हो गया।

ऑटो ड्राइवर ने ब्रेक हटाया और सर र... से गाड़ी बढ़ा दिया।

ऑटो ड्राइवर को गोपाल का हुलिया देख कर लग रहा था जैसे ये शहर में नया आया हो!!

ऑटो ड्राइवर ने गोपाल से सवालिया अंदाज़ में पूछा - "कहां जाना है?"

गोपाल ने उत्तर दिया - " हैदर नगर,पलामू??"

ऑटो ड्राइवर गोपाल को सलाह देते हुए बोला -"ठीक है । बस डिपो में गेट के पास ही पलामू की बस लगी रहती है,आप उसमे बैठ जाना।"

गोपाल सिर को हिलाते हुए जवाब दिया "हूं..ठीक है।"

बस डिपो यहां से लगभग सात कम दूर शहर के बाहरी क्षेत्र में था।ऑटो वाले ने ट्रैफिक साफ पाकर गाड़ी को ओर स्पीड कर दिया

तभी अचानक बुलेट पर सवार एक आदमी ने ऑटो को रुकने का इशारा किया।ऑटो ड्राइवर को लगा कि शायद वह रास्ता भटक गया है और पत्ता पूछने के लिए ऑटो रुकवाना चाहता है!इसलिए वह ऑटो नहीं रोका और तेज चलाने लगा।

तभी बाइक सवार ने ऑटो को आगे से घेर लिया और गोपाल को उतारने का इशारा करने लगा।गोपाल बिल्कुल सहम गया था।उसकी आंखों में कौफ साफ साफ दिख रहा था।वो ऑटो ड्राइवर की ओर सटने लगा।लेकिन चारों में से एक से गोपाल को जबरदस्ती ऑटो से खींच लिया और सिर हिलाकर आंखों से ऑटो ड्राइवर को चले जाने का इशारा किया। और अपने कमर के पास जीन्स में दबे हुए पिस्टल निकलता है और गोपाल को घसीटते हुए रोड से दस मीटर दूर ले जाता है।

ऑटो ड्राइवर और ऑटो में सवार बाकी लोग काफी घबरा गए थे।ड्राइवर ऑटो लेकर थोड़ी दूर पहुंचा ही था कि धाय...धाय.. गोलियों की आवाज उसके कानों में गूंजी।उसने ने गोपाल को गोलियों से भून दिया था।गोपाल का गठरी हाथ से छूट कर कुछ दूरी पर पड़ा हुआ था।चप्पल एक पैर में ज्यों की त्यों थी।माॅफ्लार ओर कम्बल में गोलियों से कई जगहों पर छेद हो गया था और खून से सना गया था।

मारने वाले ने उस पर एक भी रहम नहीं दिखाई थी!

ऑटो ड्राइवर सवारियों को उतार कर जल्दी से नजदीकी पुलिस थाना जाने के लिए ऑटो स्पीड में भगाया।रास्ते में वह गोपाल के शव को देखा ,तब तक अपराधी वहां से भाग चुके थे।

ऑटो ड्राइवर घबराते हुए पुलिस थाना पहुंचा ओर पुलिस को बताया कि बस डिपो जाने वाले रास्ते में झबरी पूल के पास चार लोगो ने एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी है।

जल्दी ही पुलिस जीप में सवार होकर घटना स्थल कि और चल देती है।प्रतामिक जांच में पुलिस को ये किसी गैंग से जुड़ी हुई घटना लगती है। वर्ना ऐसे व्यक्ति के साथ किसी की और क्या दुश्मनी हो सकती है??

पुलिस गोपाल के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज देती है और गोपाल के बारे में कुछ जानकारी लेने के लिए ऑटो ड्राइवर को थाने बुलाती है।

ऑटो ड्राइवर काफी डर गया था।चारों अपराधियों का खौफ अभी भी उसके अंदर भरा हुआ था।फिर भी वो पुलिस के बुलाने पर थाना पहुंचा और बेंच पर बैठ गया।

उधर से किसी चौकीदार ने आवाज दिया -" ओ ड्राइवर ..साहब बुला रहे हैं तुमको।"

ड्राइवर सहमते हुए अन्दर पहुंचा एक कुर्सी पर राजीव मिश्रा बैठे हुए थे।उनके सामने एक टेबल पर बेंच लगा हुआ था।ड्राइवर इंस्पेक्टर राजीव के पास आकर सर को झुकाते हुए बोला -" जी सर, प्रणाम सर।"

इंस्पेक्टर राजीव ने सर हिलाकर हाथों से उसे बेच पर बैठने का इशारा किया।

ड्राइवर दोनो हाथों को अपने पैरों के ऊपर रखकर बेंच पर बैठ गया।

इंस्पेक्टर राजीव ने सवाल किया -" क्या नाम है तेरा ??"

ड्राइवर ने उत्तर दिया - " जी सर, हमरा नाम चंदन है और हम यही ऑटो चलाते हैं।"

इंस्पेक्टर राजीव ने फिर से पूछा - " कहां से बैठा था वो आदमी तेरे ऑटो में??"

ड्राइवर ने उत्तर दिया - " जी सर,सेंट्रल जेल के अहाते (बोंड्रि) के पास से।"

इंस्पेक्टर राजीव ने बोला - "और क्या क्या हुआ उस दिन?"

ड्राइवर ने उस दिन की पूरी घटना क्रम इंस्पेक्टर राजीव को सुना दी।

इंस्पेक्टर राजीव ने फिर पूछा - " कुछ याद है अपराधियों का चेहरा और हुलिया?"

ड्राइवर ने उत्तर दिया - " जी सर कुछ कुछ याद है।"

इंस्पेक्टर राजीव ने ड्राइवर को बोला - " ठीक है कल सुबह दस बजे स्केच आर्टिस्ट आएगा ,तुम भी आ जाना,तुम्हरे बताने के अनुसार वो उनका रफ स्केच तैयार करेगा।अभी तुम जा सकते हो।"

ड्राइवर ने हाथ जोड़कर धीमी स्वर में कहा - " जी...,धन्यवाद सर।"

ऑटो ड्राइवर चंदन थाना से चला जाता है और इधर इंस्पेक्टर राजीव शव और अपराधियों के सुराख जानने के निल पड़ते हैं।

इंस्पेक्टर राजीव अपने तीन ओर सिपाहियों के साथ शहर के चौक चौराहों पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालते हैं।घटना स्थल पर उस वक्त पर एक्टिव मोबाइल नंबरों की पड़ताल की पर कुछ हासिल नहीं हुआ।

बाद में उन्होंने सेंट्रल जेल के पास लगी सीसीटीवी फुटेज निकलवाया ताकि गोपाल के बारे में कुछ पता लग पाए हालांकि पुलिस ने अखबार में शव का फोटो छपवा दिया था ताकि शिनाख्त हो सके ।

सभी लोग सीसीटीवी फुटेज खंगाल ही रही थी कि साथी सिपाही कांस्टेबल विकाश ने पीछे से आवाज दिया - " सर रोकिए यहां,ये तो गोपाल है!"

कांस्टेबल विपिन ने विडियो पॉज़ किया और मोशन स्लो कर दिया।

सबकी नजर लैपटॉप स्क्रीन पर थी।

तभी इंस्पेक्टर राजीव ने कहा -" ये गोपाल तो जेल के अंदर से आ रहा है!! और ऐसा भी हो सकता है कि वो उस दिन रिहा होकर होकर आ रहा हो?"

कांस्टेबल विकाश ने उत्तर दिया - " हो सकता है सर,, इसका हुलिया और हरकत देख कर भी यही लग रहा है।"

इंस्पेक्टर राजीव भून भुनाते हुए बोले - " आखिर इस से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है?"

इंस्पेक्टर राजीव ने कहा - " फुटेज पॉज करो और गाड़ी निकालो।"

ड्राइवर रामू जीप जीप निकला और स्टार्ट कर के बोला - " हो गया साहब।"

इंस्पेक्टर राजीव कांस्टेबल विकाश और विपिन के साथ सेंट्रल जेल हजारीबाग पहुंचते हैं।

वहां उन्होंने ने जेलर से गोपाल की तस्वीर दिखाते हुए पूछा -" ये आदमी यही कैद था?"

जेलर ने उत्तर दिया - " हां लेकिन चार दिन पहले ही उसकी रिहाई हो गई है!"

इंस्पेक्टर राजीव ने कहा - " हां ..लेकिन कुछ लोगों ने उसी दिन उसकी हत्या कर दी।"

जेलर थोड़ा आश्चर्यचकित होकर बोला - "इसकी हत्या कौन कर सकता है इस से तक आज तक कोई मिलने भी नहीं आया।"

इंस्पेक्टर राजीव ने कहा - " वही तो पता करना है।"

इंस्पेक्टर राजीव ने पूछा -" और क्या जानते हो इसके बारे में ?? जैसे कहां का रहने वाला था? किस अपराध की सजा काट रहा था आदि??''

जेलर ने उत्तर दिया -" मै तो बस कुछ महीने पहले ही यहां आया हूं ,इसलिए ज्यादा कुछ जानकारी तो नहीं है लेकिन इतना मालूम है कि उसका नाम गोपाल था और अपने ही मालिक के चार साल के मासूम बच्चे ही हत्या का सजा काट रहा था।"

इंस्पेक्टर राजीव ने सवाल किया - " और कुछ..??"

जेलर ने उत्तर दिया - " आप थोड़ी देर रुकिए मै उसका फाइल निकलवा कर आता हूं।तब तक आपलोग चाय पीजिए "

इंस्पेक्टर राजीव ने उत्तर दिया - " ठीक है!!"

इसी बीच चाय पीते पीते इंस्पेक्टर राजीव, कांस्टेबल विकाश और विपिन कैसे से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने लगें।

तबतक जेलर साहब भी फाइलों से साथ आ गए।टेबल पर फाइलों को रखते हुए बोले - "ये लीजिए सर।"

फाइलों पर धूल भरा हुआ,कांस्टेबल विपिन ने फाइलों को झाड़कर साफ़ किया और इंस्पेक्टर राजीव को थमा दिया।कांस्टेबल विपिन और विकाश भी अन्य फाइलों पर सरसरी निगाह घुमाने लगें।

इंस्पेक्टर राजीव ने गोपाल के साथ जेल में बंद कुछ कैदियों से भी पूछताछ की।

गोपाल के फाइलों से और साथी कैदियों के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार-

गोपाल झारखंड राज्य के पलामू जिले के हैदर नगर का रहने वाला था।साल 1990 में वह बिजनेस मैन अक्षत अग्रवाल के घर रांची में घर के नौकर का काम करता था और साथ में ड्राइवर भी था।अक्षत के परिवार में उसकी पत्नी नीतू और एक चार साल का बेटा आशु था।बहुत ही खुशहाल परिवार था उनका।

गोपाल भी दो सालों से उनके घर वफादारी से काम करता था।आशु के साथ भी वो काफी घुला मिला हुआ था।आशु को पाकर नीतू और अक्षत बेहद खुश थे क्यूं कि शादी के सात साल और माता रानी वैष्णव देवी के पांच दर्शन के बाद आशु उनके जीवन में आया था।आशु की खुशी के लिए अक्षत और नीतू कुछ भी करने को तैयार रहते थे।गोपाल भी अक्सर घोड़ा बनकर आशु को अपने पीठ पर बिठा कर पूरे पार्क में घूमता रहता है।गोपाल कभी कभी थक जाता था लेकिन आशु के जिद्द के आगे हार जाता।गोपाल और आशु एक दूसरे के साथ अक्सर गार्डन में खेलते रहते थे।नीतू और अक्षत दोनो गोपाल पर पूरी तरह भरोसा करते थें।

एक रात अक्षत ,नीतू ,आशु और गोपाल चारों 

अक्षत के एक मित्र के पार्टी में गए हुए थे।पार्टी काफी अच्छी थी सबने खूब एंजॉय किया था।गोपाल पार्टी हॉल में ही किनारे एक कुर्सी में बैठा हुआ था,तभी एक सुंदर लड़की ने उसे अपनी ओर आने का इशारा किया ।गोपाल हिचकिचाते हुए उसके पास पहुंचा।वो गोपाल के पास कुछ फुस - फुसाई, गोपाल सिर हिलाते हुए हामी भरा और फिर अपनी जगह पर आकर बैठ गया।

पार्टी समाप्त होने के बाद सभी लोग अपने अपने घर आ गए।नीतू और अक्षत भी आशु के साथ घर पहुंचें।

घर पहुंच कर अक्षत ने गोपाल से गुस्से मै सवाल किया -"क्या बोल रही थी तमन्ना??"

गोपाल ने घबराते हुए उत्तर दिया - " कुछ नहीं साहब..,बस सब ठीक है न यही पूछ रही थी।"

अक्षत ने फटकारते हुए कहा - " जाओ सो जाओं,फिर से कभी इसके साथ नहीं दिखना चाहिए।"

गोपाल ने सहमे हुए उत्तर दिया - " ठीक है साहब.."

दरअसल ,तमन्ना अक्षत की पूर्व प्रेमिका थी ।शादी के लिए दोनो की मंगनी भी हो गई थी लेकिन कुछ कारणों से अक्षत की माता जी ने शादी से इंकार कर दिया था। और जबरदस्ती अक्षत की शादी नीतू से करवा दी थी।

नीतू से शादी होने के बाद भी अक्षत तमन्ना को बहुत प्यार करता था।वो नीतू से छुप - छुपकर उससे मिलने जाता था।यहां तक कि उसे महंगे महंगे तोहफें भी देता था।तमन्ना भी खुश रहती थी कि " चलों शादी नहीं हुई तो क्या हुआ,अक्षत प्यार तो हमसे ही करता है,बिल्कुल राधा कृष्ण के जैसा है हमारा प्यार!!"

लेकिन जब से आशु अक्षत की जिंदगी में आया था अक्षत ने तमन्ना के बारे में सोचना काम दिया था।धीरे - धीरे स्थिति ये हो गई थी अक्षत तमन्ना से बात भी नहीं करना चाहता था।तमन्ना को ऐसा लगने लगा था कि इन सब का वजह सिर्फ और सिर्फ आशु है।अक्षत अपने परिवार में खुश था और तमन्ना को भी शादी कर के घर बसाने की सलाह देता था लेकिन तमन्ना बस पुराने बातों पर अड़ी हुई थी।इसी वजह से अक्षत ने तमन्ना से दूरी बना ली थी।लेकिन तमन्ना इसकी वजह आशु को मानती थी।

उसे लगता था कि आशु को रास्ते से हटाकर सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा।इसके लिए उसने गोपाल के साथ मिलकर आशु को गायब करने का प्लान बनाया।तमन्ना ने गोपाल को इसके लिए दो लाख रुपए का ऑफर दिया था।

गोपाल लालच में पड़ गया और ऑफर मान ली।एक दिन सुबह सुबह गोपाल आशु को पार्क में घुमाने के बहाने से अपने साथ ले गया और लेकर अपने गांव आ गया।गांव में वो अपने घर न जाकर एक सुनसान जगह पर बने अपने खंडर नुमा पुराने घर के अटारी आशु को जंजीर से बांध दिया।उसका मुंह भी कपड़े से बांध दिया ताकि आवाज न कर सके।

कई दिनों तक भूखे - प्यासे रहने कि वजह से मासूम आशु ने दम तोड दिया।

इधर रांची में अक्षत और नीतू का बुरा हाल था।दोनो पुलिस थाने के बाहर ही बैठे रहते थे।तमन्ना भी कभी कभी उन्हें सांत्वना देने चली आती थी।उसे अच्छा लग रहा था कि उसे अक्षत के करीब जाने का मौका मिल रहा था।

गोपाल के गायब हो जाने के कारण शक कि सुई सीधे गोपाल की ओर ही मूड रही थी।लिहाज़ा पुलिस फौरन ही गोपाल के गांव हैदर नगर पहुंची।

गोपाल ढीला - ढला पैजामा और संडों गंजी पहन कर अपने खपरैल घर के बाहर चारपाई पर बैठा हुआ था।उसे अंदाज़ा नहीं था कि पुलिस उसे पकड़ने उसके घर तक आ जाएगी।वो भागने कि कोशिश करता है लेकिन भाग नहीं पाता है और पुलिस की गिरफ्त में आ जाता है।

कड़ाई से पूछताछ के बाद वो अपना गुनाह कबूल कर लेता है और तमन्ना के हाथ होने की भी बात स्वीकार कर लेता है।

आशु का शव उसके गांव में ही एक कुएं से बरामद होता है।

गोपाल और तमन्ना पर हत्या का आरोप तय होता है और अदालत द्वारा दोनो को मासूम आशु की हत्या के लिए धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है।

दोनो को रांची सेंट्रल जेल में रखा जाता जाता है लेकिन कुछ साल बाद गोपाल को सेंट्रल जेल हजारीबाग ट्रांसफर कर दिया गया था।

अक्षत और नीतू की तो दुनियां ही उजड़ गई थी।उनका रो रो कर बुरा हाल था।बिजनेस में भी अब मन नहीं लगता था अक्षत का।नीतू का शरीर मात्र एक हड़ियों का ढांचा बन गया था।कभी शहर के मशहूर बिजनेस मैन में शामिल अक्षत भी अपने बिजनेस से विमुख हो गया था।पास न होकर भी वो हरवक्त ,हर क्षण ,हर जगह उनके साथ था।उनके जुबां पर बस एक ही नाम था "आशु" आशु"आशु..."

रांची सेंट्रल जेल में फोन करने के बाद जानकारी मिली केस की दूसरी अभियुक्त तमन्ना भी दो साल पहले पैरॉल पर जेल से बाहर आई थी लेकिन उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला।

"इस्ते- फाफ की बात है कि आज से दो साल पहले जब तमन्ना भी पौरॉल पर जेल से बाहर आईं थी तो शायद उसकी भी किसी से हत्या कर दी थी,मगर तमन्ना ली लाश अभी तक बरामद नहीं हो पाई थी।या हो सकता है कि पुलिस से बचने के लिए वो खुद ही फरार हो गई हो,मगर भागने की चांस कम है!!"

इंस्पेक्टर राजीव ने विचरते हुए कहा...!

तभी रांची थाना से फोन आता है कि एक दंपति ने आत्मसर्पण किया है। पति का नाम अक्षत और पत्नी का नीतू है।इंस्पेक्टर राजीव समझ जाते हैं।

उधर अक्षत और नीतू एक दूसरे से अनजान रहते है,अक्षत को पता नहीं था कि तमन्ना की हत्या नीतू ने कि है और नीतू को भी पता नहीं था कि गोपाल को अक्षत ने मारा है।नीतू के जानकारी पर पुलिस तमन्ना का शव (दो साल में सिर्फ हड़ियां ही बची हुई थी) को एक खाली कुएं से बरामद करती है।गोपाल के घर वाले गोपाल का शव लेने से इंकार कर देते हैं,यहां तक कि उसके पत्नी ओर बच्चे तक उसका शव भी नहीं देखना चाहते हैं।ऐसे में पुलिस अपने लेवल पर गोपाल का अंतिम संस्कार कर देती है।

अक्षत और नीतू पर गोपाल और तमन्ना के हत्या का मुकदमा चलता है और दोनो को अदालत द्वारा धारा 302 के तहत दस दस साल कारावास की सजा सुनाई जाती है।सजा पाकर भी दोनो के चेहरे पर तसल्ली और आंखों में सुकून था।अठारह साल के बाद आज पहली बार उन्हें गहरी नींद आई थी। आशु को आज उन्होंने दिल से टाटा किया और आशु मुस्कुराते हुए भगवान के सानिध्य में गुम हो गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime