इलायची दोगी?!
इलायची दोगी?!


"अरे... इलायची जी !!!?" मुझे रूम में देखते ही किसी जानी पहचानी सी आवाज में एक खनक थी।पेशेंट बेड से उठने की कोशिश करने लगा। उसके पास खड़ी नई रिक्रूट नर्स हैरत में आ गयी। वो दौड़ कर डॉक्टर को बुलाने भागी, " सर पेशेंट नंबर 14 "।
मैंने गौर से देखा, बेड पर वो अनुभव था, मेरा पुराना दोस्त ।उसे लेटे रहने का इशारा करते हुए मैंने एक ही सवाल में एक साथ कई सवाल किए "तुम यहाँ?.. ऐसे? ..कैसे? और ये सब?" अभी कुछ मिनट पहले ही मैं इस वार्ड में अपनी नर्सों के साथ आयी थी। अनुभव बहुत बीमार था। उसका इलाज लम्बा चलना था।
डॉक्टर्स उसे रिस्पांड करते देख , खुश हो कर जाने लगे मगर मुझे देख मुस्कराते हुए बोले, "डोंट वरी अभी कुछ देर और मैडम , हेड बस आ ही रही है ।वो साइन कर देंगी तो आप..।" मैं घर जाने को बेचैन थी पर अब अनुभव इतने सालों बाद सामने था।ईश्वर... कुछ मिनट तो उसके नाम हो ही सकते हैं न!, सोच रही थी कि "ओ इलायची जी ... सुन न यार..इलायची दोगी?" उस वक्त मेरे पास इलायची क्या, कुछ भी नही था। मैंने ना में सिर हिला दिया। एक ख़ामोशी बीच मे टहलने लगी। फिर कुछ देर मुझे एकटक देखने के बाद अनुभव बोला "कुछ तो बोलो, या अब भी नाराज़ हो?" मैने फिर 'नहीं' में सर हिला दिया ।
हम दोनों पहली बार कलनरी क्लासेस में मिले थे।वो सांवला-लंबा, मगर मोटा सा, हर बार मसाले पहचानने में गड़बड़ी करता था। छोटी इलायची और बड़ी इलायची को लेकर झड़प हुई थी मेरी उस से। मैंने उस दिन हल्के हरे रंग का सूट पहने था और झल्ला कर बोली थी "मिस्टर ये जो रंग मैंने पहना है न छोटी इलायची इसी रंग की होती है।", "ओके, छोटी इलायची जी" तब से वह मुझे मेरे नाम से कम "इलायची जी "कह कर बुलाता था और मैं उसे " मोटू"।
उसके बाद हम दोनों ने अलग अलग होटल मैनेजमेंट कोर्स में दाखिला ले लिया था। मगर तब भी अक्सर हम मिलते, वो अपनी बनाई डिशेस साथ लाता। और साथ खाने के बाद हमेशा मुझसे "हरी इलायची"मांगता। "इलायची जी , इलायची दोगी ?"। ये उसका तरीका रहता था मुझे चिढाने का। मगर मैं भी कम नहीं थी, हमेशा इलायची साथ रखती थी।मेरे तुरंत इलायची हाजिर करने पर जाने क्या सोच कर खूब हँसता था।
ख़ैर, कुछ साल पहले हम एक इंटरव्यू में साथ-साथ थे। इंडिया के जाने माने बड़े होटल में जॉब के लिए 5 सिमिलर पोस्ट वेकेंट थीं। उसने अपनी और मेरी प्रेजेंटेशन को एक साथ डिपाजिट कर दिया।उसने मेरी सिंपल प्रेजेंटेशन को थोड़ा क्रेयॉटिवली प्रेजेंटेबल बना दिया था। सबसे पहले मेरा कॉल आया, इंटरव्यू ओवर होने के बाद उन्होंने मुझे मेरी फाइल का पैकेट पकड़ा दिया। जिसमे उसकी फ़ाइल, उन लोगों की गलती से चली आयी। मैने भी ध्यान नहीं दिया। मेरे बाद ठीक उसकी बारी थी। पर उसकी फ़ाइल मिसिंग होने की वजह से उसके पॉइंट कम हो गए। सबसे डेसरविंग कैंडिडेट होने के बावजूद जॉब मुझे औऱ एक औसत कैंडिडेट को आफर हुई ।औऱ उसका उस नामी होटल के काम करने का सपना अधूरा रह गया।
इस दिन लौटते समय हम दोनों ने साथ में घर के लिए कैब ली थी।वो अपने लिए दुखी तो था पर मेरे लिए बहुत खुश था।उसी खुशी में में उसने फिर से मुझे मेरी फ़ाइल देखने की लिए मांगी। मेरी फाइल निकालते समय उसकी फ़ाइल उस पैकेट में हम दोनों को दिख गयी। मैं भी हैरान थी कि मेरे पैकेट में उसकी फाइल कैसे ?! बस पूरे रास्ते वो खमोश बैठा रहा था।उसे गलतफहमी हो गयी कि मै ही उसके फेलियर के लिए रेस्पॉसिबल हूँ। तब उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वो.. हमारी आख़िरी मुलाकात थी।
इसके बाद हम दोनों अपने-अपने रास्ते मे बढ़ चले थे। मैने अपनी फील्ड बदल ली थी। मुझे उसके जुनून और तरक़्क़ी के बारे में पता चलता रहा। दिल खुश होता था कि उसे उसकी मेहनत का फल मिल रहा है। मगर इस हॉस्पिटल के चक्कर में , पिछले 6 महीनों से.. उसके बारे में कुछ नया नहीं पता चला। लास्ट टाइम मैंने पढ़ा था कि वह उसी होटल में टॉप पोस्ट पर था। कुछ 8 महीने पहले उसके एक मैगजीन के इनटरव्यू में उसने कहा था ," इसी होटल में मैने किसी को हमेशा के लिए खो दिया था..पर गलती उसकी नहीं थी।" उस लाइन को पढ़ कर सुकून हुआ कि वो समझा। पर फिर जिंदगी की जद्दोज़हद में और ये हॉस्पिटल का बंधन, अपने पुराने दोस्त मिलना चाह कर भी समय नही निकाल पाई।
लेकिन मुझे आज हर हाल में जल्द से जल्द हॉस्पिटल से घर पहुंचना था।पर अनुभव को ऐसे देख कर समय जैसे थोड़ी देर को रुकने का कह रहा।।मैंने उसे ऊपर से नीचे देखा, बहुत कमजोर हो गया था। कुछ महीने पहले ही तो तस्वीर में कितना अच्छा दिख रहा था। मेरी नजर उसके चेहरे पर रुकी, उसकी आंखों में शायद उस गलतफहमी के आंसू जमे हुए थे। हमारी नजरें मिलते ही वे समय के बांध को तोड़ बह चले। उसके आँसूओ से उसका चेहरा ही नहीं, मेरा मन भी भीग गया । सालो से सूखी दोस्ती की जमीन पर नमी आ गयी थी। वो पुरानी यादों की लहलहाती फसल बोने लगा था। अपनी गर्दन के पीछे हाथ फिराते कह रहा था " यार एक दिन को भी तुम्हे नहीं भूला, चलो अब फिर से दोस्ती कर लेते हैं..क्या ख्याल है?!" मैंने मुस्कराते हुए कहा , "तुम फिर किसी बात पर मुह मोड़ लोगे....क्या फायदा ?"
"अब पल ही कितने रह गए ...मेरे पास यार..!!! " वो अपने सीने पर लगे मशीनों के तारो को दिखाते हुए दर्द से बोला। मैंने अपने बेड पर लेटे-लेटे उसकी ओर हाथ बढ़ाया।उसने अपना हाथ बढ़ाते हुए बहुत कस कर मेरा हाथ पकड़ा। शायद उस पल उसे ऐसा लगा हो जैसे ....इस बार हम दोनों ने आख़िरी बार हाथ मिलाया है। "ठीक हुआ... तो तुम मिलोगी न !?"
हम दोनों की आंखें भीगी थीं, मुँह में बोल नहीं थे ,एक दूसरे को देखते रहे। वो बोला,"तुमने बताया नही की तुम यहां क्यों हो ?!
"भगवान चाहते थे कि किसी बड़े आदमी से मेरी मुलाकात हो तो ये सब रच दिया।" मैंने हंसते हुए कहा। वो गम्भीर हो कर बोला
"मैंने हमारा बहुत समय बर्बाद कर दिया ..न? "
" नही ऐसा तो नही ...जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।" मुझे ऐसा कह्ते सुन वो फीकी हंसी हंस दिया" यार तुम और तुम्हारे टेलर मेड जवाब ।"कह कर उसने अपना सर दूसरी तरफ कर लिया । कुछ देर के लिए फिर हमारे बीच सन्नाटा हो गया। मैंने आवाज में असुरेन्स लाते कहा,
"यार तुम ठीक हो जाओगे ...और तब कुछ बना कर लाना ,साथ खाएंगे।" उसने मुझे तुरंत पलट कर देखा
"औऱ तुम... इलायची याद रखना। " उसकी हल्के झुर्रीदार चेहरे में अब रौनक सी थी, " अब भी शरारत सूझ रही तुमको।" कह कर मैं मुस्करा पड़ी। उस पर दवा का असर हो रहा था। धीरे-धीरे अपनी कहते ,वो नींद में चला गया।
इधर हॉस्पिटल का मेरा पेपर वर्क पूरा हो गया था। डॉक्टर्स, आज मुझे होपलेस हो कर डिस्चार्ज कर रहे थे। अब मेरे पास समय बहुत कम था,मैं अपनी आखिरी साँस अपने परिवार के बीच लेना चाहती थी।
मैने घर पर फोन करवा कर इलायची का पैकेट मंगवाया। और जाते-जाते एक नोट के साथ नर्स से उसके सिरहाने पर रखवा दिया।
"गेट वेल सून मोटू...
इलायची 😊"