इश्ककी दास्ताँ नहींं, प्यारे !
इश्ककी दास्ताँ नहींं, प्यारे !
दोनों की आंखें, सिर्फ आंखें चार हुईं। एक बुरके में, तो दूजी नकाबमें।एक की नज़र में डर, ख़ौफ, ज़िंदगीकी भीख थी, दूसरी नज़र थी बेख़ौफ, पत्थर, मौतका पैगा़म लिए, खूंखार। पर जैसे ही वो आंखें आपसमें टकराईं, तो कलेजा आंखों में आ गया।उस नकाबमें से हल्के से होंठ फड़फड़ाए :”…दिल..ब…?”
और बुरके वाली, डरी हुई आंखोंने सवाल के जवाब में भयभीत, नम आंखोंसे ही सवाल फेंका। आंखें वहीं की वहीं एक दूजेमें सिमटके रह गईं, और उनका वजूद पलक झपकते ही चला गया, लिडर नदी के पथरीले किनारों पर।
कमबख्त इन्हीं आंखोंसे ही तो कारोबार शुरू हुआ था।फर्क सिर्फ इतना था कि, तब वह आंखें हर बात पर ताज्जुब होने वाली और मासूम थी। दुनिया को अभी अभी देख रही वो आंखें, पंद्रह सोलह साल उमरकी मूंद मूंद आंखें। लिडर के किनारे किनारे से वह, अपनी धुन में गुनगुनाए जा रहा था और ये, सामने से आ रही थी।टककर तो उतनी तेज़ नहीं लगी थी, पर हाँ, आंखोंसे दिलों पे जरूर चोट लग गई थी।
वह गुस्से में बोली:” देखकर नहीं चल सकते या जानबूझकर हरकतें कर रहे हो? जूती मारूं क्या ?”
और वह जिस ढंगसे बौखला गया था, उसे देखकर वह खिल खिल हंस पड़ी :”पागल हो क्या? रास्ते में कोई गाना गाते गाते जाता है भला?”
और वह उस हंसी पे पागल हो उठा।दोनों ने नज़र भर एक दूजे को देखा। इतनी लंबी पलकें और बादामी आंखों वाले लड़के बहुत कम देखने को मिलते हैं। और इतनी बोलती हुईं, बड़ी बड़ी आंखों वाली लड़की कहाँ बार बार मिलती है ?
बस, आंखों ने कारस्तानी की, और रूह ने रूह को खींच लिया।
..”नहीं, मैं तो प्रैक्टिस कर रहा था, इंटर स्कूल सिंगिंग कंपिटीशन की..! पर तुम भी तो देख कर चल सकती थी !”उसे मालूम ना था वह क्या बड़बड़ा रहा है।
“लो !और सुनो ! सुपरसिंगर के तेवर ! बड़े आये सिंगर कहीं के !..अं.. वैसे..कौन सी स्कूल से हो? क्या नाम है तुम्हारा ?”
“हसनैन ..और तुम्हारा? ”
“क्यों ?लड़की देख कर पीछे पड़ गए ? नहीं बताऊंगी नाम। चलो, रास्ता नापो अपना।“ और बालों को झटका देकर वह जाने लगी।
हसनैन इन अदाओं में बहता ही जा रहा था कि, वहीं लड़की ने मुड़कर देखा और फिर से खिलखिला कर चल दीं। हसनैन के मुंह से गाना निकल गया :”..मुड़ के ना देखो दिलबरो ..दिलबरो ओओ…ओ..”
और फिर से वो मुड़ के देखने लगी। आंखें फिर टकराईं। इस बार वह शरमाई और चल दीं।
उन बड़ी आंखों से, पहलगाम की वादी में गूंजती खिलखिलाहट के साथ, लिडर के बहते पानी जैसी लड़की के साथ हसनैन भी पानी पानी हो गया। होठों से गीत फूटने लगे। वह गाता ही रहा। आज पता नहीं क्यों उसे अपने गानों में परवाज़ लगते महसूस हो रहे थे।
दूसरी मुलाकात भी हसीँँ इत्तफा़क रही। इंटरस्कूल फेस्ट का दूसरा दिन था। ओपन स्टेज पर एक गहरी दर्द भरी आवाज में गाना शुरु हुआ:”..त्सुलहोमा...रोशे… रोशे… वालो म्यानी पोशे…. मदनो..।“और गाना खत्म होते ही तालियोंकी बौछारमें कोई दो आंखें कहीं एकटक उसे देखती रह गईं।
हसनैन जब अपने अव्वल आने पर, ट्रोफी लेने के लिए स्टेज पर गया तो फिर चार आंखें आकर टकराईं।
“…दिलबरो !”इस बार हसनैन लपका और दौड़कर, उसके पास गया। “दिलबरो ! कैसा लगा मेरा गाना ?’
“…तुम्हारी आवाज़ तो जादू है जादू, हसनैन ! तुम तो सचमें सुपर सिंगर निकले। और जैसा नाम है, वैसी ही आंखें.. पाक, नादान ! मैं..तुम… वह…” अब पिघलनेकी बारी दिलबरोकी थी।
“..वाऊ ! मेरा नाम याद है अब तक ?अब तो अपना नाम बता दो, दिलबरो !”
“अच्छा नाम रखा है मेरा।उसी से काम चला लो।“लड़की चहकी।“…वैसे…जिया नाम है मेरा।“अब आवाज़में शरारत और हया दोनों घुलने लगे।आंखें बिना बात के उठ उठकर झुकने लगीं।
फिर क्या था ! फेस्ट के तीसरे दिन भी दोनों साथ साथ रहे, खूब बातें की, और बाकी बातें पूरी करने के लिए दूसरे दिन लिडर के किनारे मिलने के वादे भी किए।
किनारे के पत्थरों पर दोनों घंटों बैठते।हसनैन गिटार लिए गाता, और जिया सुनती रहती।फिर तो फोन पर भी सिलसिले शुरू हो गए।दोनों जानते थे यह क्या है, पर दोनों फिर भी नहीं जानते थे यह क्यों है।एक लगाव, एक बहाव, एक ढलान में दोनों बंधते जा रहे थे, बहते जा रहे थे, ढलते जा रहे थे।
हसनैन अपनी लंबी पलकें उठा कर, आसमां की ओर देखकर कहता:”.. देखना, मैं मुंबई जाऊँगा..सिंगर बनूँगा..बहुत नाम कमाऊँगा। ओय जानां.. ओय दिलबरो !सुनो ना !एक नई धुन बनाई है ..”और जिया उस आवाज़में, उस आंखों में डूब जाती।
यूं ही एक बार कुछ गुनगुनाते हुए आंखें इजहार और इकरार पर आ कर रुक गईं, और दिलने दिलकी बात जान ली। होठों पर चल रहा गाना एकदमसे ठहर गया, और पहली बार, इश्कने होठोंसे होठों पर मुकाम और मुहर पक्के कर लिये। लफ्ज़ोंकी अब गुंजाइश ही नहीं रही। हसनैन और जिया, जैसे पर लगाए हुए इन्सान बन गए।जैसे पाक इश्क, बेदाग़ इश्क, नए-नए से, कोरे कोरे से इश्ककी कांगरीकी आंच में तपने लगे।
“..दिलबरो !मैं अगर मुंबई जाऊँगा, तो तुम इंतज़ार करोगी ना?”
“ मैं तुम्हारा त्सुलहोमा …गाना सुन सुन के दिन काटूँगी, मेरे मदनो!, ”वह आंसु से तर आंखोंसे कहती।
“अरे, अभीसे क्यों खून को पानी कर रही हो?मैं अभी गया थोडे ही हूँ? देखना! मैं स्टार बन जाऊँगा, फिर तुझे लेने आऊँगा।“ हसनैनने उसके हाथमें कडे पहनाते हुए कहा था :”तू मेरी है।इन कडोंको अभी छुपाके रखना, पर एक दिन सबके सामने पहनाऊँगा।“
“और तू भी ना, गाने वाने के चक्कर में मुझे भूल ना जाना।मुंबई की हूरों में फँसना मत। “ जियाने उसके गलेमें तावीज़ बांधते हुए कहा था।
पर उस दिन हसनैन मिलने नहीं आया।जिया ने बहुत इंतजा़र किया था।फोन भी स्विच्ड ऑफ आ रहा था। दोस्तोंसे भी उसकी कोई ख़बर न मिली। दो-चार दिन तो जैसे तैसे कट गए, पर हसनैन का जब कोई अता पता न मिला, तो जिया तडपने लगी। “..ज़रूर मुंबई गया होगा।बता कर नहीं जा सकता क्या? एक फोन तो कर सकता था ?! मैसेज छोड़ दिया होता ! पर फेसबुक अकाउंट क्यों डीएक्टिवेट कर दिया पगले ने? कैरियरके चक्करमें अपनोंको भूल जाएगा क्या? नहीं-नहीं, वह ज़रूर आएगा वापस।वहां ठोकरें खाएगा, तो अक्कल अपने आप ठिकाने आ जाएगी! वापस आए, तब तो जूती से पिटूँगी।“ दिन-रात सोच का चरखा चलाती रहती जिया खाने-पीने की सुध में भी न रहती।
दिन, महीना, महीनोंके बाद भी हसनैन की कोई खबर न मिली। उसके परिवारवाले तो कब के दूसरे शहर चले गए थे।किससे पूछें? क्या करें? जिया तो हसनैनके नाम का दिया जलाए जोगन बन गई जैसे।
दिनमें ईयरफोन लगा के हसनैन का रेकॉर्डेड गाना त्सुलहोमा.. सुनती रहती। कभी कभी अकेले ही लिडरके किनारे, उनके मिलनेके खास ठिकानों पर घंटों बैठी रहती, और रातको चुपके से हसनैन के तोहफे को सीनेसे लगाए रोती रहती।हसनैन का व्हाट्सएप तो कबका खामोश हो चुका था, फिर भी जिया रोज़ एक मैसेज ज़रूर भेजती.”.मदनो! आ जाओ।“ डीपी की जगह अब खाली थी। हसनैनकी पुरानी तस्वीरोंको अपने मोबाईल में देखकर उन आंखों में डूब जाती, फरियाद करती, बिलखती, गुस्सा करती, तस्वीरको चूम लेती और फिर सिसक के रह जाती।
सात साल किसीको भूल जाने के लिए काफी होने चाहिए, पर जो रूह बन गया हो, जो आदत बन गया हो उसे ज़हन से कैसे निकाला जाए भला ?
अब्बू अम्मी का दबाव आख़िर उसके इंतजार पर भारी पड़ ही गया। अपनी मेहंदी की रात जब सब लोग खुशियाँ मनाने में मस्त थे, तब जिया मन ही मन गुनगुना रही थी :”त्सुलहोमा रोशे रोशे..मदनो.”।
ख़ालाजानने सीने से लगाया था:” अरे रो मत पगली! रोते-रोते विदा नहीं होते!” जी भर के उसे रोने भी नहीं दिया किसी ने। किसी का ध्यान निकाह के वक्त उसके हाथों में पहने कडों पर नहीं गया।
साल पे साल थोपते चले गए।सब ठीक था। आरिफ़ आर्मीमें था।दो प्यारे प्यारे बच्चे थे और पूंच में क्वार्टर।नए-नए रंग चढ़ते गए, पुराने रंग फीके होते गए, सिवा एक रंग के।
शाम को जिया अक्सर वही गीत गुनगुनाया करती। बॉलीवुड की हर खबर पर नज़र रखा करती। कहीं वह दिख जाए, कहीं वह सुर्खियोंमेँ मिल जाए। आरिफ़ उसे बच्चों के साथ मिलकर चिढाता रहता :”तुम्हारी फिल्मी अम्मी की सूई एक ही गाने पे अटकी है।“और बच्चे भी हंस पड़ते।
जिया क्या जवाब देती?वह खुद एक सवाल बनके रह गई थी। क्यूँ हुआ, कब हुआ, उसका कसूर क्या था?जो मुहब्बत वो अपने सिनेमें दबाये बैठी है, क्या वह भी उसी शिद्दत को अपने भीतर संजो के बैठा होगा ? या भूल चूका होगा?कहाँ से लाती इन सबका हिसाब? हिसाब देनेवाला तो गुमशुदा था।इश्क ना सही, पर यादोंने क्या खूब वफा निभाई थी, वह चूपचाप सोचती रहती।सब सही चल रहा था,फिर भी जियाके मनमें रह रह के टीस उठा करती ,और वह अपने मनको कुचल देती।
आज बहुत दिनों बाद बहुत सारे अफसर जवान छुट्टी पर घर आए हैं, आरिफ़ भी तो आया है। उसने अपने कुछ दोस्तोँको दावतपे बुलाया है।जिया ने सबके लिए दमबिरयानी बनाई है।रात अपने शबाब पर है।बच्चे अब्बूके इर्दगिर्द मंडरा रहे हैं।
अचानक से फायरिंग की आवाज़ें, हो हल्ला शुरू हो गया। दिमागके कुछ पल्ले पड़े उससे पहले, घर का दरवाज़ा धडाम से टूटा, और एक छह फिट का, काले लिबासमें नकाबपोश आदमी मशीनगन लिए घरमें धंस गया और हॉलमें बैठे आरिफ़, उनके दोस्तों और बच्चोंको छलनी कर दिया। जिया रसोई से बाहर आकर चीख उठी।वह कुछ समझ पाए उससे पहले नकाबपोश उसके सामने ए के ४७ दागे हुए छा गया।
***
दोनों की आंखें, सिर्फ आंखें, चार हुई। पल भर में पूरा माझी उनके सामने आ गया। वही बादामी, लंबी पलकों वाली आंखें ..पर इनमें अब सपने नहीं, कुछ और दिखता है ! गलेमें भी वही तावीज..! जिया का दिल कांपने लगा..” या खुदा, रहम !यह हसनैन नहीं हो सकता। यह कोई जानवर है जो मेरे बच्चों को, मेरे खाविंदको खा गया। ये वो नहीं हो सकता ..!!”
नकाबपोश के हाथ में भी गन धरी की धरी रह गई..जिया के हाथों के कडे देखकर ! उसके गले से अल्फाज़ निकले ना निकले, जिया ने उसे सुने ना सुने..” दिल..ब..”
“..हाँ..वही है, उसे नाम याद है..!”जिया बूत बन गई!
“..पल पल मर रहा था मैं तेरे बिना। कहाँ जाना था मुजे, और कहाँ जा चूका?!मुझे माफ कर दे। मैं तुजे तो अंजाम नहीं दे पाया, आज भी न दे पाऊँगा।वे लोग नहीं छोड़ेंगे - मुझे या तुजे। इस से पहले, कि वो लोग आ जायें, तू छिप जा कहीं.. जल्दी कर।जा, देर मत कर! ” हसनैन अपने आपेमें न था, अंदर से टूट रहा था।
थरथराती, लड़खड़ाती जियाने अपने आप पर काबू पाया, फिर फुसफुसाई:” मैं मेरे साथ हुई सब बातोँको माफ़ कर देती, सब बक्श देती, पर तुने तो मेरे फूलसे बच्चों को भी नहीं बक्शा। तुजे अंजाम मैंने ही देना बनता है।मैं तेरी दिलबरो हो सकती हूँ, पर तू मेरा वो मदनो नहीं हो सकता।“ और पलमें झपटकर, ढीले पड गये हसनैनसे गन छिनकर अपनी आंखें हसनैन की आंखों में गाड़ दी और गोलियाँ उसके सीने में। हसनैन की खुली, बेजान आंखें सन्नाटे को ताक रही थी, मरने के बाद भी जैसे अपनी दिलबरोको पाने की तलब हो।
जिया के पैर मॉम बन गए।वहीं धबाक से गिर गई, जैसे कठपुतली का खेल खत्म हुआ हो। हसनैन का नकाब हटाकर उसे देखने लगी। टूटे हुए दरवाज़़े से एक और आतंकवादी आया और यह नजा़रा देख, थोड़ा पीछे हट गया, पर फिर, एक आख़री धांय धांय के बाद पूरा घर ख़ामोश हो गया, और इसके साथ एक अफ़साना भी।
एक इश्क दो हमसफ़र को साथ लिए चल तो पड़ा था, पर उसे एक ही रास्ता और एक ही मंज़िल नहीं दे पाया।