Ramesh Mendiratta

Abstract

4.7  

Ramesh Mendiratta

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हँसते हुए लफंगे

हँसते हुए लफंगे

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कुछ लफंगे भी हँसते हैं लफंगो पे

पर नियति हंसती उन्ही पर

उन्हें नहीं पता कि वो खुद हैं बिना मोरल वाले

वो दूसरों की बुराई करते हैं बातें

अपनी आँखों में जो है धूल नहीं साफ करते


वो लफंगो को देखकर ठहाके लगाते हैं

उनकी हरकतों पर अपना दिमाग लगाते हैं

वो सोचते हैं कि वो हैं बहुत चतुर

पर वो नहीं जानते कि वो हैं बहुत मूर्ख


वो लफंगो को समझते हैं अपने से कम

उनकी तरह जीने को कहते हैं गुम

पर वो लफंगे हैं खुश अपनी जिंदगी में

वो नहीं करते किसी का भी अपमान


कुछ लफंगे भी हँसते हैं लफंगो पे

उन्हें नहीं पता कि वो खुद हैं लफंगो से

वो बदलने की कोशिश नहीं करते कभी

वो रहते हैं हमेशा अपनी ही दुनिया में।


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