arun gode

Inspirational

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arun gode

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इच्छाशक्ति

इच्छाशक्ति

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जिल्हास्तर के केंद सरकार के कार्यालय में एक चतुर्थश्रेणी कर्मचारी कार्यरत था. वह उसी जिल्हे के आप-पास गांव का रहनेवाला था. घर में जेष्ठ था. अन्य भाई गांव में किसानी करते थे. उन सभी भाईयों में वह अकेलाही ज्यादा लिखा पडा था. नौकरी करते वक्त,उसने मुक्त विश्र्वविद्यालसे कला शाखा में स्नातक की डीग्री ले चुका था. कार्यालय में जीस पद पर उसकी नियुक्ती हुई थी. उस पद के लिए शालांत परिक्षा सिर्फ आवश्यक थी. कार्यालय ने उसे कारकुन के पद लिए कार्यालियन परिक्षा में उत्तीर्ण होने पर नियुक्ती दी थी. लेकिन उसे दुसरे स्थान पर परप्रांत में प्रधान कार्यालय में सेवा देना था. उसकी वहा से अपने जन्मभूमि के करिब स्थानातर होने की कोई संधी नही थी.रिती –रिवाजनुसार उसके बाहर जानेपर उसके हिस्से की खेतिबाडी पर स्थानिय भाई कब्जा कर लेते. इस डर से उसने कही अन्य जगह न जाने का मन बना लिया था.

कुछ दिनों बाद , प्रधान कार्यालय से एक अधिकारी का तबादला वहा हुआ था. उस अधिकारी का वहां जानेपर अच्छा स्वागत हुआ था. सभी कर्मचारीयों कि राय थी कि साहब कुछ सालों बाद फिर प्रधान कार्यालय में वापिस लौट जायेंगे. जो एक सच्चाई थी. इसिलिए सभी कर्मचारी ,साहब और उनके परिवार के साथ अच्छे मधुर सबंध बनायें रखने का प्रयास कर रहे थे. वह चतुर्थश्रेणी कर्मचारी जिसका नाम अमर था,वह साहब के बहुत जल्दी करिब हो गया था. साहब और उनका परिवार भी अमर के साथ अच्छा व्यवहार करते थे. साहब को कोई भी परेशानी होनेपर वह स्थानिय होने के कारण उन्हे मदत कर देता था.

अमर का अच्छा सिमित परिवार था. उन्हे दो बेटें और एक लडकी थी. सबसे बडा बेटा कान्वेंट में पढता था. जब उसने देखा कि साहब के बच्चे अच्छे कान्वेंट में पढते है. उसने भी अपने बडे बच्चे को सेमिइंग्लिश स्कूल में दाखला दिया था. साहब ने फिर अपने बच्चों के भविष्य का खयाल रखते हुयें भारत सरकार के केंद्रिय विद्यालय में डाला था. उसने साहब से पूछा था कि आपके बच्चे तो शहर के पास के सबसे नामी कान्वेंट पढ रहे थे. फिर भी आपने इतने दूर के स्कूल में क्यु डाला है ?. साहाब ने उसे मजाक में कहा मैं आप की तरह बडा जमिनदार थोडी हूं. मुझे कहा एकही जगह हमेशा के लिए रहना है. स्थानांतर होते रहेंगे. फिर दुसरे जगह जरुरी नहीं कि बच्चों को अच्छे कान्वेंट में प्रवेश मिले. केंद्रिय विद्यालय में होने से जहां भी स्थानांतर पर जानेपर, उन्हे वहां के केंद्रिय विद्यालय प्रवेश मिल जाएगां. उनका पाठ्यक्रम भी एकसमान और समय के साथ एक जैसा चलता है.इसलिए छात्रों का वहां जानेपर किसी प्रकार की कठनायों का सामना नहीं करना पडता है.स्कूल कि फीस भी बहुत कम पडती है,उसका प्रधान कार्यालय से प्रतिपूर्ति भी हो जाती है.


फिर उसने अपने दोनों छोटे बच्चों के प्रवेश केंद्रिय विद्यालय में करायें. साहब ने उसे आवश्यक प्रमानपत्र भी जारी किया था. साहबका एक अपने राज्य का परिचित कर्मचारी भी वहा तैनात था. अमर के पास कोई स्थानांतर का प्रमाण पत्र नहीं था. लेकिन साहब के प्रयासों से उसके एक लडकी और लडके का प्रवेश स्कूल में हो गया था. जैसे ही साहब कि लडकी और लडके के वार्षिक परिणाम आ जाते थे. अमर बधाई देने के बहाने साहब के पत्नि को मिलने चले जाते थे. साहब की पत्नि भी उसका सम्मान करती थी. बदले में वह भाभी से उनके बच्चों की किताबे मांग लेता था. भाभी उन्हे बडे खुशिसे दे देती थी. यह बात साहब वहां रहने तक एक परिपाठी बन चुकि थी. वह जरुर चतुर्थश्रेणी कर्मचारी था. लेकिन अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए बहुत ही सजक,सतर्क और त्तपर था. जो एक अमर में सरानिह बात थी. 


कुछ सालों बाद साहब का जहां से आए थे. वही फिर से तबादला हो चुका था. वे अपने परिवार के साथ वापिस चले गयें थे. लेकिन अमर अपने बच्चों का भविष्य बनाने के मार्गपर हमेशा अग्रसर रहा. चतुर्थश्रेणी कर्मचारी होने के कारण सिमित आमदनी थी. फिर भी अपने बच्चों की परवरिश करने में वह कभी चुका नहीं.उसका परिणाम यह हुआं कि उसके दोनों बेटें सफल इंजिनिअर बने और लडकी को एक राष्ट्रिय बैंक में लिपिक का जॉब मिला है. उसने अपने बेटी की शादि में भी साहब और उनके परिवार को आमंत्रित किया था.लेकिन वे इच्छा होते हुयें भी घरेलु महत्वपूर्ण कार्य के कारण जा नहीं सके.शादि होने पर उसने उन्हे, साहबको फोन कि था. आपके मार्गदर्शन में मेरा परिवार लिख-पढ गया. उसके कारण आज हमारे बिरादरी में हमारी बहुत इज्जत बढ गई है. मेरी पत्नि और मुझे आप जरुर आयेगें ऐसा लग रहा था. मैं आपका परिचय मेरे सभी बिरादरीयों से कराना चाहता था. हमने आपका सम्मान करने का भी सोचा था. साहब ने भी कहा कि हमें भी आपके लडकी के शादि और पुराने स्थानिय मित्रों से मिलने की बहुत इच्चा थी. लेकिन आप के परिवार ने जो अपना मुकाम हासिल किया है. उसमें मेरा कोई योगदान नहीं हैं. मैं सिर्फ मार्गदाता बना था.मैंने तुम्हे सिर्फ मार्ग बतायां था. आज जो कुछ भी आपके परिवार ने हासिल किया उसका पुरा श्रेय आपाको और आपके परिवार को जाता है. मैं इस बात से खुश हूं कि आप ने वही मार्ग अपनायां जो मैंने आपको बतायां.आज आप को मैं एक सर्वोत्तम पिता का किताब दे रहा हूं क्योंकि आप में जो प्रबल ईच्छाशक्ति थी उसे कभी कमजोर नहीं पडने दिया. उसका नतिजा आज आप और मैं देख रहा हूं.


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