हम स्त्रियाँ as a grant लेने के लिए नहीं बनी हैं
हम स्त्रियाँ as a grant लेने के लिए नहीं बनी हैं
" मम्मी जी, आज ऑफिस से आते हुए थोड़ी देर हो गयी।" वसुधा ने घर में घुसते ही मुँह चिढ़ाते घड़ी के काँटों की तरफ देखते हुए अपनी सासू माँ नीरूजी से कहा।
"कोई बात नहीं। अब तुम कपड़े बदल कर फ्रेश हो जाओ।" नीरूजी ने वसुधा की बात पर कोई प्रतिक्रिया न देकर शान्ति से कहा।
"मम्मी जी, आपको शाम की सैर के लिए देर हो गयी न।" वसुधा ने फिर से कहा।
वसुधा एक बैंक में अधिकारी थी। वसुधा के ससुरजी भी राज्य सरकार से एक बड़े पद से सेवानिवृत्त हुए थे और सेवानिवृत्ति के बाद राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य नियुक्त हो गए थे। वसुधा की सास नीरूजी एक सुलझी हुई महिला थीं, लेकिन वह तेलिपिया मछली भी नहीं थी। तेलिपिया मछली अपने अंडे को मुँह में तब तक रखती है, जब तक कि अंडे से बच्चा न निकल जाए। मुँह में अंडा रखने के कारण, मछली कुछ खा नहीं पाती और बच्चे के अंडे से निकलते ही मछली की मृत्यु हो जाती है। माँ, अपने अस्तित्व और व्यक्तित्व को अपने बच्चे पर न्यौछावर कर देती है। अधिकांश भारतीय महिलायें भी तेलिपिया मछली के जैसे ही अपनी ज़िन्दगी अपने परिवार और बच्चों पर न्यौछावर कर देती हैं। देवी बनते-बनते कई बार महिलायें सही में पत्थर बन जाती हैं।
अपनी बहुओं की तकलीफ नहीं समझने वाली और उन्हें दहेज़ आदि के लिए प्रताड़ित करने वाली महिलायें पत्थर ही तो हैं। दूसरे घर से आयी बेटी के लिए उनकी ममता के स्त्रोत न जाने क्यों सूख जाते हैं ? लेकिन नीरूजी ने अपने आपको भुलाया नहीं था। उन्हें अपने आप से भी उतना ही प्यार था, जितना उन्हें अपने परिवार और बच्चों से था। नीरूजी अपनी नियत दिनचर्या के साथ कभी कोई समझौता नहीं करती थीं।
वसुधा जब इस घर में शादी होकर आयी थी, तब उसे नीरूजी का व्यवहार बड़ा अजीब लगता था। नीरूजी कभी भी उसके ससुरजी के लिए अपनी भूख को कष्ट नहीं देती थीं। उनका कहना साफ़ था कि, "भोजन के लिए पति से ज्यादा भूख का इंतज़ार करना चाहिए। "
ससुरजी भी उनकी इस बात के लिए प्रशंसा करते थे, कहते थे कि, "बेटा, तुम्हारी सास ने मुझे हमेशा इस ग्लानि से बचाया कि मेरी वजह से कोई भूखा है। साथ ही तुम्हारी सास ने कभी शिकायत नहीं की और न ही पूछा कि ऑफिस में इतनी देर क्यों हो गयी ?"
"आप भी तो हमेशा सूचना दे देते थे कि आज मीटिंग के कारण थोड़ी देर हो जायेगी। फिर मैं सोचती थी कि भूखी रहूँगी तो आप पर ज्यादा गुस्सा आएगा और आप जब लौटोगे तो मेरा मूड ज्यादा खराब होगा। ऐसी स्थिति में या तो हम लड़ेंगे या एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे। अब आपने सूचना दे दी तो इसका मतलब यही है न कि मैं अपना भोजन कर लूँ।" नीरूजी कहती।
वसुधा को अपनी सास की बातें अजीब लगती, लेकिन अच्छी भी लगती। जब वसुधा स्वयं एक बच्ची प्रावी की माँ बनी तो, वह नौकरी छोड़ना चाहती थी, लेकिन तब नीरूजी ने ही उसे समझाया था कि, "आज तुम प्रावी के कारण नौकरी छोड़ दोगी और कल को प्रावी जब भी ऐसा कोई निर्णय लेगी जो तुम्हें पसंद नहीं तो तुम उसे हमेशा यह याद दिलाती रहोगी कि तुम्हारे लिए तो मैंने अपना करियर तक छोड़ दिया। तुम अपने बलिदान की एवज में प्रावी से न चाहते हुए भी कई अपेक्षाएँ रखोगी और जब वह अपेक्षा पर खरी नहीं उतरेगी तो तुम दुःखी होगी। बेटा अगर नौकरी छोड़नी भी है तो प्रावी को अपने निर्णय का कारण मत बनाओ। "
"मम्मी जी लोग मुझे बुरी माँ कहेंगे।" वसुधा ने कहा था।
"बेटा, माँ अच्छी या बुरी नहीं होती, केवल माँ, माँ होती है। क्या पिता अपना सारा कामकाज छोड़कर केवल बच्चे की देखभाल करता है ? नहीं न। माँ और पिता के लिए अलग -अलग मानदंड क्यों भला ? तुम वही निर्णय लो, जो तुम्हें सही लगता है।" नीरूजी ने समझाया।
वसुधा ने फिर नौकरी छोड़ने का विचार त्याग दिया था। वसुधा और नीरूजी ने प्रावी की देखरेख के लिए एक नैनी को रख लिया था। नीरूजी ने नैनी रखने क सुझाव भी इसीलिए दिया था कि, "वह अपनी नियमित दिनचर्या में कोई बाधा नहीं चाहती थी और दूसरा वह वसुधा से बने हुए मधुर संबंधों को खराब नहीं करना चाहती थी। अगर वह प्रावी की पूरी देखभाल स्वयं करती तो उनकी वसुधा से उम्मीदें बढ़ जाती। "
वैसे भी नीरूजी जब भी घर पर होती, प्रावी अधिकांश समय उन्हीं के पास रहती थी और नैनी के क्रियाकलापों पर नीरूजी की नज़र तो बनी ही रहती थीं।आज नैनी छुट्टी पर थी, इसीलिए वसुधा को बार -बार ग्लानि हो रही थी कि, "उसके देर से आने के कारण नीरूजी की दिनचर्या में बाधा आ गयी। "
"बेटा, इस बारे में इतना मत सोचो। खुद को इतना भी दोषी मत मानो, हमें खुद को तुरंत माफ़ कर देना चाहिए। जब हम खुद को क्षमा करेंगे, तब ही तो दूसरों को क्षमा करना सीखेंगे। कभी -कभी तो दादी अपनी लाडली के लिए दिनचर्या में थोड़ा बदलाव कर ही सकती है। बेटा, मैं जो इतने नियम बनाती हूँ, वह सिर्फ इसलिए कि मेरे अपने मुझे as a grant न लेने लगें, उन्हें मेरी और स्वयं की सीमाओं की जानकारी होनी चाहिए। हम स्त्रियाँ as a grant लेने के लिए नहीं बनी हैं।"नीरूजी ने शाम की सैर के लिए तैयार होते हुए कहा।
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