वो चली गई
वो चली गई
कढ़ाही में सब्जी लगने की महक आने लगी तो विचारो ने ब्रेक लिया.. लगा कल ही कि तो बात थी ।मेरी शादी को करीब 2 साल हो चुके थे, वैसे तो स्त्रियां स्वभाव से आत्ममुग्ध होती हैं..मैं भी थी..
गाना, बजाना, सिलाई, पाककला में निपुण..अप्सरा जैसी ना सही पर गिनती तो खूबसूरत महिलाओ में ही थी।
कभी कभी आत्ममुग्ध होना धीरे धीरे कठोरता और अहम में तब्दील हो जाता है..जब आप अपने चारों ओर एक परत बना लेते हैं ..परफेक्ट होने की, सर्वगुणसम्पन्न होने की परत..यही अहम घायल होने लगता है जब इस परत के पार कुछ आवाजें सुनाई देने लगती है।
"अरे देखो तो कितनी सुंदर है..सुना है उसे कथक भी आता हैं.. अरे बहुत बड़े कॉलेज से गोल्ड मेडलिस्ट है..फिर भी देखो तो घर के कामो में कितनी परफेक्ट है"
फिर हम धीरे से झांकते है परत के पार.. कौन है जो मेरी सत्ता पर काबिज होना चाहता है..कौन आया है मुझसे बेहतर"
मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा था..माँजी के कमरे से उठती महिलाओ की आवाज़ ने कपड़े तह करते मेरे हाथों को रोक दिया था
"देखो बहन जी बेटे की शादी है तो सबको आना है.. हमारे परिवार के बीच को फॉर्मेलिटी वाली बात तो है नही..बहू तुम्हारे आशीर्वाद के बिना नहीं आएगी..बस यही प्राथर्ना है कि मेरी बहू भी आपकी मानवी जैसी निकले..."
मेरे चेहरे पर तैरती मुस्कान माँजी के शब्द सुन लड़खड़ा गई "अरे मानवी क्यों?मानवी से भी अच्छी निकले ईश्वर करे"
"हुह..मुझसे अच्छी.. देखते हैं"
शादी में बेहतरीन से बेहतरीन तरीके से तैयार होकर गई..मन मे कहीं था, कि सुंदरता से ही पहला किला फतह कर लुंगी।वो सामने स्टेज पर थी..साक्षात देवी की मूर्ति जैसी.. इतना सुंदर भी कोई होता है क्या? सुंदरता का अहम भरभराकर नीचे गिर पड़ा था..खुद को तस्सली दी..ओह मेकअप से सब बदल जाता है देखते है दो दिन बाद..
इस विचार से मन को शांति मिली तो मैं अशान्त पेट का विचार कर बुफे की तरफ चल दी।
फ़ोटो खिंचवाने का मन ही नही था, पर आंटी के जबरदस्त इसरार पर की"जेठानी हो मानवी, ऐसे काम नही चलेगा..कुछ अपने गुण मेरी बहू को भी सिखाना"
भरभराता किला कुछ उठ खड़ा हुआ था..मैं गर्व से मुस्कुराई..वो भी मुस्कुराई और बोली"दी यहाँ आइए साथ मे फ़ोटो लेते हैं।"
"हुह,मन मे खुन्नस खा रही होगी तारीफ सुनकर..अभी नई नई है तो अच्छी बनकर दिखा रही है"
मैंने देखा वो अब भी मुझे देख रही थी.. मैं बराबर में जाकर खड़ी हो गई..फ़ोटो खिंचवा कर मैं हट गई हर समय मन मे यही उधेड़बुन की..कहाँ कैसे उससे बेहतर दिखूं।
शादी के बाद में होने वाले सारे नेग मैंने किये क्योंकि आंटी के बेटे की कोई भाभी नहीं थी..और ऑन्टी मुझे अपनी बड़ी बहू की तरह मानती थी।एक सन्देह दूर हो गया था कि वो बिना मेकअप के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी..मेरी ईर्ष्या बढ़ती जा रही थी।फिर एक दिन माँजी ने उसे घर पर इनवाइट किया.. उसके लिए गिफ्ट आ चुके थे। मैंने अपनी सारी पाककला झोंक डाली थी..मैं कमतर नहीं दिखना चाहती थी..वो आई..उसके व्यवहार ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था।
उसका उठना बैठना, खाने का तरीका सबमे एक जादू था..मैं इस जादू का तिलिस्म तोड़ने पर आमादा थी।
खाने के बाद सब अपने हमउम्र के साथ बातों में तल्लीन हो गए..वो भी मुझसे बात करने आ बैठी
"दी एक बात पूछू बड़ी कंफ्यूज हूँ"?
"हम्म पूछो"
"हमारी अभी अभी शादी हुई है, कोई कहता है कुछ समय एन्जॉय करो कोई कहता है.. पहला बच्चा जल्दी करो..समझ नहीं आ रहा"
मेरे अंदर एक आदत है कि जानबूझकर सलाह गलत नही दे सकती थी..मेरे हिसाब से जो मुझे सही लगा मैंने उसे बता दिया।
"देखो वैसे तो ये तुम्हारा आपसी निर्णय है पर मेरी मानो तो पहला बच्चा जल्दी करो..क्योंकि ज्यादातर मैंने देखा है कि ज्यादा लेट करने पर दिक्कते आती है"।
उसने कोई सवाल जवाब नहीं किया सिर्फ मुस्कुराई और बोली"आपको कढाई आती हैं ना, मुझे इनके लिए एक रुमाल काढ़ना है"
"हम्म, सिखा दूंगी"
इस मुलाकात के बाद सब अपने जीवन मे व्यस्त हो गए..एक महीने बाद ही तनु के गर्भवती होने की खबर मिली.. तो उसने मेरी बात को संजीदगी से लिया था।मेरी एक बेटी थी और चाहती थी कि उसको भी पहली बेटी ही हो..ना ना मुझे गलत मत समझिये मुझे फर्क नही पड़ता..पर घर के बड़ो को पड़ता था..और उनकी नजर में ये कमतरी की निशानी थी..और कमतर दिखना मुझे पसंद नही था।
समय पर तनु ने एक बेटे को जन्म दिया..मैं बेमन से देखने गई,वो हाथ पकड़ कर बोली"आपने सच कहा था..माँ बनने में बड़ा सुख है..देखो हमारी डॉल का भाई आ गया।"
मैं केवल मुस्कुराई। करीब 6 महीने बाद सुबह का काम निपटा कर चाय पी रही थी..बाहर से सासु माँ के चीखने की आवाज आई..मुझे लगा वो गिर गई मैं दौड़ती हुई बाहर गई..तनु के घर के बाहर हाहाकार मचा था..मैं कांपते हुए पैरो से आगे बढ़ी..सब दहाड़े मार मार कर रो रहे थे..तनु कहीं नही दिख रही थी।
मैंने सासु माँ से पूछा"मम्मी जी..क्या.."?
"मानवी, तनु चली गई..."
वो सर पीट पीट कर रोने लगी..अचानक मेरे पैरो में मनो वजन बढ़ गया..मैं धम्म से मेंन गेट पर बने चबूतरे पर बैठ गई। मैं मानना नहीं चाहती थी जो सुना वो सही था"...मम्मी जी क्या बोल रही हो"?मैंने भरे गले से पूछा
"तनु बिटिया गाड़ी लेकर निकली थी.. बेटे के डाइपर लेने..सबने मना किया था..सामने से ट्रक ने टक्कर मार दी..गाड़ी के साथ बॉडी के परखच्चे उड़ गए..पोस्टमार्टम होकर मिलेगी बॉडी"
"मेरे छाती पर हजारों किलो वजन महसूस कर रही थी..हिड़किया कहीं गले मे अटक गई थी..मैं पागलों की तरह इधर उधर देखने लगी..मानो अभी तनु आकर कहेगी"लो दी तुम्हारी दालचीनी वाली चाय।"
सामने भईया खड़े थे, तनु के पति.. अपने नवजात शिशु को गोद मे लिए..बच्चे की नाक बह रही थी..हाथ मे वही कढाई वाला रुमाल लिए बार बार उसकी नाक पोछ रहे थे।बच्चा भूख से बिलबिला रहा था..रोने के कारण नाक बंद होने का नाम नहीं ले रही थी।
"देखो हमारी डॉल का भाई आ गया" तनु की बात याद आई
मैंने दौड़कर बच्चे को गोद ले लिया..बेटी ने 6 महीने पहले ही मेरा दूध छोड़ा था..उस नवजात को गोद लेते ही मातृत्व हिलोर ले उठा..लगा तनु को आज दिल से गले लगाया है..नही पता था दूध आएगा या नही पर शिशु को कोने में जाकर छाती से लगा लिया।
बच्चे ने माँ समझकर मुँह चलाया तो दूध की धार फूट पड़ी..दूध के साथ ही फूट पड़ी मेरी रुलाई..मैं हिड़किया देकर खूब रोई..खूब रोई।
आज छोटा सा विहान मेरी और मेरे परिवार की जान है..ज्यादातर मेरे पास रहता है..मैं उसकी माँ जो हूँ.. और तनु वो भी मेरे साथ है अपने बच्चे के रूप में।काश वो समय उसके साथ प्रतिस्पर्धा में ना गुजारा होता..कुछ अच्छी यादे बनाई होती..कुछ बेहतरीन पल जिए होते।
बस यही कहूंगी,समय किसी का नहीं होता..कब क्या हो जाए कुछ नही पता..इसलिए खुद भी खुश रहे और दूसरों को भी खुश रखें।
काश! ये बात मैं समय रहते समझ पाती.. तो जी पाती कुछ समय खुले मन से उस प्यारी लड़की के साथ.. जो चली गई।
