इंसान
इंसान
राकेश एक रेस्टोरेंट से नाश्ता कर बाहर निकला ही था कि उसकी नजर अचानक अपने एक पुराने मित्र पर पड़ी।
उसके समीप पहुँचने पर उसे अहसास हुआ कि जैसे वह मित्र उसे जानते हुए भी उसे पहचानने से इनकार कर रहा था।
पर राकेश के बार बार जोर देकर पूछने पर उसने बताया। कि मेरी संपत्ति का बटवारा दोनों बेटों ने आपस में कर लिया। और अपनी अलग दुनिया में रम गए।
पास की जमा पूंजी पत्नी के महंगे इलाज में जाती रही, और फिर तुम तो जानते ही हो कि यहां जिसके पास धन नहीं हो उससे भला कौन रिश्ता रखता है।
अब राकेश को उसकी बात सुन उसकी इस दीन हीन दशा पर बड़ी दशा आई।
फिर उसने उसकी बगल से लेटे एक कुत्ते को देख बड़े आश्चर्य से पूछा अरे ये तो वही डॉगी है ना जिसे तुम छोटा सा बड़े प्यार से लाए थे।
राकेश की बात सुन वह बोला हाँ भाई ये वही है ,बस एक यही है जिसकी वफादारी मेरे जीवन की किसी परिस्थिति में नहीं बदली।
वो भी शायद इसलिए क्योंकि यह एक इंसान नहीं है, उसने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए कहा।