होटल का कमरा
होटल का कमरा
नमिता जब रिजर्वेशन काउंटर पर पहुंची उदयपुर के एक होटल में, तो बताया कि वो पहले ही रूम बुक करवा चुकी है। काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने कंप्यूटर पर चेक करने के बाद कहा, यस मैम, पैन कार्ड मांगा और उसको उसके कमरे का नंबर बात कर कहा आप चलिए वेटर आप का सामान लेकर आ रहा है।
चौथी मंजिल के अपने रूम में पहुंच नमिता ने पाया रूम वाकई शानदार और आरामदायक था। वो डबल बेड पर लेट कमर सीधी कर ही रही थी कि घंटी बजी वेटर था समान लेकर आया था।
उसे समान रख कर जाने के लिए बोल उसने कहा आज मैं लंच और डिनर दोनों ही रूम में लूंगी। कल से डिनर ही रूम में-----
जी मैडम, ये रूम सर्विस का नंबर और ये रहा मेनू कार्ड।
उसके बाद नमिता लेटी तो चार बजे ही उसकी आंख खुली। ओह!
मैं इतनी देर सोती रही? चाय और स्नैक्स का आर्डर देकर उसने एक नावेल उठाई। चाय पीकर उसने पर्दे खिसकाए चौड़ी कांच की खिड़की और रोड का दृश्य उसे मोहित कर गया जगमगाती स्ट्रीट लाइट्स और आते जाते वाहनों की रोशनी---- सुंदर दृश्य था।
खिड़की खोली तो पूरी खुल गई अरे! उसके मुंह से निकला, कोई ग्रिल या जाली नहीं। ये तो खतरनाक है, छोटे बच्चों के साथ तो और खतरा। काउंटर पर कंप्लेंट करूँगी। सोच ही रही थी कि फिर नॉक--
इस बार वेटर खाना लेकर आया था। वर्दी और बड़ी मूंछों वाला वो वेटर उसे पहली नजर में अजीब लगा, पर होगा मुझे क्या? ये सोच उसने खिड़की वाला प्रश्न उससे भी पूछ डाला।
जी मैडम, नया खुला है अभी कई काम अधूरे है हो जाएंगे। कह कर वो चला गया। पर यहां ये भी अफवाह है कि इस होटल में भूत हैं, सो अक्सर खाली रहता है। और नमिता के चेहरे पर असमंजस देख वो मुस्कुराता हुआ बाहर चला गया।
अगले दिन टूरिज्म वालों की कार हाजिर थी। सारे दिन दर्शनीय स्थलों और धार्मिक स्थलों की सैर कर के लौटी तो खुशी के साथ बदन भी
थकान से चूर था, इलेक्ट्रिक केटली में एक कप गर्म कॉफ़ी बना वो धीरे धीरे सिप कर रही थी कि अचानक उसकी नजर फिर चौड़ी खिड़की पर पड़ी। जाने क्यों सिहरन सी हुई और फौरन ही उसने मोटे पर्दे खींच दिए।
रात में दिए खाने को लेकर वही वेटर फिर हाजिर था। मेज पर रख दो, उसे हिदायत दे कर उसने कहा बर्तन थोड़ी देर में ले जाना।
जी! कह कर वो वेटर चला गया। कुछ देर नावेल पढ़ने के बाद उसने खाना खाया। तभी आवाज़ आई मैडम बर्तन---
ओह हाँ ले लो। बर्तन उठाने के बाद उसने एक क्लिक की आवाज़ सुनाई। वेटर गया होगा। पर नहीं वो वहीं था। अपनी मोटी मूँछों में मुस्कुराता हुआ।
खतरे को भांप नमिता फुर्ती से उठी घंटी तक उसका हाथ पहुंचने ही वाला था कि एक मोटी हथेली उसका मुंह दबा चुकी थी।
आत्मरक्षा के लिए जूझती नमिता के हाथ खिड़की की चटखनी पर पड़े और खिड़की खुल गई----
रस्साकशी जारी थी और उसी छीनाझपटी में नमिता को लगा उसे खिड़की से बाहर जानबूझ कर धक्का दिया जा रहा है वो चीखी
पर वो सड़क पर थी सर फट गया था और खून बह रहा था, आती, जाती कई कारें रुकी थी। मौत फौरन ही हो चुकी थी पुलिस भी आई सबका बयान लिया गया।
वेटर का भी।
"मैं जब बर्तन उठाने आया तो देखा मैडम कूदने की तैयारी में थी एक पैर खिड़की पर और दूसरा ऊपर ले जाने की तैयारी में। मैं चीखा और उनकी ओर झपटा। पर शायद आत्महत्या करने वाले में ताकत भी आ जाती है लाख कोशिश के बाद भी मैं अपने उद्देश्य में सफल न हो सका। पता नहीं क्या दुख था---" कहते हुए उसकी आंख भर आईं।
अखबारों की सुर्खी थी ये घटना अगले दिन।
होटल वाले को भी नोटिस गया खिड़की के ग्रिल की लापरवाही के संबंध में और यूं एक घटना रफा दफा हो गई।
