हत्यारे
हत्यारे
"माँ ! तुम क्यूं आई मुझे मिलने ! तुम्हें कितनी बार मना किया है न !"
"क्यूं न आऊँ मेरे लाल !"
"मैंने तेरे नाम पर धब्बा लगा दिया और तू फिर भी…. !"
"इसमें तेरी क्या गलती है मेरे बच्चे !"
"गलती है माँ ! मेरी गलती है ! बहुत बड़ी गलती है ! न मैं बुरी संगत में फँसता ! न मेरा ये हश्र होता !""जो हुआ सो हुआ ! भूल जा बेटा !"
"नहीं माँ जीते जी कभी नहीं भूल सकता अपनी ये बेवकूफियां ! तूने तो हरदम मुझे अपना राजा बेटा बना कर रखा । दुनिया की बुरी नजर से बचा कर रखा ! पर…. मैं ही तेरा मान न रख पाया माँ !"
"बेटा ! " भर्राए गले से बस इतना निकला ।
"बेटा कहलाने का भी हक नहीं मुझे ! जो अपनी माँ को दुख दे…. यूँ जेल के चक्कर लगवाये…. वो बेटा कहलवाने का भी हकदार न्ही है माँ !"
"चुप हो जा मेरे लाल… चुप हो जा !"
"माँ तेरा कर्ज कैसे उतारूँगा मैं ! ये जन्म तो व्यर्थ गँवा दिया मैंने पर अगले जन्म में जरुर उतार दूँगा !.... अगले जन्म में तुझे तंग नहीं करूँगा माँ !"
"…… !" बस सिसकने की आवाज !
"माँ ! मैं सच कहता हूँ ! मेरी कोई गलती नहीं थी । न मेरे हाथ में कोई हथियार था ! मुझे नहीं पता ब्लैक आई क्लब में उस वेटर की हत्या किसने की ! मैं तो नशे में धुत था ! मेरे बाकी साथी इधर उधर लुढ़के पड़े थे और मैं कुर्सी पर बैठे हुए लड़खड़ाते हाथों से जाम पर जाम चढ़ाए जा रहा था कि अचानक गोली की आवाज़ सुनाई पड़ी । मैंने आँखे खोलकर देखने की पुरजोर कोशिश की,,,,,पर नशा इतना अधिक हो चुका रहा कि मुझे कुछ भी साफ साफ दिखलाई न पड़ा । होश आने पर खुद को जेल मे पाया । मेरी कोई गलती नहीं माँ ! कोई गलती माँ हर बार यही सुनती और कलेजे पर पत्थर रख चली जाती ।
उसे पता है उसका बेटा हत्यारा नहीं !
उसे फंसाया गया है !
उसने बेटे के लिये कहाँ कहाँ की ठोकरें नहीं खाई, किस किस के आगे विनती नहीं की !
कुसंगति लील गई एक बेटे का जीवन !