हमारा अतीत
हमारा अतीत


दोस्तो,महान शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में और भी अधिक जानने की ललक से मैं अपने एक मित्र , जाने- माने इतिहासविद के पास पहुंचा।वहां जो जानकारी मिली वह आप सबसे बांटना चाहता हूं।
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु श्रावणबेलगोला कर्नाटक (बैंगलोर से 160 किमी) में लगभग 300 ईसा पूर्व हुई। उन्होंने समाधि मरण को अपनाकर शांतिपूर्वक दुनिया से विदा ले ली।
चंद्रगुप्त मौर्य नें मगध से श्रवणबेलगोला तक यात्रा की और श्रुत केवली भद्रबाहु के दीक्षा ले कर जैन मुनि बन गए। उन्होंने आचार्य भाद्रबुहू की समाधि के समय उनकी सेवा की और जैन धर्म का अध्ययन और अभ्यास करते हुए आस-पास के क्षेत्र में लंबे समय तक विहार करते रहे।
अंत में जब उन्होनें महसूस किया कि जीवन खत्म होने वाला है और मृत्यु अवश्यम्भावी है तो उसने जिनधर्मोक्त सल्लेखना धारण की और अपने शरीर को छोड़ दिया। यह स्थान चंद्रगिरि पहाड़ी है, जिसे पहले कलबप्पू के नाम से जाना जाता था।