STORYMIRROR

Manoj Kushwaha

Crime Others

3  

Manoj Kushwaha

Crime Others

हिजाब पर ईरान में घमासान। The Controversial Death of Mahsa Ameen

हिजाब पर ईरान में घमासान। The Controversial Death of Mahsa Ameen

7 mins
198

महसा अमीनी, एक महिला जिसने अपने ढंग से जीना चाहा तो कट्टरपंथियों ने उसे उतार दिया मौत के घाट। जी हाँ, पिछले कई दिनों से ईरान जल रहा है, आधिकारिक आकड़ों की मानें तो ईरान में चल रहे इस विरोध प्रदर्शन में अब तक 9 लोगों की मृत्यु हो चुकी है जिसमें सुरक्षा बलों द्वारा चलायी गयी गोलियों से मरने वालों में एक 16 साल का मासूम बच्चा भी शामिल है और कितने ही लोग घायल हुए हैं। आखिर क्यों लोग उतर आएं हैं सड़कों पर सरकार के खिलाफ? क्यों महिलाएं काट रही हैं अपने बाल और आखिर क्यों उड़ाए जा रहे हैं हिजाब? 


इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर क्या है ये हिज़ाब विवाद जिसने वर्ष 2022 में इतना बवाल मचा रखा है? पहले भारत में और अब ईरान में मचा कोहराम ! इस पूरे प्रकरण में अब तक सरकार का क्या रुख रहा? किस तरह से कट्टरपंथी सरकार, लोगों की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही है ? कौन थी ये बेबाक महिला महसा अमीनी और आखिर क्यों हुआ दर्द "गश्त ऐ ईरशाद" को?

कैसे शुरू हुआ ये सारा विवाद? 

ये मामला शुरू हुआ १३ सितम्बर को ईरान की राजधानी तेहरान के एक मेट्रो स्टेशन से जहाँ महसा अपने भाई के साथ घूमने आयी थी जहाँ उसके पहनावे को लेकर "Morality Police - गश्त ऐ ईरशाद" ने उसे रोका और पकड़कर थाने ले गए, जहाँ से फिर उसे अस्पताल ले जाया गया। कुछ समय बाद अस्पताल का बयान आया कि जब महसा को लाया गया तो वो पहले से ही मृत थी जिसका कारण उन्होंने हृदयघात बताया लेकिन लड़की के परिवार ने बताया कि उसे ऐसी कोई भी भी तकलीफ नहीं थी और वो एकदम स्वस्थ। कुछ समय बाद अस्पताल से जो महसा अमीनी कि तस्वीरें मिली उसे देख कर साफ़ दिखता है कि किस प्रकार से उसे यातना दी गयी होगी क्यूंकि उसका चेहरा सूजा हुआ था और रिपोर्ट्स की मानें तो वो कोमा में थी। इसी बीच में आनन - फानन में अस्पताल ने अपना बयान सोशल मीडिया प्लेटफार्म से डिलीट कर दिया जो इस शक को और गहरा करता है कि उस महिला के साथ जो भी हुआ वो बहुत गलत था। 

कैसे उग्र हुआ विरोध प्रदर्शन ?

फिर जैसे ही महसा अमीनी कि मौत कि खबर फैली तो राजधानी तेहरान के साथ पूरे ईरान में लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन किये जाने लगे, महसा के संदेहास्पद मृत्यु के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आये और देखते ही देखते इस प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिय। बड़ी ही गंभीर बात है कि सरकार के विरोध में वहीं के स्थानीय लोग सामने आये जो इस कट्टरपंथी सरकार का विरोध तो कर ही रहे हैं साथ ही साथ एक सम्मानजनक जीवन कि मांग भी उनके आक्रोश में साफ़ साफ़ दिखाई पड़ रही है। Morality Police ने हर तरह के हथकंडे अपना लिए, लोगों पर शक्ति प्रयोग भी किया गया जिसमें अब तक कई लोगों कि जान जा चुकी है और कितने ही घायल हुए हैं लेकिन जैसे लोगों ने ठान लिया कि अब वे नहीं रुकेंगे, नहीं झुकेंगे। जगह जगह महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर अपने बाल काट कर प्रदर्शन किया, साथ ही साथ कई महिलाओं ने बाल काटने वाले वीडियो को सोशल मीडिया पर भी अपलोड किया। कितने ही स्थानों पर हिजाब के विरोध में महिला प्रदर्शनकारियों ने हिजाब को हवा में उछाल कर अपना विरोध दर्ज कराया। 

 कब से चल रहा है ये हिजाब का कट्टरपंथी खेल?

सन 1923 : ईरान में पहलवी वंश के पहले राजा रेज़ा शाह का राज था, वे एक प्रगतिशील विचारधारा में विश्वास रखते थे, पश्चिम का भी उन पर खासा प्रभाव था और सत्ता में आने पर वे बहुत से बदलाव लाये जिनमें से एक रहा हिज़ाब और बुर्के के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध। देश की जनता ने इस फैसले का स्वागत किया लेकिन कट्टरपंथियों के गले ये बात नहीं उतरी और इसका बहुत विरोध किया गया जिसमें देश की पुलिस ने भी भाग लिया। 

सन 1941 : इस समय के आते आते पूर्व शासक रेज़ा शाह को निर्वासन दे दिया गया और उनके स्थान पर उनके सुपुत्र रेज़ा पहलवी ने राज संभाला, ये भी अपने पिता की ही तरह पश्चिम से प्रभावित थे। हिज़ाब और बुर्के को लेकर उनके भी समान विचार थे। 1970 का दशक आते आते कट्टरपंथ विचारधारा फैलती रही और अब हिज़ाब पहनना एक तरह से शाह के खिलाफ प्रदर्शन का पर्याय बन गया लेकिन वो युवा ये नहीं जानते थे कि आने वाले समय में ये उनके ही गले कि हड्डी बन जायेगा। 

सन 1979 में पहलवी वंश का शासन भंग हुआ और सायद रुहोल्ला मोसावि खोमैनी द्वारा ईरान की एक इस्लामिक गणतंत्र के रूप में स्थापना की गयी जिसमें हिज़ाब के ऊपर जरूरी फैसला लेते हुए उस समय सिर्फ कामकाजी महिलाओं को हिज़ाब पहनने की सलाह दी गयी और सन 1980 के आते आते अनिवार्य कर दिया। 

सन 1983 आते आते अब हिज़ाब सभी औरतों के लिए जरूरी करार कर दिया गया फिर भले ही वो कोई कामकाजी महिला हो, घर में रहने वाली या फिर 5 साल से ऊपर की कोई भी लड़की, अब हिज़ाब सभी के लिए अनिवार्य था, किसी के पास कोई चुनाव की सहूलियत नहीं थी। अब ये एक सरकारी फरमान था जिसे ना मानने पर 3 तरह की सज़ाओं का प्रावधान भी था। 

क्या थीं वो 3 तरह की सज़ाएँ ?

पहली : 10 से लेकर 60 दिन तक जेल की सज़ा

दूसरी : 100 से 1000 रुपये तक का जुर्माना

तीसरी : 74 कोड़ों की सज़ा 

तब से लेकर आज तक के ईरान में औरतों के खिलाफ कई अत्याचार होते आ रहे हैं लेकिन कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वालों के लिए ये समाज की रक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है, क्या इसमें उसी समाज में रहने वाली महिलाओं की रज़ामंदी ली गयी है, नहीं। एक रिपोर्ट के अनुसार एक ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने जब हिज़ाब के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करी तो उन्हें ना जाने कितनी यातना झेलनी पड़ी, कट्टरपंथियों की पोल खोलते हुए हिजाब को हटाते हुए मसीह ने कहा, 'यह मेरा असली रूप है। ईरान में मुझसे कहा गया कि अगर मैंने हिजाब को निकाला तो मुझे मेरे बालों से लटका दिया जाएगा, स्कूल से बाहर निकाल दिया जाएगा, मुझ पर कोड़े बरसाए जाएंगे, जेल में डाल दिया जाएगा, जुर्माना लगा दिया जाएगा, पुलिस हर रोज सड़कों पर मेरी पिटाई करेगी, अगर मेरा रेप होता है तो वह मेरी गलती होगी। अगर मैंने हिजाब निकाला तो मैं अपनी मातृभूमि पर एक महिला की तरह नहीं रह सकूंगी।' क्या एक बार भी हमारे जहाँ में ये सवाल नहीं आया कि आखिर ये हम कैसे समाज निर्माण कि बात कर रहे हैं ?

क्या भारत में हिज़ाब का समर्थन करने वाली उन छात्राओं, बच्चियों को ईरान कि इस घटना के बारे में देख सुन कर ये सोचने पर मजबूर नहीं होना चाहिए कि धर्म के नाम पर ये जो महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है ये कहाँ तक सही है। आखिर क्यों एक Morality Police | गश्त ऐ ईरशाद कि आवश्यकता है जो किसी भी महिला को कानूनी रूप से गिरफ्तार कर सकते हैं और अपनी मनमानी करते हुए जाने कितनी महसा अमीन को मौत कि नींद सुला सकते हैं। आज समय है जब हमें मानवता को आधार मानकर ये सवाल खुद से और समाज से करना ही होगा। 

आखिर क्यों कोई बताएगा कि एक महिला को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं ?

समय समय पर ऐसे समाज के ठेकेदारों को टक्कर देने के लिए महिला शक्ति खड़ी हुई हैं : अयातुल्ला खोमैनी को इटली की पत्रकार ओरियाना फ़ल्लाची ने खुलेआम तानाशाह कहा था क्योंकि 1979 में तेहरान में इन्टरव्यू की इजाज़त देने से पहले खोमैनी के सिपहसालारों ने उनसे अपना सिर चादर से ढंकने को कहा था। उन्होंने खोमैनी से कहा, "मैं इस बेवकूफ़ी भरे मध्ययुगीन चीथड़े को अभी उतार फेंकती हूं।"

ईरान सरकार ने अभी हाल ही में सितम्बर महीने में एक घोषणा कि थी जिसमें बसों में हिज़ाब पहनने को सुनिश्चित करने के लिए Facial Technology का इस्तेमाल करेगी जो महिलाओं कि स्वाधीनता को छीनने कि और एक कदम है। आज फिर एक बहादुर महिला ने इस कट्टरपंथ को चुनौती दी जिसकी वजह से उसे मृत्यु को गले लगाना पड़ा लेकिन उसकी क़ुरबानी व्यर्थ नहीं गयी , आज जो ये प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हैं जिसमें ज्यादातर महिलाएं हैं ये भारत कि तस्वीर नहीं है, ये एक इस्लामिक राष्ट्र कि तस्वीर हैं जहाँ बगावत शुरू हो गयी है, जिसने साफ़ शब्दों में ये सन्देश दे दिया है कि मत- पंथ- संप्रदाय के नाम पर कोई अब और बेवकूफ नहीं बना सकता। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime