हिन्दी वेब सीरीज
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*शालू... द अन्वापटेड
अब गांव-गांव में सालू की चर्चा चल निकली।सभी लुगाइयां और छोरियों सक्षम बनना चाहवें।
मिथिला और आसपास के गांवों में मरद् लोगण लुगाइयां के साथ ज्यादा जोर आजमाइश करने लगे उन पर तरह-तरह के सख़्ती होने लगी रोजाना मारपीट के मामले बढ़ गए।
"वो कहते हैं ना जिस चीज़ के लिए रोको तो वो जिद में बदल जाती है ।ऐसा ही सालू के गांव की छोरियों और लुगाइयों में हुआ। विरोध में खड़ी हो गई के हम घर, खेत-खलिहानों में काम नहीं करेंगे जो भी मरद् अपनी लुगाई पर हाथ उठाएगा तो सब मिलकर हड़ताल कर देंगे"
सालू को धीरे-धीरे त्रिभुवन और महिला मंडल की मास्टरनी अलका जी का साथ मिला तो संस्था का गठन हुआ जो भी लुगाइयां सदस्या बनना चाहे ,तो दस रुपए जमा कर सदस्यता लें ये पैसा हमारी संस्था के काम आवेगा।सालू ने बड़ी उम्र की लुगाईयों को जो अनुभवी थी ,उन सबसे सुझाव लिया कि हम क्या काम कर सकते हैं ?
कुछ ने कहा हम अचार, पापड़, बड़ियां और घरेलू जरूरतों का सामन बना सकतें हैं। कुछ ने कहा गोबर से खाद,
एक बुजुर्ग लुगाई बोली म्हाने सुना है गोबर से गैस भी बनावत है कोई शहर से प्रशिक्षण दे ,तो वो भी सीख लें ।
सालू,अलका जी और बाकी लुगाइयों को "राधे की लुगाई" बोली कि सारे लोगण से कहना चाहूं कि आप लोगण म्हारे नाम से ही पुकारे जो "म्हारे माई-बापू ने नाम दिया है"। "सकुन"(शकुन)" । "राधे की लुगाई"कहत हो , तो गाली जैसी लागे है , चिढ़ सी हो गई है इस "राधे"नाम से ।
तहसील में "मिथिला"गांव की खबर मिली की वहां की एक छोरी ने क्रांति ला दी है। तहसीलदार के आने का प्रोग्राम बना तो वैध जी उस गांव के सरपंच थे।कोई भी बड़ा अधिकारी आता तो "वैध जी के यहां हाजिर होता।
जैसे ही वैध जी को भनक लागी तो उन्होंने घर में बड़ी बहू पर सख्त पहरा लगा दिया। सताया जाने लगा लठैत खेत -खलिहान जाती तो पीछे जाते। यहां तक की रात को शौच के लिए जाती"सकुन"तो सास साथ रहती कहीं सालू और छोरियों से मिल ना लें।
एक दिन सकुन ने घर में सबके सामने कह दिया कि मैं "राधे"से छुटकारा चाहती हूं मुझे नहीं रहना।वैध जी ने आंखें तरेर कहा थारे बहुत "पर" निकल आएं हैं।
"राधे"व्हील चेयर बैठे -बैठे तिलमिला गया।सकुन वहीं नहीं रुकीं। मैंने कागद्(काग़ज़) तैयार करा लिए हैं,।तलाक के घर में सन्नाटा छा गया ।
वैध जी गुस्से में लपके सकुन को मारने के लिए इतने में ही "त्रिभुवन"सामने आ गया ।"पिता जी होश में आइए"
सकुन ने धीमी पर धमकी भरी आवाज़ में कहा मैं कोतवाली में "रपट"डाल आई हूं मेरे साथ किसी भी तरह की मारपीट या मेरी मृत्यु हो जाती है ,"तो वैध ,मेरी सास,राधे जिम्मेदारी होंगे"।सास ने कहा बहू सोच लें।
सकुन ने कहा "मां जी म्हारा क्या है, अकेली हूं बच्चे कौणी। आपने भी अपना आत्म सम्मान खो कर जिंदगी निकाल दी ,म्हारे णी रहना बेइज्जत हो कर । आप ही बताओ ढ़ोर-डंगर से भी बुरा बर्ताव करें है। ऐसे में कौणी रह सकत् है"।
सकुन उसी समय कुछ कपड़े और ज़रुरी सामान समेट निकल पड़ी।
सालू और महिला मंडल की मास्टरनी अलका जी ने सब तैयारी की थी ।ये तय किया था, कि सकुन यदि घर छोड़न् आवे तो उनके साथ ही सकुन रहेगी।
अलका जी छोटे से कमरा गांव के हिसाब से (खोली)थी जहां एक ही जगह किचन और दूसरे साइड सोने की जगह रहती है ।एक दिन बाद ही "महिला मंडल की अलका जी"को हेड ऑफिस से आदेश आ गया । फौरन हेडक्वार्टर आएं ।
सालू और अलका जी ने विचार-विमर्श किया कि अगर आपका ट्रांसफर कर दिया?वैध जी ने शिकायत की होगी । सकुन फिक्रमंद हो जाती है कि अलका जी आपकी नौकरी पर आंच ना आ जाए ,म्हारे सहारा बनने पर,अलका कहती है कौणों फिक्र णी करणों सकुन जो होगा देखा जाएगा।
म्हारे जो हेडऑफिस की "बड़ी मेडम जी" हे ना महिलाओं की बोहोत मददगार है। सब ही मदद करी देंगी म्हारे पूरो बिस्वास है।