हाथी - 1

हाथी - 1

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छोटी बच्ची बीमार है। हर रोज़ उसके पास डॉक्टर मिखाईल पित्रोविच आते हैं, जिन्हें वह बहुत-बहुत दिनों से जानती है मगर कभी-कभी वह अपने साथ दो और अनजान डॉक्टरों को ले आते हैं। वे बच्ची को पीठ और पेट पर पलटते हैं, उसके बदन पर कान लगाकर कुछ-कुछ सुनते हैं, निचली पलक नीचे की ओर खींचते हैं और देखते हैं। ऐसा करते समय वे कुछ गंभीरता से साँस छोड़ते हैं, उनके चेहरे कठोर हैं, और वे आपस में किसी समझ में न आने वाली भाषा में बातें करते हैं।

फिर बच्चों के कमरे से ड्राईंग-रूम में जाते हैं, जहाँ मम्मा उनका इंतज़ार कर रही होती है। सबसे प्रमुख डॉक्टर – ऊँचा, सफ़ेद बालों वाला, सुनहरे चश्मे में – उसे काफ़ी देर तक गंभीरता से कुछ बताता है। दरवाज़ा बन्द नहीं है, और बच्ची को अपने पलंग से सब दिखाई देता है और सुनाई देता है। बहुत कुछ वह समझ नहीं पाती, मगर जानती है कि बात उसीके बारे में हो रही है। मम्मा अपनी बड़ी-बड़ी, थकी हुई, रोने से लाल हुई आँखों से डॉक्टर की ओर देखती है। जाते-जाते, प्रमुख डॉक्टर ज़ोर से कहते हैं: “ख़ास बात, - उसे ‘बोर’ मत होने दीजिए। उसकी हर ज़िद पूरी कीजिए।”

 “आह, डॉक्टर, मगर वह कुछ चाहती ही नहीं है !”

 “ख़ैर, मालूम नहीं, याद कीजिए कि उसे पहले क्या अच्छा लगता था, बीमारी से पहले। खिलौने, कोई खाने की चीज़।”

 “नहीं, नहीं, डॉक्टर, वह कुछ भी नहीं चाहती।”

 “मगर, फिर भी किसी तरह से उसका दिल बहलाने की कोशिश कीजिए, किसी भी चीज़ से, मैं दावे के साथ कहता हूँ कि अगर आप उसे हँसाने में, ख़ुश रखने में क़ामयाब हो गए - तो ये उसके लिए सबसे अच्छी दवाई होगी। समझने की कोशिश कीजिए, कि आपकी बेटी ज़िन्दगी के प्रति उदासीनता से बीमार है, और कोई रोग नहीं है उसे। बाय-बाय, मैडम !”


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