इश्क और मुश्क छुपता नही
इश्क और मुश्क छुपता नही
"सुनो गिरीश बात करनी थी, मैं चाहता हूं अब शैली की शादी की बात चलाई जाए... बड़ी हो गई है, पढ़ाई तो शादी के बाद भी जारी रहेगी...”
गिरीश को अचानक ऐसा लगा जैसे दिल की जगह पर एक वेक्यूम बन गया हो। पूरी बॉडी में कंपन होने लगा उसे अपनी इस स्थिति का अंदाजा नहीं था। उसे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा है। वह हल्के से मुस्कुराया बोला, "ठीक है अंकल जी।"
गिरीश को मिस्टर अवस्थी एक अनाथ आश्रम से लेकर आए थे। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रभावित होकर। इस समय गिरीश बीएससी, एमएससी करने के बाद पीएचडी कर रहा है। शैली, गिरीश से 5 साल छोटी और मिस्टर अवस्थी की इकलौती बेटी है। लेकिन उसके अंदर बचपना बचपन से भी ज्यादा है। गिरीश और शैली हमेशा लड़ना-झगड़ना, एक-दूसरे को छेड़ना बस यही दोनों के बीच का रिश्ता है। कभी ना शैली ने कुछ कहा ना गिरीश ने जैसे चुप रहकर ही चाहते हो कि सब इस चीज को समझ जाएं।
शैली को देखने के लिए लोग आए। सफेद क्रीम सिल्क की साड़ी पर मोटे-मोटे मोतियों की माला और लंबे बाल खोले शैली एक अप्सरा की तरह लग रही थी। गिरीश फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक निकालने आया और शैली को देखता रह गया। शैली ने भी कनखियों से देखा औऱ फिर तैयार होने लगी। गिरीश कोल्ड ड्रिंक लेकर बाहर निकल गया। बातचीत हुई और हर बार की तरह किसी ना किसी मुद्दे पर रिश्ता नहीं हो पाया। उनके जाने के बाद मिस्टर अवस्थी सर पकड़ कर बैठ गए।
"गिरीश क्या कमी है मेरी बेटी में जो हर बार किसी ना किसी वजह से रिश्ता होते होते रह जाता है?”
"कमी शैली में नहीं है अंकल, कमी समय में है। शैली से सब 25 वर्ष की आयु के अनुसार बर्ताव की उम्मीद करते हैं लेकिन इकलौती होने के कारण शैली के अंदर जो बचपना है वह यह सब लोग जल्दी से हजम नहीं कर पाते... उसके उठने-बैठने का तरीका, बोलने का तरीका सबको ऐसा लगता है जैसे वह एक्टिंग कर रही हो... पर मैं जानता हूं कि वह है ही ऐसी... उसे ऐसा जीवन साथी मिलना चाहिए जो उसे समझ सके... शैली अगर रात को रो-रो कर किसी के लिए कहे मुझे उससे जिंदगी भर बात नहीं करनी तो उसका जीवन साथी बोले, ठीक है सही किया... सुबह उठकर जब वह उस इंसान से हंस कर बात करे तो जीवनसाथी बोले सही बात है किसी चीज को दिल से नहीं लगाते... उसके हंसने-रोने, खेलने को समझ सके उसकी जिद को समझ सके... उसे ऐसा जीवन साथी जरूर मिलेगा।”
यह कहते-कहते गिरीश की आंखों में पानी उतर आया। मिस्टर अवस्थी ने देखा और गौर किया कभी इस नजरिए से क्यों नहीं देखा उन्होंने?
अगले दिन सुबह अवस्थी जी ने गिरीश को फोन किया, "गिरीश आ जाओ शैली की सगाई है।" गिरीश अंदर तक कांप गया लेकिन अपने भगवान और अपने अभिभावक जैसे इंसान की बात को कैसे टाले। तैयार होकर पहुंचा तो काफी मेहमान आए हुए थे। शैली ने उसके फेवरेट कलर की ड्रेस पहनी थी। मिस्टर अवस्थी ने आए हुए सब मेहमानों से कहा, “मिलिए मेरे होने वाले दामाद मिस्टर गिरीश से!"
गिरीश ने हैरानी से सब की तरफ देखा। मिस्टर अवस्थी आगे बढ़े और गिरीश के कंधे पर हाथ थपथपाते हुए बोले, "जो भी बचकानी हरकतें शैली मेहमानों के सामने करती थी उसका कारण मुझे समझ नहीं आता था, लेकिन उस दिन तुम्हारी बातों ने और तुम्हारे आंखों में आए उस पानी ने मुझे सब समझा दिया। मैं जानता हूं तुम दोनों ने कभी आपस में इस बारे में बात नहीं की, ना कभी सोचा... लेकिन तुम्हारे मन-आत्मा अंदर से जुड़े हैं। जितने अच्छे से तुम मेरी बेटी को समझ सके मैं हजारों सालों में भी ऐसा लड़का नहीं ढूंढ सकता जो शैली को इतने अच्छे से समझ सके... जाओ खुलकर अपने प्यार का इजहार करो!"
और गिरीश खुशियों की चमचमाहट लेकर शैली के बराबर में बैठ गया और बोला, “मैं तो एहसान के बोझ तले दबा था तुम तो बोल सकती थी।”
शैली बोली, "बोलने की जरूरत ही नहीं थी गिरीश... मुश्क और छुपाए नहीं छुपता!"