हत्यारे
हत्यारे
मैं अपने रास्ते चला जा रहा था। बहुत धुप थी, प्यास से गला सूख रहा था। बैग में हाथ डालकर देखा तो पाया कि पानी की बोतल ख़ाली हो चुकी है। थोड़ी दूर चलने के बाद एक घर नज़र आया।
गाँव पूरी तरह विकसित नहीं था, थोड़ी थोड़ी दूर पर ही घर मिल रहे थे। काफी चल चुका था, बुरी तरह थक भी गया था अब मेरे पास और ऑप्शन भी नहीं थे। मैंने दरवाज़ा ठकठकाया, धीरे से दरवाज़ा खुला और मैंने पाया कि ....
एक बुजुर्ग ने दरवाज़ा खोला। पीछे से एक वृद्धा की आवाज़ आई.... कौन है जी? कोई पथिक लगता है ,आओ बेटा .. कहां जाना है,? बाबा रुकने की जगह मिलेगी? वृद्धा बोली हां हां बेटा आओ हाथ मुंह धोकर खाना खा लो और आराम से सो जाओ मैं तृप्त होकर सो गया। आधी रात को दोनों बुजुर्ग दंपति ने मुझ पर कुल्हाड़ी से वार किया। असल में वे लालची थे आने वाले राहगीरों को ठहरा कर उन्हें मारकर उनका सारा माल और पैसा लूट लेते थे और लाश ठिकाने लगा देते थे । मैं घबरा गया। तभी दोनों ने मेरी बाँह पर बने निशान को देखा तो चौंक कर बोले अरे ये तो अपना खोया बेटा है कितना बड़ा पाप हो जाता। मैं बोला हत्यारों वे भी तो किसी के बेटे होंगे जिन्हें आपने मारा!!! आप मेरे कोई नहीं और मैं भाग खड़ा हुआ।
