Vinita Shukla

Abstract

4.7  

Vinita Shukla

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इमुली की पिटाई

इमुली की पिटाई

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कई बार अम्मा से कहा, “इस इमुली को, हटा दो...कोई दूसरी कामवाली, नहीं मिलती आपको”. किन्तु वे, सुना- अनसुना कर देतीं. सीमा के मायके में, माँ ही बची थीं अब...भैया- भाभी, विदेश में बसेरा कर लिए थे. इमुली, अम्मा की सेवा में, बनी रहती. उनके लिए भी, मानों सारी दुनिया, इमुली में, सिमट आयी हो. सीमा को, उसका मुंहफट स्वभाव, जरा न भाता. अम्मा का, उस सिरफिरी औरत को, सर चढ़ाना, अच्छा नहीं लगता. कुछ कहो तो कहतीं, “वह जैसी भी है, भरोसे की है. इतने सालों से काम पर लगी है. किसी अंजान को, घर में घुसाने वाला, जमाना नहीं है. आजकल किसी का कुछ पता नहीं...बुजुर्गों को अकेला- दुकेला पा जाएँ ; तो गला दबा दें!” 

एक दिन सुबह- सबेरे, माँ का हालचाल लेने के लिए, फोन किया तो फोन उठा ही नहीं. सीमा चिंतित हो गयी. उसने अधीर होकर, इमुली के मोबाइल पर कॉल किया. उसका फोन भी नहीं उठा. यह गनीमत रही कि तब तक अम्मा ने, कॉल- बैक किया और सीमा ने, राहत की साँस ली; यह जानकर कि माँ, कुशलता से थीं. शाम को, फिर माँ का फोन आया तो सीमा को, अचरच हुआ. उनसे पता चला कि इमुली के पति ने, उसकी पिटाई कर दी है.

 “पर क्यों?” सीमा ने पूछा.

“क्यों क्या, आज मोबाइल, घर पर भूल गयी थी. किसी ने दोचार बार उस पर कॉल किया.”

 “तो ?” सीमा कुछ भ्रमित हो गयी थी.

 “थोड़ी देर बाद, उसका शराबी पति, घर में घुसा. स्वभाव का शक्की आदमी है”, अम्मा के स्वर में, रहस्य गहराता जा रहा था, “इमुली का मोबाइल उसे दिखाई दिया और उस पर, अनजान नम्बर से मिस्ड कॉल”, कहानी रबर की भाँति, खिंचती जा रही थी, “उस आदमी से, रहा नहीं गया. मिस्ड कॉल वाले नम्बर पर, फोन किया ...यह जानने के लिए कि उसकी बीबी से, कौन बात करता है... जिसने उठाया, उसने अपना, नाम ही नहीं बताया”

“ओह!” कहते ही, सीमा को, कुछ याद आने लगा. अम्मा बोलती जा रही थीं, “इमुली के घर आते ही, उसके आदमी ने, उसे धुन डाला...उस ‘रहस्यमय फोन- कॉल’ के चलते”

 अब बात, सीमा के दिमाग में, शीशे की तरह साफ़ हो गयी थी. आज घर के सामने, जुलूस निकल रहा था. रास्ता जाम हो गया. इस कारण, उसके पति शिशिर, घर पर ही थे. ऑफिस के लिए, निकल नहीं पा रहे थे. तब तक, उसका मोबाइल बजा. उसने शिशिर से अनुरोध किया, “जरा मेरा फोन, अटैंड कर लें. मैं रसोईं साफ़ कर रही हूँ.” शिशिर ने, उसका अनुरोध, मान लिया. फोन उठाते ही, वे किसी से, उलझ गये थे. उनकी आवाज, सीमा के कानों में, पड़ रही थी, “मैं क्यों बताऊँ अपना नाम...आपने मुझे कॉल किया है; पहले आपको, अपना नाम, बताना चाहिए...”

 ... “अरे भई ...आपने किसको, कॉल किया है, यह तो आपको, खुद पता होना चाहिए था...”

... “टाइम पास ,कर रहे हो क्या...? जाओ नहीं बताता नाम!” कहकर, बुदबुदाते हुए, उन्होंने, कॉल बंद कर दी थी. बड़बड़ाते जा रहे थे, “कैसे कैसे, अहमक हैं दुनिया में...जान ना पहचान...नाम पूछने के लिए, सर पर, सवार हुए जा रहे हैं!” सीमा तब दौड़कर, रसोईं से आयी थी. देखा तो पाया यह इमुली का नम्बर था जो उसने अभी तक, सेव नहीं किया था...अपनी छोटी वाली, डायरी से देखकर, डायल कर दिया था. पतिदेव के बिगड़े हुए मूड ने, उसे आगे, कुछ सोचने का, अवसर नहीं दिया. शाम होते होते , वह इस घटना को, भूल ही गयी.

 अब अम्मा को क्या बताती- जाने – अनजाने, उनकी ‘दुलारी’ इमुली की, पिटाई का, कारण बन गयी?! मुँह से निकला, “बेचारी इमुली...इस बार आऊँगी तो उसके लिए भी, नया सलवार- सूट, लेती आऊँगी” अम्मा हैरान थीं कि बेटी के मन में, अचानक, ‘जनम- जनम की बैरन’ इमुली के लिए, इतना प्यार कैसे उमड़ आया...

उसकी कुगत को लेकर, ऐसी अभूतपूर्व सहानुभूति...? वह भी तब, जब इमुली की पिटाई, आए दिन, होती ही रहती थी. सीमा के लिए, यह, कोई नई बात तो नहीं थी!  


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