Vinita Shukla

Inspirational

4.3  

Vinita Shukla

Inspirational

दोगले लोग

दोगले लोग

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जिसने सुना, दांतों तले उँगली दबा ली। वर्मन परिवार की इकलौती बिटिया, अपने परिवार से, नाता तोड़ रही थी। यह कल ही की बात तो लगती थी..। जब श्रीमान और श्रीमती वर्मन, घमंड में, तने- तने घूम रहे थे। उनकी बेटी मेधा का नाम, स्थानीय समाचार- पत्रों पर, छाया हुआ था...एम.ए. राजनीति- शास्त्र में, स्वर्ण- पदक जो मिला था, उसको..। साथ ही प्रतिष्ठित महिला- महाविद्यालय में, नियुक्ति भी।

मेधा के लिए, विवाह- प्रस्तावों की, लाइन लग गई थी। उसके माता- पिता, उसे आगे की पढ़ाई के लिए, विदेश भेजने की सोच रहे थे। किन्तु मेधा ने, सबकी आशाओं पर, पानी फेर दिया। अपनी दादीमाँ के साथ वह, महिला- महाविद्यालय के, आवासीय- परिसर में, रहने चली आयी थी। उसने माँ- बाप और भाई- भाभी से, सम्बन्ध- विच्छेद कर लिया। समाज में खलबली मच गयी थी। मेधा के इस अजीबोगरीब फैसले की वजह, किसी को पता नहीं; सिवाय उसके घरवालों और उसकी पक्की सहेली रिया के।

मेधा ने रिया को बताया था, “तू तो जानती है, मेरे लिए जो कुछ किया, दादी ने किया.ममा- डैड तो अपनी- अपनी नौकरियों में, व्यस्त होते थे। भैया भी अपने दोस्तों के साथ, खेलते रहते। दादी ही मेरी देखरेख करती रहीं। अब वे अशक्त हैं...तो उनके लिए, किसी के पास, समय नहीं। भैया, भाभी के साथ, कनाडा में बस गये...उन्हें ‘बुढ़िया’ से, कोई लेना- देना नहीं; और ममा, डैड...! बिरादिरी में, सबसे मिला- जुला करते हैं; परन्तु अम्मा के संग, दो घड़ी बैठ नहीं सकते। वे बेचारी,पिंजरे की कैदी हो गयी हैं...अपनी पेंशन के पैसे तक, खर्च नहीं कर पातीं। ममा उस पर भी रोक लगाती हैं..। ममा ने उनके गहने भी, कहीं छुपा दिए हैं!”

रिया सोच रही थी कि संभ्रांत दिखने वाले लोग भी, कितने दोगले हो सकते हैं!



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