इक मुलाकात जरूरी है

इक मुलाकात जरूरी है

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रिश्ते बचाने है तो मिलते भी रहिये, जनाब

लगाकर भूल जाने से तो पौधे भी सूख जाते हैं।


हाँ ये बात बिलकुल सच है।

आज के जमाने में रिश्ते जैसे कहीं कैद से हो गए हैं।

हम रिश्ते तो रखना चाहते हैं लेकिन सिर्फ

what's app group में, वास्तविकता में नहीं।


हाँ, वो शख्स भी जैसे कहीं गम सा हो गया है,

जब पिछली दफा मिला था तो

एक अलग बात ही नजर आयी थी।


अब ये बात अलग है की वो मिला भी तो

उस तोहफे को वापस करने के लिए

जो कभी मैंने उसे दिया था।


हाथों में मेहंदी लगाए उन्होंने मेरा हाल पूँछा था,

ज़रा करीब होते तो समझते कि कैसा हूँ मैं।

हर बातों में लगता है कहीं उनकी बात जरूरी है

रिश्तों में सहमती के लिए इक मुलाकात जरूरी है।


वो मेहंदी, महावर, चूड़ी, बिंदिया थे किसी और के नाम के

शख्स वो मुझसे गुजरा है बड़े ही एहतराम से

ये किस्से उस दिन शुरू हुए चले जो कई शब तलक

जला हूँ मैं जब बीते कल की हर उस बीती शाम से।


मैं खुद को सुलगाना छोड़ सकूँ ऐसा एक साथ जरूरी है

तुम समझो अब भले नहीं इक मुलाकात जरूरी है।


जब आये तो तुम रोते हुए

जो गए भी हो तो रोते हुए,

तुम्हारा और इन अश्कों का आपस में कुछ हिस्सा है,

जब तलके तुम्हारी पलक न भीगे ऐसा ही कुछ किस्सा है।


वो याद तो होगा तुमको शायद जब तुम्हारे अश्कों को पिरोया था,

इक दफा तुम्हारी आँख नम हुयी मई घंटों बैठ के रोया था।।


उन रात के लम्हों का और मेरे घर की छत का कुछ रिश्ता है

जब जिक्र तुम्हारा आता है कुछ तो दिल में चुभता है।


वो होंठो की लर्जिश (कँपकँपाहट) और 

तुम्हारे हाथों के लम्स (छुअन),

चाँदनी रात और दोनों 

की आँख नम।


क्या याद है तुम्हें ?

क्या याद है तुम्हें ?


इस चुभन के बदले दिल में मेरे एहसासात जरूरी है

एक बार चले आओ तुम इक मुलाकात जरूरी है।


क्या कहें क्या न कहें ये किस्सा पुराना हो गया,

चले आओ कि तुम्हें देखे इक ज़माना हो गया।


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