हिम्मत
हिम्मत
रात की ओलावृष्टि के बाद गांव में मातम का माहौल था।
हरिया खेत की मेड़ पर सर पकडे़ बैठा था, कभी गिरी हुई फसल तो कभी पास में खेलते अपने बच्चों को देख रहा था। मन ही मन सोच रहा था- "हे भगवान कैसे पालूंगा बिना मां के इन दोनों बच्चों को, अगर किसानी छोड़ कर मजदूरी भी शुरू कर दूं तो मजदूरी मिलेगी कहां। सारा गांव तो छोटे किसानों का ही है जिनके पास बमुश्किल चार पांच बीघे खेत हैं। शहर भी तो नहीं जा सकता इन बच्चों के साथ न रहने का ठौर न काम का ठिकाना।"
रह रहकर उसके दिमाग में वे चेहरे घूमने लगे जिनसे मदद मांगी जा सकती है लेकिन फिर खुद ही सोचता उसकी भी तो हालत ठीक नहीं होगी।
सोचते सोचते उसने बच्चों की तरफ नजर घुमाई तो देखा, बच्चे खेलते खेलते खेत के अंदर जा घुसे थे। बड़ा लड़का गिरे पौधों को पकड़ कर उठाए हुए था और लड़की उस पौधे को सहारा देने के लिए लकड़ी की खपच्ची लगा रही थी।
थोड़ी देर वह उनको ध्यान से देखता रहा फिर अचानक ही मुस्कुरा उठा मन ही मन बुदबुदाने लगा "अभी तो सिर्फ फसल गिरी है खराब होने में हफ्ता भर लगेगा अगर ऐसे ही सहारा मिल जाए तो ये पौधै फिर से खड़े हो सकते हैं।"
कुछ देर पहले जो हरिया मातम मना रहा था, वो अब पूरे जोशो खरोश से बच्चों के खेल में शामिल हो गया।