जब मेन मेट
जब मेन मेट
"भाई ! कौन हो तुम ?"
"मैं ? मशीन मानव..मतलब...मानव ही हूँ, पर मशीन की तरह हूँ..तेज़,प्रखर ! पर तुम लोग पाषाण युगके मानव ठहरे..क्या समझोगे ये सब ?"
"ओहो..अच्छा ? तो आप हमें जानते हो ?"
"मैं सबको..सबकुछ..जानता हूँ। तुम सदियों, कालखंडों पुराने वर्ज़न हो, ..जब कि मैं, इक्कीसवीं सदी का मानव हूँ..लेटेस्ट अपडेटेड वर्ज़न..ब्रो !"
"!!!!!!.....!!!!!!.....!!!!!!....."
"आज..मेरे पास आर्टिफिशियल ईन्टैलिजन्स है,
आधुनिक टैकनोलॉजी है, ब्रह्मांड को काबू कर सकूँ उतनी शक्ति और सामर्थ्य है, बंगला है, गाडी है, बैंकबैलेन्स है, नौकर चाकर है, मदरबोर्ड भी है,...तेरे पास क्या है ? हं..ययय ?"
"भा..आ...आ..ईईईई.!
हमारे पास संतुष्टि है,संभावना है, अग्नि वाले चकमक पत्थर और पहिये से काम चल जाय उतना ज्ञान है..
हरे-भरे जंगल हैं, जिससे हमारे पास शुद्ध, ताज़ा, लखलूट हवा-पानी खुराक, ज़मीन है...
भरपूर जी लेने के लिए समय भी है..स्वास्थ्य भी है।
और हाँ, माँ भी है, मानवता भी है, उनके प्रति संवेदना भी है। अब तू आगे की बता.."
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