बादलों में...

बादलों में...

3 mins
7.8K


"मुझे प्लेन में बैठना है। हम नानी के घर ट्रेन से नहीं जायेंगे मम्मा, हम प्लेन से क्यों नहीं जा सकते ? बताओ ना" चार साल का यश ज़िद पर अड़ गया।

कितने दिनों से यही रट लगाए हुए था। अब नीलिमा करती भी तो क्या करती ? यश की तरह उसे भी कई सवालों का जवाब अब खुद ही ढूँढ़ना था। प्लेनसे मुसाफिरी के लिये आर्थिक स्थिति भी तो नहीं थी, उस पे इतना सयाना बच्चा आजकल एक ही चीज़ माँग रहा था, वह भी इतनी महंगी।

बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए उसने दिल्ली फ्लाइट की दो टिकटें बुक करवा ही लीं। एयरपोर्ट तक का सारा रास्ता यश बक-बक करता रहा, कुछ न कुछ पूछता ही रहा, "हम कब पहुँचेंगे ? प्लेन कितना ऊँचा उड़ेगा ? कितना बड़ा होगा ? हवा में कैसे उड़ता होगा ? हम कितना ऊँचा जाएंगे ? क्या-क्या दिखाई देगा ?" नीलिमा जवाब देते-देते थक गई।

एयरपोर्ट से ले के प्लेन में बोर्ड होने तक यश कुछ ज़्यादा ही उत्साह से उछल-कूद से आसपास की चहल-पहल देखता रहा। जैसे ही प्लेन में बैठे, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसे विंडो सीट जो मिली था। खिड़की पे उसकी आँखें मानों जम गईं थींं।

जैसे ही प्लेन टेक ऑफ हुआ, वह सहसा चुप हो गया। प्लेन की ऊँची उड़ान के साथ-साथ वह भी खामोश होता गया और बाहरके नज़ारों में खो गया। धीरे-धीरे प्लेन बादलों के बीच में से अपनी गति से गुजरने लगा। दोनों अब चूप थे, मानों अपने आप में कुछ ढूंढ़ रहे थे। यश, उन बादलो में आँखों से और नीलिमा अपनी आँखें मूंद कर अपने भीतर।

लम्हें भी तेज़ गति से हवा में सरकने लगे। धीरे-धीरे प्लेन बादलों की सरहद छोड़कर नीचे उतरने लगा। बादल ऊपर-ऊपर होते चले गये और यश नीचे ज़मींं पर दिखते छोटे-छोटे मकान, रास्ते और बाकी दुनिया को देखने लगा ।

दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुँचने का अनाउंसमेंट हो गया। नीलिमा बेटे का हाथ थामे प्लेन से उतरी। उतरते ही उसने पूछा, "बस ? अब खुश ? कैसा लगा प्लेन का सफर ?"

उसके ध्यान में ज़रूर था कि, फ्लाइट के दौरान भी यश बिल्कुल खामोश था और अब भी। अपना सिर झुकाए चुपचाप नीलिमा का हाथ पकड़कर चलता रहा। रास्ते में भी चुप,नानी के घर पहुँच कर भी मुँह फुलाए बैठा रहा। निलीमा को आश्चर्य हुआ, यश अब तक इतना शांत रहकर कैसे बैठ सकता है ?

रात को कमरे में यश को गोदी में लेकर उसने पूछ ही लिया, "बाबू ! कितना उछल रहा था तू प्लेन में बैठने के लिए ! क्या तुझे मज़ा नहीं आया ? क्यों इतना गुमसुम है ? कब से सिर खाए जा रहा था, प्लेन में बैठना है, प्लेन में बैठना है, जब बैठ लिया तो अब बताता ही नहीं कैसा लगा ? डर गया मेरा छोटा भीम ?"

यश गोदी से उतरकर माँ के सामने बैठ गया। फिर झुँझलाकर गुस्से से बोला, "मम्मा, आप झूठ बोल रहे थे ना ?मैंने पूरा रास्ता बादलों में देखा, ध्यान से देखा, बहुत देर तक देखा और दूर-दूर तक देखा, पर मुझे एक भी इंसान दिखाई नहीं दिया और आप तो कहते थे कि पापा बादलों में चले गए, वो बादलों में रहते हैं अब ! मैं पापा से मिलने के लिए ही तो प्लेन में जाना चाहता था, मम्मा, आप झूठे हो।"

स्तब्ध रह गई वह। एक साल से अपने सीने में दबाए हुए एक पूर को अब के रोक नहीं पाई और यश को सीने से लगाकर उस सैलाब में बहती चली गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama