Aman Nyati

Abstract Tragedy Others

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Aman Nyati

Abstract Tragedy Others

होली के रंग यादों के संग

होली के रंग यादों के संग

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"अच्छा! तुझे पता है राकेश ! होली आने वाली है, कितना मजा आएगा ना! उन स्कूल के दिनों की तरह, मिलकर खूब धूम मचाएंगे, डांस होगा, मस्ती होगी ,खूब सारी धमाल करेंगे।

वरना तू तो जब से कॉलेज की पढ़ाई के लिए गाँव से बाहर गया है, यहाँ के फेस्टिवल, एन्जॉयमेंट सब कुछ छूट गया है हमारा।

ऐसा नहीं है की हम अब त्योहार मनाते नहीं पर वो दोस्तों के साथ वाली बात नहीं रहती यार। खैर जो हुआ सो हुआ!

इस बार मौका हाथ से जाने नहीं देंगे ।।"

राहुल सच में इस बात से बहुत खुश था कि उसका सबसे खास दोस्त राकेश, जिससे मिले बिना मानो उसका दिन नहीं निकलता था, कॉलेज से इतने सालों बाद ही सही पर अपने गाँव लौटा है और उसकी आँखों के सामने बैठा है।

राहुल को हमेशा यह सवाल बहुत परेशान करता था कि राकेश इतने सालों से बाहर है, क्या उसे कभी अपने घरवालों की, अपने दोस्तों की, अपने गाँव की याद नहीं आती ?

अपने इन सवालों को थोड़ी देर के लिए अपने मन के किसी कोने में दबाते हुए राहुल, राकेश से बोल पड़ता है-

अच्छा सुन राकेश ! मैंने पूरा प्लान रेडी कर लिया है :-

"इस बार हम अपने गली से बाई तरफ वाले उस चौक पर जाएंगे ,जहाँ एक बड़ा सा नीम का पेड़ लगा है, सभी दोस्तों को भी वही बुला लेंगे । फिर वही से बचपन की तरह टोली बनाकर गाते बजाते पूरे गाँव मे घूमेंगे और इस बार इंद्र देव की कृपा से बारिश भी बहुत अच्छी हुई है तो तालाब पर नहा धो कर ,शाम को उसी चौक के पास जो हमारा खेल मैदान है , जहाँ खेलते - खेलते हमारा बचपन पता नहीं कब गुजर गया। वहीं पर अपनी महफ़िल जमाएंगे ,इतने दिनों के बाद आया है , ढेर सारी बाते करेंगे, खूब ठहाके लगायेंगे।

राहुल की खुशी का कोई ठिकाना न था, उसे पता भी नहीं की राकेश उसे सुन भी रहा है या नहीं, वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त हुआ बोले जा रहा था।

अरे राकेश! तू कुछ सुन भी रहा है या नहीं?

मैं कब से बोले जा रहा हूँ, तू तो कुछ जवाब ही नही दे रहा है ।

राकेश ! ओये राकेश ! मैं तुझसे बात कर रहा हूँ , राहुल थोड़ा झुंझलाने लगा।

"भाई ! मैं सब सुन रहा हूँ, तेरी खुशी और होली का ये त्योहार मेरे लिए सच में बहुत मायने रखते है। तू तो जानता है ना, कैसे होली के 10 दिन पहले से ही मुझ पर होली का खुमार चढ़ जाता था।

थोड़े-थोड़े पैसे जो मैं खर्च ना कर सिर्फ इसलिए बचाता था कि होली पर रंग गुलाल, पिचकारी ये सब खरीद सकूँ। फिर तू ही मुझे उस वक़्त समझाता था कि-

"भाई! थोड़ा कंट्रोल कर अभी होली आने में कुछ दिन बाकी है।" राकेश थोड़ा मायूसी के साथ बोला।

राकेश के चेहरे पर ना तो होली के लिए वो खुमारी नज़र आ रही थी और ना ही उसकी बातों में वो एक्साइटमेन्ट जो किसी जमाने में देखते ही बनती थी।

राहुल को ये बात बहुत अजीब सी लग रही थी।

पर यार राकेश ! तेरी बातों से ऐसा तो बिल्कुल नहीं लग रहा कि तू होली के लिए सच में बहुत एक्साइटेड है ।

ऐसी क्या बात है जो तू मुझसे छुपा रहा है? आखिरकार क्यों इतने सालों से तू होली पर घर नहीं आया?

राहुल के मन में घूम रहे सवाल जिसे वो इतनी देर से दबा कर बैठा था अब राकेश के सामने आने के लिए मचल से रहे थे।

देख भाई ! हम अपने बीच कभी भी कोई बात राज़ नहीं रखते तो तुझे ये बात बतानी ही पड़ेगी की आखिर ऐसा क्या हो गया तुझे?

राकेश को मजबूरन अपने दिल में दबे वो जख्म फिर से अपनी दोस्ती के खातिर कुरेदने पड़े।

राकेश अपने दोस्त राहुल को फिर से उन भूली बिसरी भंवर सी भयानक यादों के बीच ले जा रहा था जहाँ से राकेश खुद अनगिनत कोशिशों के बाद भी आज तक बाहर नहीं आ सका।

आज से 5 साल पहले, होली के ही दिन हम इतने मशगूल हो गए थे कि हमें इन लाल ,पिले, नीले, गुलाबी रंगों के सिवा इस दुनिया का कोई भी रंग कहाँ नज़र आ रहा था?

घर वालों का ये कहना कि:-

"ध्यान से बच्चों, तालाब में पानी बहुत गहरा है, किनारे पर ही रहना, वहां ज्यादा उछल कूद करने की जरूरत नहीं है।"

तब उनकी बातों को सुनी-अनसुनी कर के हमने ये तो कह दिया था कि:-

"हां! हमें पता है ये सब, आप फिकर मत कीजिये हम अपना ध्यान रख लेंगे"।

खैर ये सब बातें तो कहने के लिए ही थी , जब साथ में दोस्तों की टोली, रंगों का नशा, बचपन की मासूमियत, इतना सब कुछ एक साथ हो तो फिर ध्यान रखने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता।

हम लोग जैसे ही तालाब पर पहुँचे तो सब ने एक- एक कर पानी में छलांग लगाना शुरु कर दिया। हम में से कुछ लोगों को तैरना आता था तो कुछ अभी सिख ही रहे थे और हम दोनों भी अभी तैराकी में नौसिखिया ही तो थे।

घरवालों की सलाह तो मानो अब ओझल सी हो चुकी थी, फिर बिना कुछ सोचे- समझे पागलों की तरह पानी कूद पड़े।

एक पल के लिए भी हमारे दिमाग में इस बात ने दस्तक नहीं दी कि हम पानी में चले तो जायेंगे मगर हमें तैरना तो आता नहीं फिर हम बाहर कैसे निकलेंगे ? आखिर कौन और कैसे हमें बचायेगा? फिर क्या था! जैसे ही हम छलांग लगा कर पानी के बीच पहुँचे, हमारी धड़कने किसी ब्रेक फैल हुई गाड़ी की तरह बेकाबू होकर बढ़ने लगी थी।

पानी के बीच होते हुए भी घबराहट और मौत को अपने सामने देख पसीने की बूंदें, हम अपने माथे पर महसूस कर पा रहे थे , किसी ने मानो हमसे हमारी आवाज चुरा ली हो।

तालाब का वो शांत पानी धीरे धीरे हमें अपने अंदर खिंच रहा था, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए ।

बस इसी आस में की काश दूसरे दोस्त हमें देख ले एक बार। हमने पानी पर अपने हाथ मारने शुरू कर दिए तो साथ के 3-4 दोस्तों की नज़र हम पर पड़ गयी।

खुशकिस्मती से उन्हें तैरना बहुत अच्छे से आता था तो हम दोनों को पानी से जैसे तैसे बाहर ले कर आये। उस वक़्त तक हम अपना होश खो चुके थे।

घर वालों को खबर की गयी, जब तक अस्पताल ले जाया गया तब तक बहुत देर हो चुकी थीं।

पर मेरे दोस्त राहुल ! तेरा नसीब अच्छा था या शायद तेरा इस दुनिया में रहना अभी और बाकी था तो तू बच गया मगर मेरी एक बेवकूफी मेरे घर के खिलखिलाते खुशनुमा माहौल को आंसुओं के मातम में बदल गयी।

अरे राहुल ! ये हाथ में गुलाल लेकर तू किस से बात कर रहा है?

अरे पागल है क्या तू मनोज? या फिर अंधा हो गया है?

दिख नहीं रहा ये देख राकेश बैठा है, चल अब जल्दी से इधर आ, राकेश को हमेशा की तरह सबसे पहले हम ही रंग लगायेंगे ।

जैसे ही राहुल गुलाल लगाने के लिए राकेश की तरफ बढ़ता है तो पाता है कि वहाँ राकेश है ही नहीं वो तो सिर्फ राकेश की यादें थी जो राहुल के अकेलेपन और उसकी मायूसी को दूर करने की कोशिश पिछले 5 सालों से करती आ रही थी।

जिस राकेश को वो सबसे पहले रंगने की बात कर रहा था उसका वो जान से प्यारा दोस्त 5 साल पहले उसे बिना बताए हमेशा के लिए उस से बहुत दूर चला गया।

इतना दूर की अब राहुल चाह कर भी उसे कभी रंग नहीं लगा पायेगा।



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