अभिशाप या फिर नया सवेरा ?? फैसला आपका !
अभिशाप या फिर नया सवेरा ?? फैसला आपका !
मानव जीवन कोई पिछले कुछ समय में उभर कर सामने आने वाला कोई कथांश नहीं है, ये कई सदियों के संघर्ष का परिणाम है जो हम अपने आस पास, जीवन में, विज्ञान के क्षेत्र में देख पा रहे हैं। विज्ञान की मानी जाये तो असभ्यता से सभ्यता का ये दौर बहुत ही जद्दोजहद भरा रहा, दुनिया में हर चीज़ का एक अपना मूल्य हैं फिर जीवन की संघर्ष यात्रा कितनी कठिन रही होगी इसका अनुमान तो आप लगा ही सकते हैं जिसमें हमारे पूर्वजों ने कई युगों के पश्चात् ये सब हासिल किया। आज के भौतिक युग में हर समस्या का निदान लगभग संभव है, विज्ञान, प्रौद्योगिकी के आगे किसी का टिक पाना असंभव सा ही प्रतीत होता है। विश्व भर में विज्ञान दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की दर्ज़ कर रहा है और हमारा देश भारत भी इसमें कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रहा है। जहाँ देश में बड़ी बड़ी इमारतों ने जगह ले ली है और उसमें रहने, काम करने वाले लोग सभी सुविधाओं से लैस जीवन के एक अलग ही आयाम का आनंद ले रहे हैं वहीं एक काला सच और भी है !! असमानता, असमन्वय का सच, जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।
जिस देश में रोज़ तरक्की के नए पन्ने लिखे जा रहे हैं, रोज़ इतिहास गढ़े जा रहा हो वहां ऐसी असमानता का होना कभी कभार हाज़मा ख़राब कर ही देता है। दुनिया ने कई छोटे देशों को उबरता हुआ देखा है जैसे सिंगापूर जिसने तरक्की का एक नया अध्याय जोड़ दिया, सुनामी के बाद जब सभी को लगा था की जापान का नामोनिशान दुनिया के नक़्शे से मिट जायेगा तब उस छोटे से देश ने सबको गलत साबित कर दिया और ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं जहाँ चुनौतियों के सामने मानव ने घुटने नहीं टेके। कई देशों ने अप्रत्याशित तरक्की करी है, वहां के लोगों की जीवनशैली बदली है, जीवन जीने के स्तर में खासा बदलाव आया है! असभ्यता से सभ्यता की ओर एक तेज़ी से बढ़े हैं लोग लेकिन आज भी हमारे भारत देश में रहने वाली अधिकांश जनता के पास मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है।
मुझे भारतीय होने पर गर्व है लेकिन भारत की इस चकाचौंध के बीच इस अव्यवस्था के प्रति रोष भी, जब छोटे छोटे देश इतनी तरक्की कर सकते हैं, अपने लोगों को एक सुन्दर, व्यवस्थित जीवनशैली प्रदान कर सकती है तो फिर भारत क्यों नहीं ? लेकिन कई बार ये चर्चा जनसंख्या पर आ कर रुक जाती है लेकिन ये गलत होगा, आखिर चीन हमसे अधिक जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भी आगे बढ़ रहा है तो फिर हम क्यों नहीं ? आखिर क्यों देश की पिछली कुछ सरकारों ने इस समस्या पर ज़्यादा कुछ कार्य नहीं किया? क्यों आज भी लोग इस प्रकार से अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं ? क्यों भारत जैसे देश में आज भी स्लम एरिया, झुग्गी - झोपड़ी हैं, अनधिकृत कॉलोनियां हैं और क्यों बहुत से लोग आज भी अमानवीय हालातों में रहने के लिए मजबूर हैं?
भारत जैसे प्रगतिशील देश में लोगों की ये हालत होना अत्यंत विचारणीय है, सोचनीय है। सिविक एजेंसियों, सरकारी तंत्र को इस ओर ध्यान देना होगा, लोगों की जीवनशैली पर युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा, शिक्षा - चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति लानी होगी। लोगों को अपने अधिकारों के बारे में पता होना होगा, पिछली सरकारों से आगे बढ़कर कुछ नए ठोस कदम उठाने होंगे जिससे एक उचित बदलाव लाया जा सके। देश की जनता को एक इज़्ज़तपूर्ण जीवन और वातावरण देना ही होगा तभी वैश्विक पटल पर हमारी असली विजय, जीत होगी, बाबू वाली मानसिकता को दूर कर के एक ठोस विचारधारा को जन्म देना होगा। असमानताओं को दूर करने के लिए सरकार के साथ ही साथ जनता को भी हाथ से हाथ, कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा, लक्ष्य थोड़ा मुश्किल अवश्य है लेकिन नामुमकिन नहीं ! एक साथ चले तो जल्दी ही ये दूरी तय कर के भारत एक नए लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा, तभी मिटेगा ये अभिशाप और होगा एक नया सवेरा !
