इन्द्रधनुष...
इन्द्रधनुष...
इन्द्रधनुष, यही नाम है न जीजा जी का ?
धत्त पागल, धनुष नाम है उनका।
ओहो उनका और खिलखिलाकर हँस पड़ी थीं दोनों सहेलियाँ ।
आज अनायास ही सुधा को याद आ गयी वो अपनी शादी वाली रात और ये बात। आज शिखा की शादी में जाने के लिए तैयार हो रही सुधा ने जब खुद को आईने में देखा तो याद आ गयी शिखा द्वारा बोली गयी बात और सुधा सोचने लगी ठीक ही तो कहा था शिखा ने कि इन्द्रधनुष का आधा धनुष तो है ही न जीजा के पास तो माना कि पूरे सात रंग न सही पर कुछ दो चार रंग तो रखते ही होंगे न देखना रंगीन कर देंगे वो तेरा जीवन, उफ्फ कहकर लाज से भर गयी थी सुधा और एक बार फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी थी शिखा ।
आज तैयार होते समय अपने शरीर के खुले हिस्सों पर लगे लाल नीले काले रंगों के निशानों को छुपाने का असफल प्रयास करते हुए अनायास ही उसके मुंह से निकल जाते हैं ये शब्द...
सचमुच इन्द्रधनुष के कुछ रंग तो रखते हैं तेरे जीजा जी और सही तो कहा था तूने रंगीन कर दिया इन्होंने मेरे जीवन के साथ साथ मेरा, कहते कहते सुधा की हिचकियों की आवाज उसके गले में ही घुट कर रह जाती है ।
