हो सके तो उन्हे ज्ञान दो दुकान नही।
हो सके तो उन्हे ज्ञान दो दुकान नही।


पिछले 14 जून से सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की गुत्थी सुलझी नही पर सारी एजेंसीयां कोशिश मे लगी हैं की मामला खत्म हो जल्दी से जल्दी, ठीक भी है अब कुछ किया भी नही जा सकता सबुतो के अभाव मे किसी को भी तो सजा दिया नही जा सकता न।
मेरी चिंता मे सुशांत की मृत्यु नही है वो तो हो गया उसका कुछ किया नही जा सकता अब।
पर मेरी चिंता ये है कि क्या हो गया है इस पीढ़ी को क्यों हो रही है इतनी आत्म-हत्यायें क्यों भंग हो रहा है मोह जिंदगी से?अच्छा कोई बुजुर्ग नही करता ये आत्महत्या क्यों? शायद सिक्स पैक्स पसंद करने वाली इस पीढ़ी का शरीर तो मजबूत हो रहा है पर मष्तिष्क नही, क्यों इतने तनाव मे जीवन जीने को मजबूर है युवा?शायद महत्वकांक्षा? हां सच भी यही है, मै सोच रहा था हम अपने बच्चों को लक्ष्य देने लगे हैं परीक्षाओं मे सफल होने पर मोटरसाइकिल दिलाउंगा।
पर सोचिये जरा उनके सफल होने पर तो बहुत विकल्प है पर असफल होने की स्थिति मे कोई योजना है हमारे जहन मे? नही न? इन आत्महत्याओं का ये ही मुख्य कारण है।
मुझे निराशा तब होती है जब स्वाभिमान की रक्षा मे घास की रोटी खाकर गुजारा करने वाले एक विशाल राजघराने के सम्राट के वंशज दसवीं कक्षा मे मात्र कम अंक आने पर आत्महत्या कर लेते हैं।
मै दुखी होता हूं यह देखकर की सिकंदर जैसे महारथी को भारत छोडकर लौटने को विवश कर देने वाले महान चंद्रगुप्त की संताने आई आई टी ,आई आई एम,मेडिकल मे न चुने जाने पर आत्महत्या कर लेते हैं।
बहुत पीड़ा देते हैं वो अखबार जिसमे रानी झांसी की संततियों के खुद को समाप्त कर देने की खबरे आती हैं।
ये कहते हुये मुझे दुख हो रहा है पर सच है हम पैदा हो रहे है जीवन जी रहें है 50-60-70 साल,पर हम देश के लिए कुछ कर नही रहे हैं। सच है हमने देश को कोई बेटा/बेटी नही दिया गांधी, भगत और आजाद की तरह।इन्हे गलत या सही माना जा सकता है पर नकारा नही जा सकता रहती दुनिया तक।
हमने नही दिया मार्क्स, निट्ज्से, और सिग्मण्ड की तरह संताने भारत माता को पिछले 100 सालो मे। जिनको एक तिहाई दुनिया चाहे गलत या सही माने, पर मानती जरूर है।इनकी मानसिकता दुनिया को हिला सकने मे सक्षम थी ऐसी नस्लों की जरूरत है जो बदकिस्मती से हो नही रही है पर करना होगा हमे और आप को मिलकर।
हम उन्हे डॉक्टर, इंजीनियर बनाने मे लगे है और वो हमको खुश करने मे खुद को न्योछावर करते जा रहे हैं।मत करीये ऐसा! पाप है ये घोर पाप!! हो सके तो उन्हे ज्ञान दो दुकान नही।
घर मे तो माफ करो, हां बाहर बहुत तनाव है उस पर,
यहां तो थोड़ी राहत दे दो,बाहर तो पथराव है उस पर।
क्यों चिंतित था? कल रात सुना है सो न सका वो,
राह दिखाया है जो तुमने,मुश्किल बहुत घुमाव है उस पर।।