हीरा बा
हीरा बा
यूँ देखे तो हम मिडिलक्लास ही हैं पर ज़्यादा ग़ौर करे तो शायद लोअरमिडिल वाली क्लास ही जमेगी हम पर,पर हम एक तो ऊँची जात से ठहरे ओर दूजे हमारे पिताजी पटवारी अब बता दूँ इन शहरी शेरों को जो पटवारी को ना जानते हो,बात कर रहा हूँ मैं 97-98 के दौर की जब बड़े बड़े गाँवों में भी ठाकुर के रुतबे ओर अकड़ को बस पटवारी ही टक्कर दिया करता था,पटवारी की एक आवाज़ पर सामने हाथ जोड़ आदेश मानने वालों की फ़ौज खड़ी हो जाती थी अब आप ही बताए ऐसे रुतबे में टीनएज में बस कोई बंदा 10 वी की किताबें पढ़ता ख़ुद को मिडिलक्लास मान अपनी सादगी का परिचय ही तो दे रहा हे , दिवाली आ रही थी स्कूलों की छुट्टियाँ हुए बस एक ही दिन गुज़रा होगा की घर पर मम्मी ने बोला अबकि बार कलर करवाते हे हैं,बड़ा ख़ुश हुआ मैं कलर का शुरू होना ही ऐसे था जैसे दिवाली शुरू हो चुकी हे,टीनएज की ख़ुद को बड़ा ओर ज़िम्मेदार समझने की ख़ुशफ़हमी का शिकार मैं भी था ओर जा कर मम्मी से बोला “पापा को बहुत काम होगा कलर के लिए मज़दूरों की व्यवस्था मैं कर लूँगा “
मम्मी भी मेरी थी ना तपाक़ से मेरी बात को मज़ाक़ में उड़ाते हुए बोली “पहले अपना होमवर्क तो करदे आया बड़ा काम करने वाला” मुझे ये मेरी समझ ओर ज़िम्मेदार होने पर भारी तमाचा लगा,मैं भी ज़िद्दी,जिद्द कर ऐसा बैठा की माँ ने भी माना, कर भाई पता चल जाएगा,एक पुरे दिन की भाग म भाग के बाद ही हार मान गया ओर शाम को माँ की गोदी में लेट हार मानते हुए “नही हो रही व्यवस्था” बोलते हुए मन डर रहा था मम्मी डाँटेंगीं पर माँ ने मेरी जिद्द की हार पर कोई रीएक्शन ना देते हुए बोली “ठाकुर साहब के वहाँ कलर करवाया हे उनके बेटे को पुछ” ठाकुर का बेटा मुझ से कुछ छः सात साल बड़ा था गाँव में रुतबा भी भाई का पुरा था तो शाम को ही पहुँच गया ओर भैया को अपनी तकलीफ़ सुना दी भैया ने भी पुरी तव्वजो दी आख़िर मैं भी पटवारी साहब का बेटा जो हूँ ,बोले “सुबह जल्दी 7 बजे आना “ मैं निकल पड़ा घर की ओर सुबह जल्दी आने को रात बड़ी मुश्किल से निकली ओर आज सुबह रोज से जल्दी भी हो गई।मैं उठ के बैठा अपने आँगन में घड़ी को कोस सोच रहा क्यूँ ये इतना धीरे चल रही हैं ओर कब ये सात बजाएगी बजते ही सात में ज़ट से दौड़ा ओर ओर अपने नन्हें क़दमों की बारात ठाकुर के घर की ओर ले चला,भैया को आवाज़ दे बाहर बुलाया,बनियान में ही बाहर आए भैया बोले “ तू आ गया रुक मैं सर्ट पहन के आता हूँ हमें मज़दूर मंडी चलना हैं “ मज़दूर मंडी शब्द सुन ऐसा लगा मानो मज़दूर कोई वस्तु हो, मन ही मन में मज़दूर मंडी शब्द तूफ़ान मचाने ही जा रहा था तभी अंदर से भैया आ गए ओर चल पड़े भैया की बाइक के पीछे बैठ मंडी की ओर,बाहर की तरफ़ बस स्टैंड के पास बहुत सी भीड़ थी ख़ूब सारे लोग हाथ में टिफ़िन लिए हम जैसो का वेट कर रहे थे।हमारी बाईक रुकते ही भीड़ हमारी तरफ़ आ गयी भैया ने ही काम अनुसार मोल भाव करते हुए तीन जनो को बोला “तुम,तुम ओर तुम आ जाओ”
तीनो को आने का कहते हुए पता बताया ओर वापस घर की ओर आए भैया मुझे उतार चले गए मैं दौड़ अंदर आया माँ को मज़दूर आने की ख़ुशख़बरी दे दरवाज़े पर उनकी राह तकने लग गया,कुछ ही देर में दो साइकिलों पर तीनो आए,तीनो को देख मेरे मन में ग़ज़ब का उत्साह था उन कलर करने वाले तीनो में दो तो शायद तीस साल के रहे होगे ओर तीसरे जिन्हें बाक़ी दोनो “हीरा बाँ” कहकर पुकारते थे उनकी उम्र कोई पचपन की होगी, मैली कुचैली धोती,पुरे बाँह वाली पुरानी सी फटी बनियान पहने हीरा बाँ बहुत कम बोलते थे,तीनो ने अंदर आते ही सम्मान पूर्वक अभिवादन किया,माँ ने अभिवादन को बीच में टोकते हुए पुछा “कौन जात हैं” तीनो ने जाती बताई वो छोटी थी तो माँ ने हिदायत दी किसी बर्तन को छूना नहीं ओर भगवान के मंदिर के तो आस पास भी मत भटकना तो पिताजी ने अभिवादन को लगभग अनदेखा करते हुए बोले “ देख लो काम ओर कितना कलर लगेगा लिखवा दो”ओर फिर मुझे बोला “लेकर आ जाना पंडित जी की दुकान से हमने बात कर दी हे “ तीनो ने घर मुआयना किया उनमें से स्वघोषित उनके कप्तान ने सब सामान लिखाया ओर मेरे साथ सामान लेने भी चल पड़ा
हम सामान लेकर आए तब तक हीरा बाँ ओर दूसरे जवान ने दो कमरे ख़ाली कर उनका सारा सामान तीसरे में सही कहूँ तो ठूँस दिया था थोड़ी ही देर में तीनो युद्ध स्तर पर काम में लग गए ओर मैं,मेरी ख़ुशी ओर उत्साह का आलम तो पुछो भी मत खाना तो भुला तो भुला आज तो दोस्तों के साथ क्रिकेट का मन भी नही था (उस दौर में क्रिकेट की दादागिरी ओर माहोल मेरी उम्र वाले ही समझ पाएँगे) बस मैं तो पुरे दिन उनको देखता ही रहता कभी उनको पानी डालता,कभी चाय तो दिन में खाना खाते टाईम रात की बची सब्ज़ी भी डालता मेरा पुरा दिन उनके आस पास ही गुज़रता था,दोनो लड़के आपस में बातें भी करते,हँसी मज़ाक़ भी करते पर हीराबाँ चुप चाप बस अपने काम में लगे रहते दोनो लड़के जो कहते सर हिला के मानते ओर बस काम में लगे रहते,भगवान के कमरे के बाहरी तरफ़ स्टूल पर चढ़ कलर करते बूढ़े हीराबाँ को एकटक़ देखे ही जा रहा था की अचानक उनके बूढ़े हाथों से फिसल कर गिरा वो कलर का ब्रस आँगन में एक टप्पा खा सीधा भगवान के कमरे में जा पहुँचा,हीरा बाँ ज़ट से नीचे उतरे इधर उधर देख मुझे चुप रहने का इशारा करते हुए भगवान के कमरे में घुस गए ओर थोड़ी ही देर में ब्रस ले वापस कलर में लग गए वैसे एक बात बोलूँ हीराबाँ मुझे बहुत अच्छे लगते थे ओर आज कलर का तीसरा ओर शायद अंतिम दिन भी हे ,
हीरा बाँ रोज़ लगातार दो दिन से सुबह आते वक़्त मेरे लिए नारंगी की गोलियाँ लेकर आते थे जो आज भी मुझे पसंद हे पुरा कलर जो चुका था नए कलर से सज़ा घर देखते ही बन रहा था अब बस भगवान के कमरे में बस मंदिर ही बाक़ी था, शाम हो गई ओर उन सब के छुट्टी होने का टाईम भी हो रहा था तभी माँ आकर बोली “मंदिर ही बाक़ी हे काम पुरा करके जाना भले ही एक्सटरा ले लेना आज धन तेरस हे पूजा करनी हैं” उन तीनो ने हामी में सर हिला दिया माँ मंदिर को कलर करने के लिए ख़ाली कर रही ही थी की अचानक हड़बड़ा कर बाहर आई ओर मुझे बाहर से पापा को बुलाने भेज दिया,मेने ग़ौर किया माँ के चहरे का रंग उड़ा हुआ था मुझे भापने में ज़्यादा टाईम नही लगा कुछ तो हुआ हे,मैं ज़ट से दौड़ते हुए गया ओर पापा को बुला आया पापा अंदर आते बोले “अब क्या हुआ “ मम्मी ने अंदर वाले कमरे में आने का इशारा करते हुए ख़ुद अंदर गई पापा भी गए तकरीबन 10-15 मिनट बातचीत के बाद पापा ने मुझे आवाज़ दी,मेरे अंदर जाते ही पुछा मंदिर में पड़े दियों के थाल में पड़ी अँगूठी देखी क्या मेने तुरन्त नही में सर हिला दिया फिर पुछा किसी को मंदिर वाले कमरे में आता देखा मेने तुरंत नही में सर हिला दिया तभी याद आया हीराबाँ अंदर गए थे।
हाथ से गिरा ब्रस लेने तभी माँ तपाक़ से बोली “मुझे तो पहले से ही पता था बुढ़ा ही चोर हैं” पापा बाहर आए हल्की सी पुछतास के बाद उनकी आवाज़ में कठोरता आई हीराबाँ हाथ जोड़े सर झुकाए खड़ा था ओर वो दोनो लड़के पापा के जवाब दिए जा रहे थे,हीरा बाँ की ये चुप्पी पापा के शक को पुख़्ता करने को काफ़ी थी बातों ओर वाणी की कठोरता से काम न बनता देख हाथों का सहारा लिया ओर सोच समझ कर ही बूढ़े गालों पर थप्पड़ों की बारिश सी शुरू कर दी ओर बोले जा रहे थे “निकाल अँगूठी “ बाक़ी दोनो को काम में लगा कर ये अलग ही पुलिसिया जाँच चल रही थी ओर हीराबाँ पापा के पैरों में पड़ा गिड़गिड़ा रहा था पूरी ज़ोर आज़माइश के बाद भी हाथ कुछ नही लगा तो पापा ने पुलिस बुलाने का निर्णय लिया ओर फ़ोन घुमा दिया थाने थोड़ी ही देर में थाने से दो सिपाही आए ओर कूटते पिटते हीराबाँ को ले गए अब तक कलर का काम भी हो गया था माँ ने फिर से मंदिर में मूर्तियाँ सजाई धनतेरस की पूजा का थाल तैयार किया ओर पूजा से पहले नहाने गुसलखाने में गई तो साबुदानी में नहाने के साबुन के पास अपनी खोई अँगूठी को देख याद आया यही तो निकाली थी अँगूठी चुभ जो रही थी बग़ैर नहाए ही माँ बाहर आई ओर अँगूठी मिलने की ख़बर सुनाई ,अँगूठी खोने से घर का माहोल जो भारी हो चुका था अब वो ठंडा था थोड़ी देर में मैं पापा ओर मम्मी लक्ष्मी जी की पूजा में बैठ गए बीच में पापा इधर मैं ओर उस तरफ़ मम्मी तीनो झोली फैलाए(हमारे यहाँ रिवाज हे लक्ष्मी को हाथ नही जोड़े जाते उनके सामने झोली फैलाई जाती हे) बैठे ओर पिताजी लक्ष्मी जी सुख,समृद्धि ओर वैभव माँग रहे थे ओर मैं हीराबाँ के बारे में सोचता हुआ सोच रहा था वाक़ई भगवान हमारी पुकार सुनेगे,पूजा अब पूरी हों ही गई थी की फ़ोन की घण्टी बजी पिताजी ने हेल्लो कहाँ सामने थानेदार बोल रहा था “इसको मार मार के अधमरा कर दिया सच बोल ही नही रहाँ” पिताजी ने हँसते हुए जवाब दिया “अरे अँगूठी तो कब की मिल गई इसको भले ही छोड़ दो ओर आप को तकलीफ़ हुई इसके लिए माफ़ी हुकम “
मैंने फ़ोन सुना ओर सोचा हीराबाँ ...
