Meeta Joshi

Inspirational

4.9  

Meeta Joshi

Inspirational

हँसी

हँसी

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"हा....हा....हा" कमरे से लगातार बहू की हंँसने की आवाज आ रही थी।

सासू माँ कमरे के बाहर भुनभुनाने में लगी थीं, "शादी को इतने साल हो गए पर अभी तक इसका बचपना नहीं गया। कितनी बार कहा है अपनी आदत बदलो। लोग बहुओं से शालीनता की उम्मीद करते हैं। क्या बात-बात पर बच्चों की तरह दांत फाड़ना अच्छा लगता है?"

बिटिया पास में बैठी थी बोली,"कुछ भी कहो माँ, भाभी के आने के बाद से घर में रौनक रहती है। तुम भी तो कहती हो जब वह मायके चली जाती है तो घर सूना हो जाता है। तब तुम्हारा भी तो मन नहीं लगता।"

"मन क्या नहीं लगता! बूढ़ा शरीर है। अब आदत पड़ गई है। बस इस उम्र में काम नहीं हो पाता।"

इतने में बहू सुनंदा कमरे से बाहर आ गई।

"माँ बुआ जी आपको काफी समय से फोन कर रही हैं आप उठा नहीं रही थीं तो मेरे मोबाइल पर फ़ोन आया।आज आने को ऐसा कह रही थीं।"

"क्या....आज!तो जल्दी-जल्दी घर का काम सलटा डालो और हाँ साड़ी पहन लेना। उनकी उम्र को देख उनके सम्मान में कहीं कोई कमी ना रहे।"

सुनंदा ने मुस्कुराते हुए "हाँ" कर दी। बिटिया डॉली को मांँ की बात बहुत बुरी लगी। धीरे से बोली, "कैसी बातें करती हो! यह भी कोई कहने की बात थी। भाभी तो बिना कहे,चुपचाप हंँसते-हंँसते सब काम अपने-आप सलटा देती है। आए गए की इज्जत, मान-सम्मान में कहीं आपको नीचा नहीं देखने देती।"

बिटिया ने देखा भाभी ने मांँ की किसी भी बात का कहीं बुरा नहीं माना।फटाफट काम सलटा बुआ जी के आने से पहले साड़ी पहन आई। डॉली अपनी भाभी को देखकर अक्सर सोचती, 'कितनी सौम्य है, माँ कुछ भी कहे भाभी को कभी बुरा नहीं लगता। कोई और बहू हो तो तुरंत आँसू भर ले....लड़ ले या चली जाए रोकर भाई को सिखाने। क्या कमी है उनमें! पढ़ी-लिखी हैं। अच्छे घर की हैं। अपने स्वभाव से घर की एकता बनाए रखी हैं।तब भी इतनी शांत।"

बुआ जी का घर में बड़ा दबदबा था। तीन-चार दिन के लिए आई हैं। एक दिन दोनों ननद-भाभी बात कर रही थीं।

देखो माला, "बहू की शादी को नौ साल होने को आए हैं। अभी तक उसकी गोद नहीं भरी। कितना समय ऐसे ही बिताओगे। ठीक है उसका हंँसना, बचपना सब बढ़िया है पर बच्चा वो विषय तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए। उसे देख लगता नहीं उसे बच्चे न होने का दुःख है। हर समय हँसती-मुस्कुराती रहती है। आखिर तुम्हारे बेटे को भी तो बुढ़ापे का सहारा चाहिए।"

"अरे जीजी, सब इलाज करा लिया कहीं कोई हल नहीं निकला। इसके स्वभाव को देख तो मुझे भी यही लगता है की इसे कोई चिंता-फिक्र है ही नहीं।जी जलता है। जो आता है उससे ऐसे ही हंँसी-मजाक कर बातें करती है। शादी के इतने साल हो गए कोई दुःख-तकलीफ नहीं। अब तो सब भगवान भरोसे है जीजी।"

सुनंदा दोनों की बातें सुन रही थी। डॉली ने देखा भाभी ने आंँख के पोर से आंँसू पोंछे और मुस्कुराकर कमरे में चली गई। बुआ जी आई भी और तीन-चार दिन रह चली भी गईं। न जाने माँ को क्या डोज़ देकर गईं। जब से गई हैं माँ आए समय सुनंदा को टोकतीं, "बहू थोड़ा धीमे हंँसा करो, लोग क्या कहते होंगे!" सुनंदा के हँसमुख स्वभाव से हर रिश्तेदार खुश रहता। जहांँ जाती वहांँ की रौनक बन जाती। सभी को उससे सांत्वना थी "देखो, इतना बड़ा दुख है फिर भी खुशमिजाज है।"

दिखने में बला की खूबसूरत, पढ़ाई में अव्वल और स्वभाव उसका तो हर मिलने वाला कायल।

हर तरह का इलाज कराने के बाद भी जब बच्चा नहीं हुआ तो पति-पत्नी आपस में अपना मन पक्का कर चुके थे। जानते थे सब भगवान भरोसे है। किस्मत में जितना लिखा होता है उतना ही मिलता है। दोनों को एक-दूसरे से कोई शिकायत न थी। दोनों अपने-अपने फर्ज निभाने में भी कोई कमी न रखते और प्रेम से रहते। लेकिन आजकल घर में माँ का स्वभाव थोड़े तनाव का विषय बना हुआ था।

एक दिन बहू बाहर खड़ी हम-उम्र मित्रों से बात कर रही थी।उसके हँसने की आवाज़ जैसे ही मांँ के कानों में पड़ती,उन्हें लगता उनके कानों के पास कोई हथौड़ा चला रहा है। वो भुनभुनाने लगतीं, "कितनी बार मना किया है। बाहर जा इतना तेज मत हंँसा करो। बात-बात पर इसका हँसना चालू ही रहता है। इतनी औरतों में से और किसी की आवाज आ रही है? नहीं ना! कल ही सुमन की सास कह रही थी, "तुम्हारी बहू को देखकर लगता नहीं कि उसे बच्चा ना होने का कोई गम है। हर वक्त हंँसती रहती है।"

डॉली ने मांँ को टोकते हुए कहा,"ऐसी बातें बाहर सुन बाहर निकाल दिया करो। आपने सुना है ना सुमन भाभी अपनी सास की कितनी बुराई करती है और उनकी सास अपनी बहू की। कभी भाभी ने ये सब किया! सबमें अलग दिखाई देती है मेरी भाभी। माँ लोग कौन होते हैं कहने वाले। आप उन्हें महत्त्व दोगी तो उनकी हिम्मत बढ़ेगी।"

"रहने दे तू। तुम सबको तो मैं गलत लगती हूंँ। माँ हूंँ मैं क्या मैं उसे प्यार नहीं करती? कभी टोका है मैंने उसे किसी चीज के लिए लेकिन अपना दुःख-तकलीफ दिखाओगे तभी तो लोगों को तुम से सहानुभूति होगी। तू क्या जाने बेटा कितनी बड़ी तकलीफ है ये।"

इतने में सुनंदा अंदर आ गई बोली,"मांँ गंदी आदत पड़ी हुई है। बहुत कोशिश करती हूंँ ना हसूंँ पर मैं भूल जाती हूंँ।"

अपने मन की कह मुस्कुरा सारे काम रोज की तरह सलटाने लगी। कहीं कोई गुस्सा और हड़बड़ाहट उसके स्वभाव में नहीं थी। डॉली ने देखा सब बात सुनने के बाद भी भाभी मांँ से बिल्कुल भी नहीं चिढ़ी। अपने चेहरे में मुस्कुराहट लिए....चाहे एक मेहमान आए चाहे दस वो हँसते-हँसते सबका करती है।

देखा तो भाभी कमरे में बैठी थी उनके पास जा बोली, "एक बात पूछूंँ भाभी....पर यह क्या आपका चेहरा क्यों लटका हुआ है? आपके चेहरे पर तो हंँसी अच्छी लगती है। आपकी हंँसी से ही तो ये घर महकता है। यकीन मानो मुझे आपका हँसना कभी भी बुरा नहीं लगता। पर माँ आपको आए समय टोकती रहती है। आपको उनकी बात बुरी लगती होगी ना? फिर भी आप हंँसते-हँसते मांँ को भी खुश रखती हो। कभी भैया को मिसगाइड नहीं करती। आज अपने मन की एक बात पूछने आई हूँ, क्या आप बच्चे को लेकर..... चिंतित....नहीं हो या....!!"

"खुलकर पूछो डॉली।" सुनंदा ने कहा।

"मैं भी जानना चाहती हूँ भाभी। सच आप इतना बड़ा गम छुपा क्यों और कैसे हर समय हँसती रहती हो?"

सुनंदा का जवाब काबिले तारीफ था। बड़े प्यार से डॉली का हाथ पकड़ा और बोली,"देखो डॉली, हर औरत का सबसे अहम सुख मातृत्व सुख है। हर जन अपने हिस्से की खुशी को समेटना चाहता है। मुझे भी बच्चे की उतनी ही अभिलाषा है जितनी की हर औरत को होगी लेकिन यदि किसी कारणवश मुझे वो सुख नसीब नहीं हुआ तो क्या मैं अपने आसपास एक दुख की दीवार खड़ी कर लूंँ। बहुत सोचा मैंने इस विषय में फिर लगा दुख की दीवार बना लूंँगी तो फिर मैं ही नहीं घर का हर एक सदस्य तनाव में होगा। एक राज की बात बताऊँ आज अगर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट ना हो तो ये जो इतने मिलने वाले लोग हैं ना कोई भी मेरे पास नहीं आना चाहेगा। ये जो लोग होते हैं ना डॉली सिर्फ सुख से जुड़ना जानते हैं इन्हें किसी के दुःख से कोई वास्ता नहीं होता। रही मांँ की बात तो मुझे उनकी किसी बात का बुरा नहीं लगता। आज उनकी उम्र की सभी महिलाएंँ अपने पोते-पोतियों को खिला रही हैं, उनकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।जानती हैं कि हमें भी तकलीफ होगी तो अपना दुख निकालने को गुस्से के शब्द बोल देती हैं।मैं ये भी जानती हूँ मांँ मुझसे बहुत प्यार करती है।"

डॉली समझ गई उनकी हंँसी के पीछे का रहस्य। सच ही तो कह रही थी भाभी, उनके साथवालियों के सबके बच्चे हैं। यहांँ उनके साथ खेलने वाला कोई नहीं यदि भाभी का स्वभाव खुशनुमा नहीं रहे तो कौन उनसे जुड़ना चाहेगा। कितनी सहजता से भाभी ने इतनी गूढ़ बात बता दी। हम खुश रहेंगे तभी तो आसपास का वातावरण भी उतना ही खुशनुमा रहेगा। भाभी की समस्या का समाधान उनके हाथ में ना था पर घर को खुश रखने का जिम्मा उन्होंने बहुत अच्छे से उठा रखा था।

माँ दोनों की बातें सुन रही थी सुनंदा के सिर में हाथ फेरते हुए बोली,"तुम हंँसती बहुत हो! पर मैं यह चाहती हूंँ कि तुम्हारी ये हंँसी स्वाभाविक हंँसी बन जाए और मेरी बहू खिल-खिलाकर दिल से हँसे। हर समस्या का समाधान है बेटा, समय रहते एक बच्चा गोद ले लो और मातृत्व सुख पा अपने आने वाले जीवन में भी अपनी हँसी बरकरार रखो जिससे मैं पलपल में शिकायत करती रहूंँ 'बहू तुम हँसती बहुत हो!''


अपनी तकलीफ छुपा सहजता से जीना बहुत बड़ा गुण है। दुख-तकलीफ का रोना-रोने से वो कम नहीं हो जाते हाँ आप सहानुभूति पात्र अवश्य बन सकते हो। खुद को कमजोर दिखा दुःखी रहने से अच्छा है। खुशमिजाज रह, अपनी तकलीफ को नजरअंदाज कर जिंदादिल जीवन जीना।



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