इंसानी चीखें

इंसानी चीखें

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सोहम ऑटो से उतरा तो शाम की धुंधली सी परछाई बाकी थी अभी, रात नहीं हुई थी पर अजीब सा सन्नाटा था इस जगह।

वो इस शहर में जॉब के लिए आया है परिवार से दूर, कंपनी के पास मिलने वाले सारे ही घरों के किराया बहुत ज्यादा था, इतने किराए के बाद उसके पास घर भेजने को बचता ही क्या??

बड़ी मुश्किलों से शहर से अलग इस इलाके में काफी सस्ते में ये घर मिला है। दूर है लेकिन हाईवे से एक कलीग गाड़ी से साथ ले लेगा कपंनी के लिए तो कोई बड़ी दिक्कत नहीं है। यहाँ केवल 5-6 बंगले बने है, जिनमे से एक बंगले का छोटा सा हिस्सा उसे किराए पर मिला है। केवल दो बंगलों की लाइट जली है। पहले सोचा जाकर बात करे फिर लगा ये ठीक समय नहीं है, अंदर जाकर देखा सब कुछ सेट है। फर्नीचर है, एक छोटा फ्रिज भी है ,लाइटिंग,फैन, पानी सबका इंतज़ाम है।

मालिक ने सही कहा था, पर फिर वो लोग क्यो नहीं रहते यहाँ, कितना शांत है। मानसिक शांति के लिए बड़ी अच्छी जगह है।

उसने पैक्ड फ़ूड खाया और लेटकर मोबाइल देखने लगा, अचानक उसे कुछ चीखे सुनाई दी, वो कान लगाकर सुनने लगा..हाँ !!चीखे ही है इंसानों की

वो लगभग दौड़ते हुए बाहर आया और चीख की दिशा में दौड़ने लगा। तभी उसने सामने देखा, अब चीखने की बारी उसकी थी, एक आदमकद साया..आग की लपटों में घिरा उसकी तरफ बढ़ रहा था। उसकी चीखे कान के परदों को फाड़ रूह को चीरे दे रही थी। सोहम समझ नहीं पा रहा था क्या करे कि, इतने में साये ने उसका हाथ पकड़ लिया, जलन के कारण सोहम ने झटके से हाथ छुड़ाया तो 'धम्म' से आवाज़ हुई और उसकी आँखें खुल गईं। उसने देखा मोबाइल लगातार चलने से गर्म हो गया था जिससे हाथ में हल्की सी जलन महसूस हुई उसे, झटके से हाथ हिलाने से पास में रखी कुछ बुक्स नीचे गिर गयी थी। सोहम पसीने पसीने हो उठा, इतना भयंकर सपना आज तक नहीं देखा, तभी ध्यान आया..शायद मेन गेट बंद करना भूल गया हूं। पर अब हिम्मत नहीं थी बाहर तक जाने की।

सुबह आँख बहुत देर से खुली, अभी खाने का कोई सामान नहीं ले पाया था तो ब्रेड सेक कर चाय से ले ली। फटाफट निकला पहले ही काफी देर हो चुकी थी। बाहर निकल कर सोचा जिन घरों की लाइट जली थी वहां जाकर कुछ बात करूँ पर कलीग गाड़ी लेकर खड़ा होगा। लॉक लगाकर मुड़ा तो महसूस हुआ कि घर के अंदर गेट के पिलर के पास कोई है, मुड़ा तो कोई नहीं था। सोचा अंदर से तो मैं ही आया हूं..चल दिया, बाहर सड़क पर पहुँच कर ऑटो

आँफिस में पहला दिन बहुत बिजी गया..

लौटते हुए काफी सामान लिया तो लेट हो गया..अंधेरा हो गया था। सड़क से एक छोटी सी गली मेरे कमरे की तरफ मुड़ती थी दूसरी सीधी जाती थी। ऑटो अंदर नहीं जाते थे क्योंकि सवारी नहीं मिलती थी। सामान सम्भालते हुए चल रहा था, मुड़ते समय देखा सामने सीधी जाने वाली गली के छोर पर रह रह कर एक ज्वाला सी दिख रही थी। शायद कोई घर होगा वहाँ, सुबह मॉर्निंग वॉक करते समय देखूंगा, थक चुका था पर खाना तो बनाना ही था, खाना बनाकर टेबल पर लगा खा ही रहा था.. अचानक लगा सामने बन्द पड़े घर की छत से कोई लटका है..थाली छोड़कर बाहर भागा।

उफ्फ!! पागल हूं मैं भी, लंबे लंबे खड़े पेड़ झूम रहे थे कहीं से उड़कर कोई कपड़ा रेलिंग से लटका था सब कुछ मिलाकर अलग ही तस्वीर पेश कर रहे थे।

वापस आकर खाना खाया, बिस्तर पर लेट कर आँखें लगी ही थी कोई कान के पास फुसफुसाया "मुझे पानी चाहिए......"

हड़बड़ाकर उठा तो गला प्यास से चीस रहा था..मेरी अंदर की आवाज़ ने जगा दिया..कमाल है इतनी प्यास में भी आँखें नहीं खुली।

जग खाली था, पर भर कर रखा था?? फ्रिज तक पहुँचा, बोतले खाली?? चक्कर क्या है। लगता है थकान के कारण भूल गया होऊंगा।


सुबह जल्दी उठा, टहलने के लिए निकला, सबसे पहले उन घरों का गेट खटखटाया को इस मुर्दनी में थोड़े जीवित लगते है। पहले गेट पर काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला, दूसरा गेट एक पुरुष ने खोला उसने बताया कि वो भी यहाँ 4 दिन पहले ही आया है इस घर की रखवाली के लिए, सब लोग विदेश में रहते है। मैं तो सुबह को रहता हूं रात को अपने घर चला जाता हूं। मालिकों को कौन सा पता चल रहा है वहाँ विदेश में तनख्वाह मिल जाती है बस टाइम पर..

"पर लाइट तो जली थी रात को" मैंने पूछा

"मैं ऑन करके छोड़ जाता हूं दिन में"

फिर आँफिस का टाइम होने वाला था तो मैं वाक के लिए निकल गया। तभी दिखी वो पीछे से देख ही लगा बला की खूबसूरत होगी..पर ऐसे कपड़े आजकल कौन पहनता है?? सलवार पर लंबे सूट..जल्दी जल्दी चलकर उस तक पहुँचना चाहता था..ये लाएगी रौनक अब जिंदगी में...


मैं दौड़कर पास पहुँचा, ये फिर से दूर कैसे हो गई? ये चक्कर क्या है। घड़ी देखी आँफिस का टाइम होने वाला था..मुड़ा तो देखा वो हमारी गली के अंदर खड़ी सर ऊपर उठाए सामने वाले घर में लगे पेड़ को देख रही थी। अब मुझे घबराहट होने लगी थी, सच कहूं तो डर गया था। मैं चुपचाप नजर चुराते हुए अपने घर मे घुस गया। वो ऐसे ही खड़ी थी। फटाफट पानी पिया। चाय के लिए गैस जलाने वाला था कि कान के पास चिल्लाने की आवाज आई "आग मत जलाना.." डर से लाइटर हाथ से छूट गया पीछे घूम कर देखा तो चीख निकल गईं.. क्या थी वो?? बुरी तरह जला चेहरा, कान की बाली के साथ कान लटक गए थे जलकर..आँखें बाहर निकल रही थी, चमड़ा जलने की गंध पूरे घर मे फैली थी। मैं चीखने लगा " कौन हो तुम?? बचाओ!!!भागों यहाँ से..

तभी उसने पानी की बोतल ले पानी फेंका मेरे चेहरे पर..हड़बड़ाकर आँख खुली.. सामने वो पड़ोसी चौकीदार और कलीग खड़ा था। मैं पागलों की तरह उन्हें देख रहा था। ये हो क्या रहा है??

कलीग बोला" आँफिस नहीं जाना आज? कब से खड़ा था वहाँ.. फ़ोन भी नहीं उठा रहा था, यहाँ आया तो ये चौकीदार बोला अंदर से चीखने की आवाजें आ रही है। आकर देखा तो तू यहाँ बिस्तर पर पड़ा बड़बड़ा रहा है।। मैंने तुरन्त चौकीदार से पूछा " मैं सुबह तुमसे बात करने आया था ना??"

"हांजी आये थे..फिर आप अपने घर मे घुस गए थे।"

"नहीं मैं तो वाक के लिए चला गया था"

"नहीं आप घर मे घुसे थे मैंने देखा था।

मैं फटाफट लगभग दौड़ते हुए बाहर आया, कलीग को बोला गाड़ी लेकर जल्दी चलो। हम गली के बाहर निकल आखिरी छोर पर पहुँचे वहां एक घर था ।घर से छोटा, झोपड़े से बड़ा..पर जला हुआ..शायद जले हुए भी काफी टाइम बीत चुका था। मैंने पास में खड़े एक ठेले से उस घर के बारे में पूछा

"साब एक छोकरी रहती थी यहाँ अपने भाई के साथ, वो जो बंगले है.. वहाँ काम करती थी।" बला की खूबसूरत थी..उसी में से एक बंगले के मालिक का बेटा फ़ांस लिया उसको.."

मालिक यहाँ रहते नहीं थे..उ खूब फायदा उठाया..फिर अचानक बिना बताए अपने पिता के पास विदेश चला गया..सब वही सेटल हो गए।

"सब प्लान पहले से ही था..उसका रिश्ता तय था वहाँ किसी लड़की से"

"सब अच्छे से सेट कर भाग गया वो...जाने के बाद पता चला लड़की पेट से है। बावरी हुई घूमी कई दिन..लोगो ने काम से हटा दिया। ताने दिए..दोनो भाई बहन भूखे रहने लगे।"

"एक दिन बेइज्जती, भूख ने हिम्मत तोड़ दी आग लगाकर खुद को और भाई को मार लिया उसने..

सब कहते है बदला लेने को भटकती रहती थी, मैंने कभी कुछ नहीं देखा पर सुना है वो लड़का आया था यहाँ एक दिन किसी काम से.."

"जाने क्या हुआ रात को अपनी छत की रेलिंग से लटक जान दे दी..सब कहते है उसी लड़की की आत्मा ने किया सब"

"बस साब 8-9 साल हो गए इस बात को, सब भूल भाल गए अब तक तो..ये जगह भी अब सरकार शौचालय बनाने में इस्तेमाल करने वाली हैं।"

जब किसी को नहीं दिखती तो मुझे क्यों परेशान कर रही है वो,मैंने मन मे सोचा।

"एक बात बोलू साब? एकबारगी आपको देख कर चौक गया था मैं..वो लड़का आपके जैसा ही दिखता था। काफी मिलता जुलता चेहरा है..

मैं और बात करने की स्थिति में नहीं था, मुझे बस निकलना था यहाँ से, मैंने कलीग से कहा "चलो यार जल्दी यहाँ से"

हम गाड़ी में बैठे, ठेले वाले ने आवाज़ दी"साब आपका नाम??"

"आशीष"

"कमाल है साब उस लड़के का नाम भी आशीष था।

बस और नहीं मैंने आनन फानन घर खाली किया। अब दो दिन की छुट्टी ले पहले घर जाऊंगा..फिर दोबारा शुरुआत करूंगा।

कोशिश करूँगा इस हादसे को भूलने की..पर शायद कभी भूल नहीं पाऊंगा वो जलता चेहरा, वो इंसानी चीख।


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