निशा शर्मा

Tragedy

4  

निशा शर्मा

Tragedy

हमारी अधूरी कहानी...

हमारी अधूरी कहानी...

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"बड़ी अभागी थी बेचारी, जब से इस घर में आयी बस एक शराबी पति और लकवा की मारी सास! इन्हीं दोनों के इर्दगिर्द घूमती रही उसकी जिंदगी।"

"अरे न जीजी ऐंसी बात नहीं है, जब शादी हुई थी इनकी तब राजन भईया इतनी शराब नहीं पीते थे और इनकी अम्मा भी इतनी लाचार नहीं थीं। मुझे तो लगता है जीजी ये औरत ही मनहूस थी इस घर के लिए और मैंने तो यहां तक सुना है कि शायद इसका किसी पराये मर्द से चक्कर भी था ।"

"अब बस भी कीजिए आप सब! कम से कम मरने के बाद तो थोड़ा सुकून बख्शें इसे", इतना कहते कहते बिफर पड़ी बानो। बिफरती भी कैसे न पारुल और मयंक की अधूरी प्रेम कहानी की एक अकेली साक्षी थी वो !

बानो , पारुल की सबसे अच्छी सहेली या बहन से बढ़कर भी कहना गलत न होगा। बानो पारुल और मयंक के मिलन की एकलौती गवाह थी जब मयंक ने पारुल की मांग को अपने प्यार के सिंदूर से भर दिया था और आज वो ही बानो इस अधूरी कहानी के अंत की भी साक्षी बन गयी थी।

आज रह रहकर बानो को बस यही ख्याल सता रहा था कि काश उस दिन उसनें पारुल का साथ दे दिया होता, काश उस दिन वो अपने अब्बू की खिलाफत करने की हिम्मत जुटा पाती जब पारुल की सौतेली माँ ने पारुल के खिलाफ अपने पति के कान भरकर आनन फानन में पारुल जैसी नेक,सुंदर,पढ़ीलिखी और इतने बड़े घर की लड़की की शादी राजन जैसे एक मामूली से बिजली का काम करने वाले कम पढ़ें लिखे और बड़ी उम्र के लड़के के साथ तय कर दी । काश कि मयंक के पिता जी के स्वर्गवास में अपने गाँव गया मयंक सिर्फ एक बार पारुल से फोन पर बात कर पाता, काश !!

तेरह दिन बाद जब मयंक लौटा उस समय भी बानो ही थी जो मौजूद थी मयंक के सवालों का जवाब देने के लिए , मयंक के बहते हुए आंसुओं और उसकी कलेजा चीर देने वाली खामोशी को अपना कांधा देने के लिए।

शायद ही कोई ऐंसी कोशिश हो जो कि पारूल ने बाकी रखी होगी राजन को सुधारने की मगर राजन टस से मस न हुआ । राजन की माँ के मरने के बाद तो राजन जुआं और शराब के साथ साथ आये दिन अब लड़कियाँ भी घर पर लाने लगा था। सबकुछ चुपचाप सहने वाली पारुल के सब्र का बाँध आखिरी रात न जाने कैसे टूट गया इसका अंदाज़ा लगाती हुई बानो के कानों में बस कल शाम को फोन पर पारुल से हुई बात के वो शब्द ही बार बार गूंज रहे थे।

"बानो मैं अभी भी नहीं हारी हूँ, मेरी चिंता मत कर मेरी बहन ! तेरी वो बहादुर पारुल द ग्रेट, यही कहती थी न तू मुझे! मैं सच में नहीं थकी हूँ मेरी बहन मगर बस एक चीज है जो मुझे अब बहुत बहुत तोड़ रही है। मैं तुझसे नहीं छुपा सकती बानो और वो है मयंक! मयंक, बानो मयंक!! वो मर रहा है, वो मुझे देख देखकर हर दिन मर रहा है। वो मुझसे कुछ कह नहीं पाता और मैं उससे कह नहीं सकती। मैं अपनी मर्यादाओं में बंधी हूँ बहन। मैं क्या करूँ?

मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी का अधूरापन मयंक को कभी पूरा नहीं होने देगा इसलिए मैं अब इस अधूरेपन का अंत करना चाहती हूँ। अंत, अंत ,अंत " कहते कहते फूट फूटकर रो पड़ी पारुल और उसकी बंधती हुई हिचकियों में उसकी टूटती हुई सांसों की आवाज़, काश कि मैं सुन पाती तो आज शायद !

उठाओ, उठाओ, जल्दी उठाओ मेरी शाम होने वाली है,लड़खड़ाती आवाज़ से शराब का भभका अपने मुंह से छोड़ते हुए राजन ने कहा और इसी आवाज के कानों में पड़ने से टूटी बानो की तंद्रा।

पता नहीं पारुल आज मयंक को पूरा करके जा रही थी या उसके अधूरेपन को एक और आयाम देकर । पारुल की अर्थी के पीछे पीछे पड़ते हुए मयंक के सुस्त और बेजान कदम तो बस एक अधूरी प्रेम कहानी की सच्चाई की ओर इशारा कर रहे थे ।



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