इडली साम्भर वाली बहू
इडली साम्भर वाली बहू
" जल्दी आ जाओ... खाना तैयार है !"
रेवती ने थाली में चम्मच बजाते हुए अतुल को बुलाया। अतुल आ तो गया लेकिन जैसे ही उसने टेबल पर परोसे हुए खाने को देखा कि उसके मुंह से निकल गया....
" कभी पूरी आलू की सब्जी भी बना दिया करो मेरी जान! ये रोज़ रोज़ डोसा , इडली, उत्तपम खाकर मैं अब थोड़ा बोर होने लगा हूँ !"
अतुल ने रेवती से कहा।
तो... रेवती अपनी साड़ी के प्लीट्स ठीक करते हुए बोली ,"अच्छा... तुम इतनी जल्दी बोर हो गए ? पर तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम्हें साउथ इंडियन डिशेस बहुत पसंद है !"
"हाँ... हाँ... मैंने बोला था। पर रोज़ रोज़ खाकर मैं बोर हो गया हूँ ना...!"
"अगर ऐसा ही था तो मम्मी जी को जाने ही क्यूँ दिया? तुम्हें तो पता ही है कि उत्तर भारतीय व्यंजन बनाना अच्छी तरह नहीं आता। अब आज किसी तरह खा लो। कल टॉय करुँगी पूरी और आलू की सब्जी बनाने का!"
रेवती मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली।उधर अतुल बेमन से आधा डोसा खाकर ही ऑफिस के लिए निकल गया।
रेवती और अतुल की शादी हुए अभी चार महीने ही हुए थे। दोनों की लव मैरिज थी। रेवती को दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाने थोड़ा बहुत आते थे। शुरु शुरू में तो प्यार की खुमारी में तो अतुल ने कह दिया था कि उसे डोसा बहुत पसंद है... पर अब वह नाश्ते में रोज़ विविधता चाहने लगा था।
दरअसल बात इतनी सी नहीं थी।बात यह थी कि अतुल की माँ आशा जी बहुत अच्छा खाना बनाती थी। अतुल और रेवती की शादी के बाद वह दोनों की नई नई गृहस्थी जमाने आईं थीं तब उनका घर में यूँ पैर फैलाकर रहना रेवती को पसंद नहीं आया था और रेवती उनकी बात मानने से अक्सर कोताही करने लगी थी।एक दो बार ज़ब आशा जी ने रेवती को कुछ उत्तर भारतीय डिश बनाने और सिखाने की कोशिश करती तो रेवती को नहीं पसंद आता था। इसके अलावा उसे सास की टोकाटोकी भी पसंद नहीं थी।एक तो रेवती अपनी सास की बात नहीं मानती तो आशा जी जाकर अतुल कहती कि,"बहू मेरी बात नहीं मानती है!"
जिससे अतुल आजिज होकर एक दिन बोला,"माँ!अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो छोड़ दो ना...! तुम उसे सीखाती क्यों हो?गफिर अतुल ने दूसरी तरफ रेवती से जाकर कहा कि,"रेवती!"तुम मेरी मां का अपमान क्यों करती हो? अगर वह तुम्हें कुछ बताना और सीखना चाहती है तो सीखने में हर्ज क्या है?"बस... यह सब सुनकर आशा जी को बहुत बुरा लगा और वह अगले ही दिन कानपुर चली गई।आप उनके जाने के बाद रेवती को भी घर खाली खाली लग रहा था और उसे यह लग रहा था कि काश आपके रहते हुए भाषा से कुछ सीख लेती और आशा जी के रहने से घर के अन्य काम भी सुचारू रूप से चल रहे थे। रेवती किसी भी तरीके से चाह रही थी कि उसकी सास वापस आ जाए। इसलिए वह अतुल को एक जैसा ही नाश्ता खिला रही थी ताकि तंग आकर वह आशा जी को लाने को राजी हो जाए।इधर रेवती ने आशा जी को फोन करके कहा कि,
"मम्मी जी आप आ जाइएm आपके बिना मन नहीं लगता है!"अपनी बहू का आग्रह सुनकर आशा जी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। वैसे भी कानपुर में उनका मन कहां लगता था। पति के देहांत के बाद वह अपने देवर देवरानी के साथ कानपुर में रह रही थी। अब जब बहू ने बुलाया तो खुशी-खुशी जाने को राजी हो गई।उधर अतुल को भी चैन कहाँ था?उसे समझ आ गया कि अगर अपनी पसंद का खाना खाना है तो मम्मी जी को ले आओ।
अब रेवती बहुत ख़ुश थी कि उसका तीर निशाने पर लगा था। और अगले ही दिन अतुल मम्मी जी को कानपुर से ले आया था।
आजा जी के आने से इस घर की खोई हुई खुशियां वापस लौट आई थी वैसे भी चिंतकों में बुजुर्ग का आशीर्वाद रहता है उस घर में खुशियां अपने आप ठहर जाती हैं।
अब सास बहू मिलकर रहती थी और घर में सब खुश थे।अतुल और रेवती जब ऑफिस से भी साथ दे तो बहुत खुशी-खुशी आते थे क्योंकि घर में उन्हें मां इंतजार करती हुई मिलती थी। अब जिंदगी बदल गई थी...!माँ जो वापिस आ गई थीं।